Representative Image
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने कहा है कि अमेरिका ने ईरान में तीन ठिकानों पर हवाई हमला किया है। यह कार्रवाई ईरान के परमाणु कार्यक्रम को खत्म करने की इजरायल की कोशिशों का हिस्सा है। ट्रंप के मुताबिक, यह कदम एक पुराने दुश्मन को कमजोर करने के लिए उठाया गया है, हालांकि इससे पश्चिम एशिया में व्यापक युद्ध की आशंका बढ़ गई है।
यह फैसला ऐसे समय लिया गया है जब पिछले एक हफ्ते से इजरायल ईरान पर लगातार हमले कर रहा था। इन हमलों में ईरान की वायु रक्षा प्रणाली और मिसाइल क्षमता को कमजोर करने की कोशिश की गई है। साथ ही, उसके परमाणु संवर्धन केंद्रों को भी निशाना बनाया गया है।
अमेरिकी और इजरायली अधिकारियों का कहना है कि अमेरिका के पास ही ऐसे स्टील्थ बॉम्बर और 30,000 पाउंड वजनी बंकर बस्टर बम हैं, जो ईरान के गहराई में बने परमाणु ठिकानों को तबाह कर सकते हैं। यही वजह है कि अमेरिका को सीधे कार्रवाई करनी पड़ी। हमले के बाद ईरान की ओर से जवाबी हमले की चेतावनी दी गई है, जिससे पूरे इलाके में तनाव और बढ़ सकता है।
ईरान और इज़रायल के बीच तनाव बढ़ने के बीच अमेरिका की संभावित सैन्य कार्रवाई पर सवाल उठ रहे हैं। ट्रंप प्रशासन के लिए यह फैसला काफी जोखिम भरा हो सकता है, क्योंकि ईरान ने साफ कर दिया है कि अगर अमेरिका इज़रायली हमले में शामिल हुआ, तो वह पलटवार करेगा।
ट्रंप, जो पहले ही यह वादा कर चुके हैं कि अमेरिका को महंगे विदेशी युद्धों से बाहर रखेंगे, अब दबाव में हैं। शुक्रवार को उन्होंने मीडिया से कहा कि वह ईरान में जमीनी सेना भेजने के पक्ष में नहीं हैं। हालांकि उन्होंने यह भी बताया कि वह अगले दो हफ्तों में अंतिम फैसला लेंगे। लेकिन मौजूदा हालात को देखते हुए यह समयसीमा कुछ ज्यादा ही लंबी लग रही है।
वहीं, ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने बुधवार को अमेरिका को चेताया कि अगर इस्लामिक रिपब्लिक पर हमला किया गया, तो उसका जवाब ऐसा होगा जिससे “अमेरिका को अपूरणीय नुकसान” झेलना पड़ेगा।
ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता इस्माइल बघई ने साफ कहा है कि अगर अमेरिका पश्चिम एशिया के किसी सैन्य अभियान में दखल देता है, तो यह पूरे क्षेत्र के लिए एक बड़ी जंग की शुरुआत हो सकती है।
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि वह ईरान को परमाणु हथियार हासिल नहीं करने देंगे। उनका मानना था कि सैन्य कार्रवाई की धमकी देकर ईरान को शांति से अपने परमाणु कार्यक्रम से पीछे हटने के लिए मजबूर किया जा सकता है।
इस बीच, इज़राइल की सेना ने शनिवार को कहा कि वह लंबी लड़ाई के लिए खुद को तैयार कर रही है। उधर, ईरान के विदेश मंत्री ने अमेरिकी हमले से पहले ही चेताया था कि इस तरह की सैन्य दखलअंदाजी “हर किसी के लिए बहुत खतरनाक” साबित हो सकती है।
तनाव का दायरा और बढ़ता दिख रहा है। यमन के ईरान समर्थित हौती विद्रोहियों ने धमकी दी है कि अगर ट्रंप प्रशासन इज़राइल के सैन्य अभियान में शामिल होता है, तो वे रेड सी (लाल सागर) में अमेरिकी जहाजों पर हमले फिर शुरू कर देंगे। मई में अमेरिका के साथ एक समझौते के बाद उन्होंने ये हमले रोक दिए थे।
इस बीच, इज़राइल में अमेरिकी दूतावास ने बताया है कि अमेरिका ने इज़राइल से नागरिकों की पहली “सहायता प्राप्त वापसी उड़ानें” शुरू कर दी हैं। ये उड़ानें 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमले और गाजा में युद्ध शुरू होने के बाद पहली बार शुरू हुई हैं।
सूत्रों के अनुसार, ट्रंप ने इज़राइली अधिकारियों और कई रिपब्लिकन सांसदों की सलाह पर यह रणनीतिक फैसला लिया है कि मौजूदा हालात में ईरान के परमाणु कार्यक्रम को स्थायी रूप से नुकसान पहुंचाने का यह एक “बेहतर मौका” हो सकता है।
इज़रायल ने दावा किया है कि उसके सैन्य अभियान ने ईरान की हवाई सुरक्षा को पहले ही काफी हद तक नाकाम कर दिया है और उसने कई परमाणु ठिकानों को नुकसान पहुंचाया है। हालांकि, ईरान की बेहद सुरक्षित फोर्डो न्यूक्लियर फ्यूल एनरिचमेंट प्लांट को तबाह करने के लिए उसे अमेरिका की मदद चाहिए।
इसके लिए इज़रायल ने अमेरिका के ट्रंप से 30,000 पाउंड वजनी जीबीयू-57 ‘मैसिव ऑर्डनेंस पेनिट्रेटर’ (GBU-57 Massive Ordnance Penetrator) बम की मांग की है। यह ‘बंकर बस्टर’ बम इतनी ताकतवर है कि ज़मीन के करीब 200 फीट (61 मीटर) नीचे तक घुसकर धमाका कर सकता है। इसे खासतौर पर गहराई में छिपे ठिकानों को नष्ट करने के लिए बनाया गया है।
यह बम फिलहाल केवल अमेरिका के बी-2 स्टील्थ बॉम्बर से ही छोड़ा जा सकता है, जो सिर्फ अमेरिकी वायुसेना के पास है। एक के बाद एक गिराए जाने पर यह बम गहराई तक ड्रिल करते हुए ठोस सुरंगों और बंकरों को तबाह करने में सक्षम है।
अंतरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी (IAEA) की पुष्टि के अनुसार, ईरान फोर्डो साइट पर हाईली एनरिच्ड यूरेनियम बना रहा है। ऐसे में अगर इस साइट पर GBU-57 का इस्तेमाल होता है, तो वहां से रेडियोएक्टिव सामग्री बाहर फैलने की आशंका जताई जा रही है।
इससे पहले इज़रायल ने ईरान की नतान्ज न्यूक्लियर साइट पर हमले किए थे, जिसमें नुकसान सिर्फ साइट तक ही सीमित रहा था और आसपास के इलाके प्रभावित नहीं हुए थे। IAEA का कहना है कि नतान्ज हमले में रेडियोधर्मी प्रदूषण साइट से बाहर नहीं फैला था।
डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान के खिलाफ सीधे सैन्य हस्तक्षेप का फैसला किया है। यह फैसला उस वक्त लिया गया जब दो महीने की कूटनीतिक कोशिशें बेनतीजा रहीं। इन प्रयासों में ईरान के साथ उच्च स्तर पर बातचीत भी शामिल थी, जिसका मकसद तेहरान को उसके परमाणु कार्यक्रम पर लगाम लगाने के लिए मनाना था।
ट्रंप ने लंबे समय तक कहा था कि वह ईरान को परमाणु महत्वाकांक्षाएं छोड़ने के लिए कूटनीतिक रास्ता अपनाना चाहते हैं। अप्रैल और फिर मई के अंत में उन्होंने इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को भी सैन्य कार्रवाई टालने और बातचीत को मौका देने के लिए राजी किया था।
हाल के दिनों में अमेरिका ने इजरायल और मध्य-पूर्व में अपने ठिकानों की सुरक्षा के लिए युद्धपोत और सैन्य विमान तैनात करने शुरू कर दिए हैं। ट्रंप की रणनीति में अब बड़ा बदलाव दिखा है। वह पहले जहां ईरान को ‘दूसरा मौका’ देने की बात कर रहे थे, वहीं अब उन्होंने ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई को खुली धमकियां देनी शुरू कर दी हैं।
ट्रंप ने एक सोशल मीडिया पोस्ट में लिखा, “हमें पता है कि यह तथाकथित सुप्रीम लीडर कहां छिपा है। वह आसान निशाना है लेकिन अभी के लिए हम उसे मारेंगे नहीं।”
यह टकराव ऐसे समय पर सामने आया है जब सात साल पहले, 2018 में, ट्रंप ने अमेरिका को उस परमाणु समझौते से बाहर कर दिया था जिसे ओबामा सरकार ने ईरान के साथ किया था। ट्रंप ने तब उस डील को ‘अब तक की सबसे खराब डील’ कहा था।
2015 में ईरान, अमेरिका और अन्य वैश्विक शक्तियों के बीच एक दीर्घकालिक परमाणु समझौता हुआ था। इस समझौते के तहत ईरान ने यूरेनियम संवर्धन (enrichment) की अपनी गतिविधियों को सीमित करने पर सहमति दी थी, जिसके बदले में उस पर लगे आर्थिक प्रतिबंध हटा लिए गए थे।
हालांकि, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप इस समझौते से संतुष्ट नहीं रहे। उनका मानना था कि ओबामा प्रशासन के दौर में हुई यह डील ईरान को बहुत ज्यादा रियायतें देती है, जबकि बदले में अमेरिका को कुछ खास नहीं मिलता। ट्रंप का यह भी कहना था कि यह समझौता ईरान की गैर-परमाणु गतिविधियों, जैसे कि उसके ‘दुष्प्रभावी’ क्षेत्रीय रवैये, पर कोई लगाम नहीं लगाता।
अब ट्रंप खुद आलोचनाओं का सामना कर रहे हैं। उनके कुछ कट्टर समर्थक, जिनमें कंजरवेटिव टिप्पणीकार टकर कार्लसन भी शामिल हैं, कह रहे हैं कि अगर अमेरिका किसी और युद्ध में शामिल होता है, तो यह ट्रंप के उन वादों के खिलाफ होगा जिनमें उन्होंने ‘महंगे और अंतहीन युद्धों’ से अमेरिका को बाहर निकालने की बात कही थी।