यूक्रेन पर हमले के बाद यूरोपीय देशों और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के सहयोगियों ने भी यह घोषणा कर दी कि वे रूस पर प्रतिबंध लगाएंगे। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने भी अपने टेलीविजन संबोधन में रूस के खिलाफ और अधिक प्रतिबंध लगाने की धमकी दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रूस के राष्ट्रपति व्लादीमिर पुतिन को तुरंत हिंसा बंद करने के लिए बात भी की। भारत पर रूस के आक्रमण की निंदा करने का दबाव बढ़ रहा है।
रूस के कदम का असर भारतीय अर्थव्यवस्था और बाजार पर पहले से ही पड़ रहा है, एल्युमीनियम की कीमतें बढ़ रही हैं, तेल की कीमतों ने 100 डॉलर के आंकड़े को पार कर लिया है जबकि गुरुवार को रुपया 109 पैसे गिर गया। यदि अमेरिका सीएएटीएस, (काउंटरिंग अमेरिकाजा एडवर्सरीज थ्रू सैंक्शन ऐक्ट) लागू करता है तब इसका असर देश के रक्षा क्षेत्र पर पड़ेगा। हालांकि रूस पर भारत की निर्भरता कम हो रही है लेकिन भारत के अधिकांश हथियारों के आयात में अब भी रूस का योगदान है। स्टॉकहोम इंटरनैशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के आंकड़ों के बिज़नेस स्टैंडर्ड के विश्लेषण से पता चलता है कि 2016 और 2020 के बीच भारत के हथियारों के आयात का 49.4 प्रतिशत रूस से जबकि 0.5 प्रतिशत यूक्रेन से था। पिछले पांच वर्षों में, वर्ष 2011-15 के बीच, भारत के कुल हथियारों के आयात में रूस का योगदान 69.6 प्रतिशत था। वर्ष 1996-2010 के बीच यह हिस्सेदारी 70 प्रतिशत तक थी। राफेल सौदे के कारण फ्रांस की हिस्सेदारी वर्ष 2011-15 में 1.5 प्रतिशत से बढ़कर 2016-20 में 18.4 प्रतिशत हो गई है। दूसरी ओर इजरायल और अमेरिका ने पिछले कुछ वर्षों में अपने हिस्से में लगातार वृद्धि देखी है। अमेरिका की हिस्सेदारी वर्ष 2006-10 के 2.2 प्रतिशत से बढ़कर 2011-16 में 13.7 प्रतिशत हो गई। यह 2016-20 में घटकर 11 प्रतिशत रह गई है। वहीं इजरायल की हिस्सेदारी 2006-10 में 1.5 प्रतिशत से बढ़कर 2016-20 में 13.4 प्रतिशत हो गई। रूस पर प्रतिबंध निश्चित रूप से रक्षा खरीद को प्रभावित करेंगे लेकिन भारत किसी भी व्यापार के असर से बचा रहेगा।