गाम्बिया के बाद अब उज्बेकिस्तान में भी भारतीय कंपनी की दवा को बच्चों की मौत का जिम्मेदार बताया गया है। वहां की सरकार का आरोप है कि नोएडा की एक कंपनी के बनाए कफ सिरप से 18 बच्चों की मौत हो गई। इससे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने आरोप लगाया था कि एक अन्य भारतीय कंपनी का कफ सिरप पीकर गाम्बिया में 70 बच्चों की मौत हो गई। खबर लिखे जाने तक उज्बेकिस्तान की घटना पर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई थी।
उज्बेकिस्तान की समाचार वेबसाइट एकेआई.कॉम में छपी खबरों के मुताबिक जुकाम की दवा डॉक-1 मैक्स के कारण कई बच्चों की मौत का आरोप है। यह दवा नोएडा की कंपनी मैरियन बायोटेक बनाती है। उज्बेकिस्तान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा है कि डॉक-1 मैक्स के नमूनों में एथिलीन ग्लाइकॉल पाया गया है। डॉक-1 मैक्स सिरप और गोलियां जुकाम के इलाज में इस्तेमाल होती हैं।
एथिलीन ग्लाइकॉल दवाओं में जहर की तरह काम करता है। यह उद्योगों में इस्तेमाल होने वाली ग्लिसरीन में पाया जाता है और दवाओं में इसके इस्तेमाल की इजाजत नहीं है। एथिलीन ग्लाइकॉल के सेवन से मरोड़ उठ सकते हैं, गुर्दे खराब हो सकते हैं, रक्त संचार पर असर पड़ सकता है और उल्टियां भी हो सकती हैं।
मैरियन बायोटेक को भेजे ईमेल का खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं आया था। मगर कंपनी की वेबसाइट कहती है कि सर्दी और फ्लू के कारण खांसी, गले में खराश, बंद नाक, साइन्युसाइटिस, सिर दर्द, बदन दर्द और बुखार होने पर डॉक-1 मैक्स गोलियां दी जाती हैं। वेबसाइट यह भी कहती है कि इस दवा में मौजूद किसी भी सामग्री के प्रति संवेदनशील लोगों, ग्लूकोमा, मोनोएमीनऑक्सिडेज से बनी दवा ले रहे लोगों और यकृत की गड़बड़ी के शिकार लोगों को इसके सेवन से बचना चाहिए।
वेबसाइट पर लिखा हुआ कि इस दवा में मौजूद घटक बंद नाक से राहत दिलाते हैं। मैरियन बायोटेक का नोएडा में एक संयंत्र है जो भारतीय और वैश्विक बाजारों के लिए दवाएं बनाता है। अभी यह पता नहीं चल पाया है कि डॉक-1 मैक्स भारत में भी बिकती है या नहीं।
इससे कुछ महीने पहले (डब्ल्यूएचओ ने कहा था कि भारतीय कंपनी मेडन फार्मास्युटिकल्स द्वारा बनाए गए कफ सिरप से गाम्बिया में 70 बच्चों की मौत हो गई। इसके बाद भारतीय नियामकों ने मेडन फार्मा के सोनीपत कारखाने में उत्पादन रुकवा दिया और नमूने इकट्टे किए। लेकिन इसी महीने भारतीय औषधि महानियंत्रक ने कहा कि नमूनों में कोई गड़बड़ी नहीं पाई गई।
उसने डब्ल्यूएचओ को कड़े शब्दों में पत्र लिखकर कहा कि उसने हड़बड़ी में दोनों घटनाओं को जोड़ दिया था। मगर डब्ल्यूएचओ अपनी बात पर अड़ा रहा और कहा कि घाना तथा स्विट्जरलैंड में उसकी प्रयोगशालाओं में उस कफ सिरप की जांच की गई और उसमें जरूरत से ज्यादा एथिलीन ग्लाइकॉल और डाईएथिलीन ग्लाइकॉल पाया गया। मेडन फार्मा के कारखाने में उत्पादन दोबारा शुरू नहीं किया गया है।
इस बीच केंद्रीय औषधि मानक नियंत्रण संगठन (सीडीएससीओ) ने राज्य प्रशासनों के साथ मिलकर पूरे देश में चुनिंदा दवा कारखानों की जांच शुरू कर दी है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कल कहा कि इसका मकसद देश में उपलब्ध दवाओं की सुरक्षा, उनका कारगर होना और उनकी गुणवत्ता सुनिश्चित करना है।
जांच, रिपोर्ट और औषधि एवं सौंदर्य प्रसाधन अधिनियम, 1940 तथा नियम, 1945 का अनुपालन सुनिश्चित कराने के लिए उचित कार्रवाई पर नजर रखने के लिए सीडीएससीओ के मुख्यालय में दोनों औषधि नियंत्रकों की संयुक्त समिति बनाई गई है। मंत्रालय ने कहा कि इससे देश में बनने वाली दवाओं में गुणवत्ता के उच्च मानक सुनिश्चित हो सकेंगे।