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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यूक्रेन यात्रा के दौरान राजनीति, व्यापार, शिक्षा और मानवीय सहयोग से जुड़े कई मुद्दों पर चर्चा होगी। विदेश मंत्रालय ने इसकी जानकारी दी। बुधवार को प्रधानमंत्री मोदी पोलैंड की दो दिवसीय यात्रा पर जाएंगे और इसके बाद वह यूक्रेन की राजधानी कीव में राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की से वार्ता करेंगे।
वर्ष 1992 में भारत और यूक्रेन के बीच औपचारिक कूटनीतिक संबंध बनने के बाद से यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यूक्रेन में पहली यात्रा है। सूत्रों का कहना है कि इस मुलाकात की भू-राजनीतिक अहमियत है क्योंकि मोदी मौजूदा युद्ध में संवाद और गैर-सैन्य समाधान की गुंजाइश देखने की अपील फिर से करेंगे। यूक्रेन फिलहाल रूस के कुर्स्क क्षेत्र में रणनीतिक विवाद में उलझा हुआ है।
मोदी इससे पहले जुलाई में रूस की यात्रा पर गए थे और इसके बाद वह यूक्रेन दौरे पर जा रहे हैं। उस वक्त जेलेंस्की ने रूस में हुई उनकी बैठक को ‘बेहद निराशाजनक’ बताया था। हालांकि इटली में जून महीने में जी7 सम्मेलन के दौरान भी मोदी और जेलेंस्की की मुलाकात हुई थी। इसके अलावा इन्होंने पिछले वर्ष जापान में जी7 बैठक के दौरान भी मुलाकात की थी।
पिछले दो वर्षों में भारत ने पश्चिमी देशों के उस दबाव का विरोध किया है जिसके तहत भारत से यह उम्मीद की जा रही है कि यह अपने परंपरागत साझेदार रूस के साथ कच्चे तेल की खरीद प्रक्रिया खत्म कर ले। रूस से कच्चे तेल के आयात में छूट के चलते ही देश के कच्चे तेल आयात बिल में 15.9 फीसदी की कमी आई और यह वित्त वर्ष 2024 में कम होकर 132.4 अरब डॉलर हो गया जो इससे पिछले वर्ष 157.5 अरब डॉलर था जबकि आयात की मात्रा समान ही रही।
फरवरी 2022 में यूक्रेन के साथ युद्ध शुरू होने के बाद से रूस के साथ भारत का व्यापार अस्थिर ही रहा है। वित्त वर्ष 2022 में व्यापार 3.38 अरब डॉलर के स्तर पर पहुंच गया। करीब 2 अरब डॉलर के व्यापार में बड़ी हिस्सेदारी सूरजमूखी के बीज के तेल की है जो रूस से होने वाली सबसे बड़ी आयात वस्तु है।
भारत अब तक दुनिया में खाद्य तेल के सबसे बड़े परंपरागत उत्पादक देश, यूक्रेन पर था। लेकिन युद्ध के चलते सरकार को सूरजमुखी के तेल के दूसरे सबसे बड़े उत्पादक देश, रूस से संपर्क करना पड़ा क्योंकि घरेलू खाद्य तेल की कीमतें मई-जून 2022 में तेजी से ऐतिहासिक ऊंचाई पर पहुंच गईं। रूस ने जब सूरजमुखी के तेल के निर्यात पर कोटा तय किया तब भारत ने रियायती दरों की मांग की थी। वित्त वर्ष 2024 तक भारत के लिए रूस ईंधन तेल का सबसे बड़ा स्रोत था।
पिछले 45 वर्षों में पोलैंड में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की यह पहली यात्रा है क्योंकि यह देश केंद्रीय यूरोपीय क्षेत्र में भारतीय व्यापार और निवेश के लिए यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है। पोलैंड के साथ कूटनीतिक रिश्ते की 70वीं वर्षगांठ के मौके पर प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान इस प्रमुख यूरोपीय अर्थव्यवस्था में भारत खुद को कम लागत वाले विनिर्माण और लॉजिस्टिक्स केंद्र के तौर पर स्थापित कर रहा है।
विदेश मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि दोनों देशों की इस वार्ता में रक्षा क्षेत्र में बड़े सहयोग के साथ-साथ सूचना प्रौद्योगिकी, दवा और वाहन कलपुर्जों के विनिर्माण के लिए द्विपक्षीय कारोबारी गठजोड़ पर जोर दिया जाएगा। यह देश भारत की आईटी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों ‘टाटा कंसंल्टेंसी सर्विसेज, एचसीएल टेक्नोलॉजीज, इन्फोसिस और विप्रो’ के परिचालन के लिए भी महत्वपूर्ण है।
दवा कंपनी रैनबैक्सी, बर्गर पेंट्स और वाहन एवं उपकरण निर्माता कंपनी एस्कॉर्ट्स की विनिर्माण इकाइयां भी यहां पिछले दशक से मौजूद हैं। अधिकारियों का कहना है कि पोलैंड की दिलचस्पी इस बात में है कि यहां ज्यादा भारतीय निवेश हो और इसने यूरोप में खुद को प्रौद्योगिकी से लैस और सस्ते विनिर्माण केंद्र के तौर पर स्थापित किया है। फरवरी में दूरसंचार गियरमेकर एचएफसीएल ने देश में एक ऑप्टिकल फाइबर केबल संयत्र स्थापित करने की योजना की घोषणा की थी।
वहीं दूसरी ओर भारत में पोलैंड से प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 34वें स्थान के साथ 71.2 करोड़ डॉलर पर है। सोमवार को तन्मय लाल सचिव (पश्चिम) ने संकेत दिए कि पोलैंड की करीब 30 कंपनियों की भारत में कारोबारी मौजूदगी है। विविधता पूर्ण निवेश के चलते पोलैंड के साथ भारत का व्यापारिक संतुलन सकारात्मक है।
पोलैंड में रहने वाले भारतीयों की संख्या भी बढ़कर 25,000 हो गई है। इसमें 5,000 छात्र भी शामिल हैं जिनमें से कई यूक्रेन में 2022 में युद्ध की स्थिति बनने पर पोलैंड में पढ़ाई करने चले गए थे।