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$100K H-1B वीजा फीस ‘गैरकानूनी’! अमेरिकी कंपनियों ने ट्रंप प्रसासन के ​खिलाफ किया केस

अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स ने वाशिंगटन की एक संघीय अदालत में मामला दर्ज कराया है। जिसमें अदालत से इस आदेश को रोकने की मांग की गई

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बीएस वेब टीम   
Last Updated- October 17, 2025 | 10:35 AM IST

अमेरिकी चैंबर ऑफ कॉमर्स ने डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन की ओर से नए H-1B वीजा आवेदकों पर $100,000 (करीब ₹83 लाख) की फीस लगाने के फैसले के खिलाफ मुकदमा दायर किया है। चैंबर ने इस कदम को “अनुचित” और कानूनी रूप से “गलत” बताया है। एसोसिएटेड प्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, चैंबर ने गुरुवार को वाशिंगटन की एक संघीय अदालत में मामला दर्ज किया, जिसमें अदालत से इस आदेश को रोकने और यह घोषित करने की मांग की गई कि ट्रंप ने अपने कार्यकारी अधिकारों का अतिक्रमण किया है।

यह शुल्क एक महीने पहले घोषित किया गया था और व्हाइट हाउस ने इसे अमेरिकी वर्कर्स के स्थान पर सस्ते विदेशी टैलेंट को भर्ती करने वाली कंपनियों के खिलाफ कदम बताया था। बाद में अधिकारियों ने स्पष्ट किया कि यह शुल्क केवल नए आवेदकों पर लागू होगा, मौजूदा वीजाधारकों पर नहीं, और छूट के लिए आवेदन फॉर्म भी उपलब्ध कराया गया है।

चैंबर ने कहा- इमीग्रेशन कानून का उल्लंघन

यह मुकदमा ट्रंप प्रशासन के खिलाफ चैंबर की पहली कानूनी कार्रवाई है। 30,000 से ज्यादा बिजनेस का प्रतिनिधित्व करने वाला चैंबर कहता है कि यह शुल्क अमेरिकी इमीग्रेशन कानूनों का उल्लंघन करता है, जिनमें वीजा फीस को केवल वास्तविक प्रोसेसिंग लागत के आधार पर तय करने का प्रावधान है।

मुकदमे में होमलैंड सिक्योरिटी विभाग और विदेश मंत्रालय को प्रतिवादी बनाया गया है। इसमें कहा गया है: “राष्ट्रपति के पास अमेरिका में गैर-नागरिकों के प्रवेश को नियंत्रित करने का व्यापक अधिकार है, लेकिन वह अधिकार कानूनों से सीमित है और कांग्रेस द्वारा पारित कानूनों का विरोध नहीं कर सकता।”

पहले H-1B वीजा आवेदन की लागत लगभग $3,600 तक थी। चैंबर का कहना है कि इतनी भारी फीस से कंपनियों को ​स्किल्ड वर्कर्स की भर्ती खासकर टेक और कंसल्टिंग क्षेत्रों में घटानी पड़ सकती है या वेतन लागत असहनीय हो सकती है।

हालांकि आलोचकों का कहना है कि H-1B और अन्य स्किल्ड वर्कर वीजा प्रोग्राम अमेरिकी कर्मचारियों को सस्ते श्रम से रिप्लेस करते हैं, लेकिन व्यापार समूहों का तर्क है कि ये वीजा विशेष रूप से इंजीनियरिंग, आईटी और हेल्थ साइंसेज जैसे क्षेत्रों में श्रम की कमी को पूरा करने के लिए जरूरी हैं।

रॉयटर्स की रिपोर्ट के अनुसार, कंपनियां आमतौर पर H-1B कर्मचारियों को स्पॉन्सर करने के लिए $2,000 से $5,000 तक शुल्क चुकाती हैं, जो उनके आकार और पात्रता पर निर्भर करता है।

क्या है H-1B वीजा प्रोग्राम

H-1B वीजा प्रोग्राम के तहत हर साल 85,000 तक कुशल विदेशी कर्मचारियों को अमेरिका में छह साल तक काम करने की अनुमति दी जाती है। इसमें भारतीय नागरिकों का हिस्सा लगभग 71% है, और टेक्नोलॉजी तथा आईटी सर्विस कंपनियां इसके प्रमुख यूजर हैं।

प्रस्तावित $100,000 शुल्क एक वर्ष के लिए लागू किया गया है, लेकिन अगर सरकार इसे “राष्ट्रीय हित” में आवश्यक समझे तो इसकी अवधि बढ़ाई जा सकती है।

ट्रंप का कदम अमेरिका को नुकसान पहुंचाएगा: माइकल मोरिट्ज

सिलिकॉन वैली के निवेशक और गूगल, पेपाल जैसे दिग्गजों के शुरुआती समर्थक माइकल मोरिट्ज ने कहा है कि ट्रंप प्रशासन का यह कदम अमेरिका की तकनीकी बढ़त को नुकसान पहुंचाएगा।

उन्होंने फाइनेंशियल टाइम्स में प्रकाशित एक लेख में लिखा कि पूर्वी यूरोप, तुर्की और भारत के इंजीनियर अमेरिकी पेशेवरों के बराबर कौशल रखते हैं। उन्होंने कहा कि अमेरिका को अपनी टेक कंपनियों के घरेलू विस्तार का समर्थन करना चाहिए, न कि उन्हें विदेश में संचालन स्थानांतरित करने के लिए मजबूर करना चाहिए।

First Published : October 17, 2025 | 10:34 AM IST