प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि शीघ्र ही देश में मौजूदा पाइपलाइन नेटवर्क को दोगुना किया जाएगा। प्रधानमंत्री मोदी ने 450 किलोमीटर लंबी कोच्चि-मंगलूरु पाइपलाइन के पूरा होने के अवसर पर बोलते कहा, ‘देश की पहली अंतरराज्यीय प्राकृतिक गैस पाइपलाइन 1987 में शुरू हुई थी। 2014 तक देश में 15,000 किलोमीटर की प्राकृतिक गैस पाइपलाइन का निर्माण हुआ था। आज 16,000 से अधिक नई गैस पाइपलाइनों पर काम चालू है जिसे अगले 5 से 6 वर्षों में पूरा कर लिया जाएगा।’
कोच्चि से मंगलूरु पाइपलाइन का ज्यादातर हिस्सा केरल में है और इससे प्रति दिन 1.2 करोड़ मानक घन मीटर प्राकृतिक गैस का परिवहन किया जाएगा। आधिकारिक अनुमानों के मुताबिक परियोजना की लागत 3,000 करोड़ रुपये आई है। इस पर काम 2009 में शुरू हुआ था और इसे 2014 में पूरा होने की उम्मीद जताई गई थी। लेकिन परियोजना में कई बार देरी हुई जिससे इसके शुरू होने की तारीख भी आगे बढ़ती गई।
मोदी ने कहा, ‘2014 तक देश में महज 900 सीएनजी स्टेशन ही लगाये जा सके थे, जिसके बाद 1,500 नए सीएनजी स्टेशन बनाए गए हैं। अब इनकी संख्या बढ़ाकर 10,000 करने का लक्ष्य है। इस पाइपलाइन से केरल और कर्नाटक में 700 सीएनजी स्टेशन लगाने में मदद मिलेगी। 2014 तक 25 लाख घरों में रसोई गैस के लिये पाइप (प्राकृतिक गैस) कनेक्शन थे। अब ये बढ़कर 72 लाख घरों तक पहुंच गए हैं। कोच्चि-मंगलूरू पाइपलाइन से 21 लाख और घरों में पाइप से एलएनजी पहुंचाने में मदद मिलेगी।’
उन्होंने कहा कि यह पाइपलाइन ऊर्जा संसाधनों में प्राकृतिक गैस की हिस्सेदारी अभी के 6 प्रतिशत से बढ़ाकर 15 प्रतिशत तक करने की केंद्र की पहल का हिस्सा है।
यह पाइपलाइन पेट्रोनेट एलएनजी के 50 लाख टन प्रति वर्ष उत्पादन के लक्ष्य वाले कोच्चि टर्मिनल के लिए एक बड़ा प्रोत्साहन है। मंगलवार के कारोबार के दौरान पेट्रोनेट एलएनजी के शेयर में करीब 3 फीसदी की उछाल आई जिसकी वजह यह उम्मीद थी कि शुरू हुई इस पाइपलाइन से कोच्चि टर्मिनल तक उपभोक्ताओं की पहुंच हो जाएगी।
पेट्रोनेट एलएनजी दो तरलीकृत प्राकृतिक गैस (एलएनजी) रीगैसीफिकेशन टर्मिनलों का परिचालन करती है। इसमें से एक दहेज में स्थित है जिसकी क्षमता 1.75 करोड़ टन प्रति वर्ष है और दूसरा कोच्चि में स्थित है। दाहेज टर्मिनल का प्रदर्शन जहां संतोषजनक है वहीं कोच्चि टर्मिनल अपने नामपट्ट क्षमता के महज 10 फीसदी पर जूझ रही है। इसकी वजह है यह कि उसे महंगी पुनर्गैसीकृत एलएनजी का खरीदार नहीं मिल पा रहा है।
विश्लेषकों के मुताबिक पेट्रोनेट एलएनजी की मांग पहले ही कोविड से पूर्व के स्तर के करीब पहुंच चुकी है।