संघीय ढांचे के प्रावधानों की समीक्षा पर जोर

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 14, 2022 | 8:19 PM IST

बदलती आर्थिक परिस्थितियों और केंद्र-राज्य संबंधों पर उठ रहे सवालों के बीच 15वें वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह ने शुक्रवार को संविधान के उन प्रावधानों पर फिर से चर्चा पर जोर दिया जो सलाह-संवाद के जरिये बुनियादी संघीय ढांचे को संचालित करते हैं। उन्होंने राज्यों के बेहतर व्यय परिणामों के आकलन के लिए किसी विशिष्ट बिंदु के बजाय राजकोषीय दायरे में जाने का आह्वान किया।
उद्योग संगठन फिक्की की वार्षिक आम बैठक में सिंह ने प्रमुख रूप से केंद्र और राज्यों के बीच के विषय क्षेत्रों, केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं (सीएसएस) से संबंधित प्रावधानों पर दोबारा चर्चा करने का सुझाव दिया। उन्होंने वित्त आयोग और जीएसटी परिषद के बीच बेहतर तालमेल, योजना आयोग के समापन के बाद केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय के लिए किसी निकाय की आवश्यकता का भी आह्वान किया।
उन्होंने कहा कि देश की आर्थिक प्रगति, वैश्विक स्तर पर पारस्परिक निर्भरता और प्रौद्योगिकी के माध्यम से निर्बाध एकीकरण ने भावी विचार-विमर्श के लिए इनमें से कई निर्धारित रुपरेखाओं को दोबारा कानूनी रूप से खोल दिया है।
भारतीय अर्थव्यवस्था और संघीय विश्वास को सुदृढ़ बनाने के संबंध में व्यायान देते हुए सिंह ने सवाल उठाए कि क्या संदेह और अविश्वास के नए बीज हैं? क्या भारतीय समाज की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सक्षम संविधान में परिकल्पित मौजूदा व्यवस्थाएं केंद्र-राज्य के संबंधों – विधायी, कार्यकारी और आर्थिक को नियंत्रित कर रही हैं?
उन्होंने संविधान के उस सातवीं अनुसूची पर दोबार चर्चा करने का सुझाव दिया जो विषयों को मोटे तौर पर संघ, राज्य और समवर्ती सूची में विभाजित करती है।
पूर्व अधिकारी ने कहा कि कुछ समय से कार्यों का यह विभाजन तेजी से घट गया है। सिंह ने इस अनुसूची की समीक्षा करने के लिए अपने-अपने क्षेत्रों के विशेषज्ञों की एक उच्चस्तरीय समिति गठित करने का सुझाव दिया। इसके अलावा संविधान के अनुच्छेद 282 के पूरे क्षेत्र की दोबारा समीक्षा करने की भी आवश्यकता है जो सार्वजनिक उद्देश्य के लिए अनुदानों से संबंधित है। 15 वें वित्त आयोग की आंतरिक कवायद के आधार पर 29 मुख्य योजनाओं के अंतर्गत तकरीबन 211 योजनाएं और उप-योजनाए हैं। सिंह ने कहा कि इस बात को ध्यान में रखते हुए कि राज्य अक्सर विरोध करते हैं कि ये खराब ढंग से तैयार की गई हैं और उनकी विशिष्ट जरूरतों के अनुकूल नहीं हैं तथा इनमें उनके द्वारा महत्त्वपूर्ण वित्तीय परिव्यय करने की जरूर होती है, किसी भी राज्य ने वास्तव में इन्हें छोडऩे का फैसला नहीं किया है।
इस तरह, सीएसएस को पर्याप्त लचीला होना चाहिए ताकि राज्य इसके अनुकूल और नवाचार कर पाएं। सिंह ने केंद्र और राज्यों के राजकोषीय समेकन कार्यक्रम को और अधिक सामंजस्यपूर्ण समरूपता में तैयार करने की आवश्यकता पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने कहा कि सच यह है कि इन सीएसएस पर कुल सार्वजनिक व्यय 6-7 लाख करोड़ रुपये सालाना है जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

First Published : December 11, 2020 | 11:58 PM IST