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ट्रंप टैरिफ भारत के रूसी तेल निर्यात को कैसे कर रहा टारगेट? क्या कहते हैं विशेषज्ञ

ट्रंप की टैरिफ नीति के बीच भारत के लिए आर्थिक और भू-राजनीतिक स्थिति चुनौतीपूर्ण बनी हुई है।

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एस दिनकर   
Last Updated- August 13, 2025 | 10:16 AM IST

अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने भारत को “डेड इकॉनमी” और “टैरिफ किंग” कहकर वैश्विक स्तर पर आलोचना का निशाना बनाया है। ऐसा काफी समय बाद पहली बार हुआ है जब किसी अमेरिकी राष्ट्रपति ने भारत जैसी तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था को इस तरह से निशाना बनाया हो।

1960 और 1970 के दशक में भारत पूरी तरह अमेरिका पर खाद्य सहायता के लिए निर्भर था। उस समय भारत को अमेरिका से मिलने वाली मदद भी राजनीतिक कारणों से कम कर दी जाती थी, जैसे कि भारत के वियतनाम युद्ध में अमेरिका के रुख से अलग कदम उठाने पर। आज भारत में खाद्यान्न का अधिशेष है, जिसे न केवल विदेशों में निर्यात किया जाता है बल्कि ईंधन के रूप में इस्तेमाल होने वाले एथेनॉल में भी बदला जा रहा है।

आर्थिक आंकड़े भारत की बढ़ती ताकत को स्पष्ट करते हैं। अगर भारत अगले दशकों में 7-8 फीसदी की दर से विकास करता रहा, तो वह अमेरिका को पीछे छोड़कर दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा, यह सरकार के अधिकारियों का मानना है। ऊर्जा उत्पादन से निकलने वाला भारत का कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन 2024 में 4 प्रतिशत से ज्यादा बढ़ा, जो चीन के 1.2 प्रतिशत और अमेरिका के 0.8 प्रतिशत गिरावट के मुकाबले काफी तेज़ है। इसके साथ ही भारत की ऊर्जा आपूर्ति भी पिछले साल 4.3 प्रतिशत बढ़ी, जबकि अमेरिका में 0.4 प्रतिशत और चीन में 2.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई।

विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले दशक में वैश्विक तेल मांग में भारत सबसे बड़ा योगदानकर्ता होगा, जो उसकी बढ़ती ऊर्जा जरूरतों का संकेत है।

इससे साफ है कि भारत आज आर्थिक और ऊर्जा के मामले में दुनिया के बड़े देशों के बीच तेजी से उभर रहा है।

अमेरिका ने रूस से सस्ता तेल खरीदने पर भारत के अधिकांश निर्यात पर 25 प्रतिशत टैरिफ लगाया है। भारत के सबसे पुराने व्यापारिक साझेदार रूस से भारत की कच्चे तेल की करीब 40 प्रतिशत आपूर्ति होती है। इसके साथ ही 7 अगस्त से लगाया गया 25 प्रतिशत पारस्परिक टैरिफ मिलाकर, भारतीय निर्यातकों को अमेरिकी बाजार में पहुंचने के लिए कुल 50 प्रतिशत टैक्स देना होगा, जो ब्राजील के साथ सबसे अधिक है।

जॉन्स हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के राजनीतिक विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर एलन बेंटली ने क्लाइमेट ट्रेंड्स के वेबिनार में कहा, “बहुत ज्यादा जीवाश्म ईंधन आयात करने से भारत के लिए राजनीतिक जोखिम बढ़ रहे हैं।”

उन्होंने कहा कि इसलिए स्वच्छ ऊर्जा पर जोर देना आर्थिक स्वतंत्रता की ओर एक कदम है, क्योंकि भारत के पास वैश्विक स्तर पर मजबूत कूटनीतिक विकल्प मौजूद नहीं हैं। भारत अपनी कच्चे तेल की करीब 90 प्रतिशत, प्राकृतिक गैस का आधा और एलपीजी की 60 प्रतिशत से अधिक जरूरत विदेशों से पूरी करता है।

यह पहली बार नहीं है जब भारत ने अमेरिका की पाबंदियों का सामना किया हो। जब इंदिरा गांधी ने वियतनाम युद्ध में अमेरिकी राष्ट्रपति लिंडन जॉनसन का समर्थन नहीं किया था, तो अमेरिका ने भारत को PL480 खाद्य सहायता के आखिरी हिस्से देना बंद कर दिया था। इसके जवाब में भारत ने ग्रीन रिवोल्यूशन की नींव रखी थी।

मई 1998 में, जब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने परमाणु परीक्षण किए थे, कुछ साल बाद तब के वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने भारत की अर्थव्यवस्था खोली थी, तब राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भारत पर व्यापार और निवेश प्रतिबंध लगाए थे। अब स्थिति पहले से ज्यादा गंभीर और अनिश्चित है।

कार्नेगी इंडिया के वरिष्ठ साथी और पूर्व अमेरिकी राजदूत अरुण सिंह कहते हैं, “पूरा विश्व अब डोनाल्ड ट्रंप की राजनीति से निपट रहा है। यह केवल भारत पर उच्च टैरिफ नहीं बल्कि भारत-अमेरिका संबंधों पर भी टैरिफ जैसा असर है।” पिछले दो दशकों में अमेरिका ने भारत के साथ अपने खराब अनुभवों को मिटाने की कोशिश की है, जैसे 1999 के कारगिल युद्ध में भारत का समर्थन और 2008 में नागरिक परमाणु सहयोग समझौता।

थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव के संस्थापक और पूर्व व्यापार अधिकारी अजय श्रीवास्तव कहते हैं कि 50 प्रतिशत टैरिफ अमेरिका के भारत से 86 अरब डॉलर के कुल माल निर्यात का 28 प्रतिशत ही प्रभावित करेगा, लेकिन बाकी 72 प्रतिशत पर इसका बड़ा असर पड़ेगा। उन्होंने अनुमान लगाया है कि भारत के कपड़ा, आभूषण जैसे श्रम-प्रधान उद्योगों का निर्यात अगले एक साल में 70 से 90 प्रतिशत तक गिर सकता है। “अगले छह महीनों में गिरावट तेज होगी,” उन्होंने एक वेबिनार में कहा।

पूर्व इस्पात सचिव अरुणा शर्मा ने कहा, “यह टैरिफ खासकर टेक्सटाइल क्षेत्र को बहुत प्रभावित करेगा।”

25 प्रतिशत टैरिफ तब चिंता का विषय नहीं था क्योंकि प्रतिस्पर्धी देशों पर भी समान टैरिफ थे, लेकिन 50 प्रतिशत बहुत अधिक है।

यह व्यापार युद्ध नई बात नहीं है। ट्रंप के पहले कार्यकाल में स्टील और एल्युमिनियम पर आयात कर लगाया गया था, जो चीन और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों को निशाना बनाता था, लेकिन अब दूसरे कार्यकाल में इसका प्रभाव अमेरिका के सहयोगी देशों जैसे भारत और ब्राजील पर भी पड़ रहा है।

भारत 27 अगस्त से अमेरिका को 50 प्रतिशत टैरिफ देगा, वहीं ब्राजील भी 50 प्रतिशत टैरिफ दे रहा है क्योंकि उसने पूर्व राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के खिलाफ आरोप वापस लेने से इनकार कर दिया है। बोल्सोनारो ट्रंप के करीबी रहे हैं, और ये दोनों मामलों का अमेरिका से सीधे व्यापार से कोई संबंध नहीं है। चीन 30 प्रतिशत टैरिफ दे रहा है। पड़ोसी पाकिस्तान, जिसे बाइडेन प्रशासन ने नजरअंदाज किया है लेकिन ट्रंप ने व्हाइट हाउस में उसके सेना प्रमुख के लिए दोपहर का भोजन करवाया था और अरबों डॉलर की मदद दी थी, वह 19 प्रतिशत टैरिफ देगा।

यूरोपियन थिंक टैंक ‘स्ट्रैटेजिक पर्सपेक्टिव्स’ के वरिष्ठ विशेषज्ञ और बुल्गारिया के पूर्व मंत्री जूलियन पोपोव का कहना है, “ट्रंप की नीतियों को समझना कठिन है।” इस सप्ताह ट्रंप ने चीन पर टैरिफ फिर से लागू करने की समयसीमा को 90 दिनों के लिए बढ़ा दिया है।

भारत अमेरिका के साथ लगभग 40 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष रखता है, जबकि ब्राजील का व्यापार घाटा है। चीन अमेरिका के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी के रूप में लगभग 300 अरब डॉलर का व्यापार अधिशेष रखता है।

ट्रंप की राजनीति के तीन पहलू: 37 साल तक कूटनीतिज्ञ रहे सिंह का विश्लेषण

पूर्व कूटनीतिज्ञ सिंह ने बताया कि ट्रंप की राजनीति में तीन मुख्य तत्व हैं। पहला, ट्रंप खुद को शांति निर्माता के रूप में दिखाना चाहते हैं। उन्होंने दावा किया है कि छह महीनों में उन्होंने अफ्रीका, दक्षिण पूर्व एशिया, काकेशस और दक्षिण एशिया के कई विवाद सुलझाए हैं। लेकिन यह भारत की विदेश नीति के क्षेत्रीय दृष्टिकोण और द्विपक्षीय संबंधों पर जोर देने से मेल नहीं खाता। भारत इस मामले में अपने रुख से हट नहीं सकता।

दूसरा, ट्रंप अपने MAGA (Make America Great Again) समर्थकों को यह दिखाना चाहते हैं कि उन्होंने अमेरिकी निर्माण क्षेत्र के लिए सबसे अधिक काम किया है। वह ऐसे व्यापार समझौतों को लेकर दावा करते हैं, जिनमें अमेरिका को सीमित निवेश और बाजार पहुंच नहीं दी जाती, लेकिन अमेरिका को व्यापक लाभ होता है।

ट्रंप का कहना है कि इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे देश अमेरिकी बाजार खोलने के बाद भी आयात कर लगाते हैं। जापान, दक्षिण कोरिया और यूरोपीय संघ ने अमेरिका में 1.5 ट्रिलियन डॉलर का निवेश किया है, लेकिन फिर भी 15 प्रतिशत आयात कर देना होगा।

तीसरा, सिंह के अनुसार, ट्रंप की रूस के साथ संबंधों का पहलू है। वे यूक्रेन युद्ध को खत्म करना चाहते हैं और इसलिए रूस पर अधिक प्रतिबंध नहीं लगाना चाहते। लेकिन अमेरिकी कांग्रेस रूस पर दबाव बढ़ाने को लेकर ट्रंप पर लगातार जोर डाल रही है, जिसके चलते ट्रंप द्वितीयक आयात करों को हथियार के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं।

चीन, रूस के तेल और गैस का सबसे बड़ा आयातक है और वेनेजुएला तथा ईरान से सस्ता प्रतिबंधित तेल खरीदने वाला भी, इसलिए ट्रंप के और टैरिफ लगाने के फैसले का असर अमेरिकी उपभोक्ताओं और उद्योगों पर पड़ता है। इसी वजह से ट्रंप ने भारत पर भी निशाना साधा है।

विश्लेषक बेंटले का कहना है कि चीन, मैक्सिको या कनाडा के मुकाबले भारत बड़ा व्यापारिक साझेदार नहीं है।

हालांकि, विशेषज्ञ श्रीवास्तव का कहना है कि निकट भविष्य में भारत फंसा हुआ है। रूस पर 25 प्रतिशत टैरिफ खत्म होने से भारत के निर्यात में 25 अरब डॉलर की बढ़ोतरी होगी, जबकि रूस से सस्ते तेल की खरीद पर 13 अरब डॉलर की बचत होगी। “इसलिए हम सकारात्मक स्थिति में रहेंगे।”

तेल परिष्करण क्षेत्र के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि ट्रंप पर टैरिफ हटाने या फिर भारत पर फिर से टैरिफ लगाने की गारंटी नहीं दी जा सकती। ऐसा हो सकता है कि ट्रंप भारत को ब्रिक्स समूह का सदस्य मानकर फिर से टैरिफ लगा दें। ब्रिक्स में चीन, ब्राजील, रूस, दक्षिण अफ्रीका जैसे देश भी शामिल हैं। ट्रंप ने ब्रिक्स देशों पर अलग से टैरिफ लगाने की धमकी दी है क्योंकि वे डॉलर पर निर्भरता कम करना चाहते हैं, हालांकि भारत डॉलर का इस्तेमाल छोड़ने को लेकर हिचकिचा रहा है।

भारत और रूस के बीच कई दशकों से गहरे रिश्ते हैं। रूस के सैन्य उपकरण जैसे S-400 मिसाइल और ब्रह्मोस मिसाइल सिस्टम ने ऑपरेशन सिंदूर में भारत को पाकिस्तान पर बढ़त दिलाई थी। रूस की सरकारी कंपनी रोज़नेफ्ट ने 2017 में नायरा एनर्जी के लिए लगभग 13 अरब डॉलर का निवेश किया था, जो भारत के ऊर्जा क्षेत्र में सबसे बड़ा निवेश है। भारतीय रिफाइनर कंपनियों ने 2022 की शुरुआत से रूस से कच्चे तेल की खरीद पर 15 अरब डॉलर से ज्यादा की बचत की है। साथ ही, तमिलनाडु के कूडनकुलम में रूस के प्रेशराइज्ड वाटर रिएक्टर भारत के सबसे बड़े परमाणु बिजली केंद्र को चलाते हैं।

विश्लेषकों के अनुसार, इस समय भारत के लिए भू-राजनीतिक और कूटनीतिक तौर पर स्थिति बहुत चुनौतीपूर्ण है। इस पूरी स्थिति में चीन सबसे बड़ा लाभार्थी बन रहा है। हालांकि, दीर्घकालिक दृष्टिकोण से अमेरिका और भारत के बीच कई मुद्दों पर सहमति बनती दिख रही है, लेकिन वर्तमान समय चुनौतीपूर्ण है।

First Published : August 13, 2025 | 10:03 AM IST