देश में एक बार फिर कोरोना वायरस से संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है और इस बार संक्रमण का सबसे ज्यादा असर युवाओं पर पड़ रहा है। डॉक्टरों के अनुसार, कोविड-19 की मौजूदा लहर में 18 से 45 वर्ष की आयु वर्ग के लोग सबसे ज्यादा संक्रमित हो रहे हैं। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के कोविड डैशबोर्ड पर उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, 19 जून तक देश के 29 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में कुल 5,976 सक्रिय मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें से सबसे ज्यादा 1,309 मामले केरल में हैं। इसके बाद गुजरात में 1,046 और दिल्ली में 632 सक्रिय मामले हैं। हालांकि सरकार कोविड मामलों का आयु या लिंग के अनुसार वर्गीकरण नहीं देती, लेकिन डॉक्टरों का कहना है कि 18 से 45 साल की उम्र के युवाओं में कोविड-19 संक्रमण के मामलों में स्पष्ट बढ़ोतरी देखी जा रही है।
गुरुग्राम स्थित सीके बिड़ला हॉस्पिटल में इंटरनल मेडिसिन के कंसल्टेंट डॉ. तुषार तायल ने बताया कि हर दिन औसतन 10–12 मरीज फ्लू जैसे लक्षणों के साथ उनके पास आ रहे हैं और इनमें से एक छोटा लेकिन लगातार हिस्सा कोविड-19 पॉजिटिव पाया जा रहा है। उन्होंने कहा, “यह एक ‘साइलेंट सर्ज’ (चुपचाप बढ़ते मामलों) का संकेत हो सकता है, जिसे अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है क्योंकि इसके लक्षण अन्य वायरल इंफेक्शनों से मिलते-जुलते हैं और टेस्टिंग की दर में भी समग्र रूप से कमी आई है।”
गुरुग्राम स्थित पारस हेल्थ में संक्रामक रोगों के सलाहकार आकाशनील भट्टाचार्य ने कहा कि उनके पास आने वाले 80-85% कोविड मरीज 18-45 आयु वर्ग के हैं। उन्होंने कहा कि पहले जिन युवाओं को गंभीर बीमारी का कम जोखिम माना जाता था, अब वे भी संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं—खासतौर पर वे लोग जिनकी वैक्सीनेशन हिस्ट्री कमजोर रही है या जिनकी इम्युनिटी समय के साथ कम हो चुकी है।
बेंगलुरु के शेषाद्रिपुरम स्थित अपोलो हॉस्पिटल्स में संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉ. दिव्या के. एस. ने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में इम्यूनिटी के कम होने और इम्यूनिटी से बच निकलने वाले नए वेरिएंट्स के उभरने की वजह से युवा आबादी अब पहले से ज्यादा संवेदनशील हो गई है।
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डॉ. तायल ने बताया कि 18 से 25 वर्ष की आयु वर्ग के अधिकतर मरीज तेज बुखार, गले में दर्द, थकान, शरीर में दर्द और कभी-कभी मतली या दस्त जैसे गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षणों के साथ आ रहे हैं। कुछ लोगों को कई दिनों तक सूखी खांसी और हल्की सांस लेने में दिक्कत की शिकायत भी हो रही है। उन्होंने आगे कहा कि 30 वर्ष से अधिक आयु के मरीजों में लक्षण ज्यादा समय तक बने रहते हैं और लंबे समय तक थकान या पोस्ट-वायरल खांसी के मामले ज्यादा देखे जा रहे हैं।
इस बारे में कारण बताते हुए डॉ. भट्टाचार्य ने कहा कि युवा लोग संक्रमण के ज्यादा जोखिम में इसलिए हैं क्योंकि वे अधिकतर समय बाहर रहते हैं और समुदाय के अन्य लोगों के संपर्क में आते हैं। उन्होंने कहा, “अब तक हमें ऐसे मरीज नहीं दिखे हैं जिन्हें गंभीर निमोनिया हो या जिनका ऑक्सीजन स्तर बहुत कम हो। कुछ मरीजों में मामूली निमोनिया जरूर देखा गया है, लेकिन उन्हें ऑक्सीजन की जरूरत नहीं पड़ी है।”
हालांकि तायल ने यह भी कहा कि युवा मरीजों में कोविड के अधिकतर मामले गंभीर नहीं हैं, फिर भी लापरवाही से बचना जरूरी है। उन्होंने कहा, “ऐसे मामले सामने आ रहे हैं जहां पहले वैक्सीन लगवा चुके या पहले संक्रमित हो चुके लोग दोबारा कोविड की चपेट में आ रहे हैं, जो वायरस स्ट्रेन में बदलाव की ओर इशारा करता है।”
उन्होंने यह भी कहा कि एक बड़ी वजह यह है कि कई युवा मरीज जांच में देरी कर रहे हैं क्योंकि वे इसे मौसमी फ्लू या सामान्य वायरल बुखार मानकर नजरअंदाज कर देते हैं।
बेंगलुरु के नारायणा हेल्थ सिटी में इंटरनल मेडिसिन कंसल्टेंट डॉ. निधिन मोहन ने बताया कि ऐसे लोगों में कोविड के मामले बढ़ रहे हैं जिन्होंने हाल ही में काम या शादी जैसे कार्यक्रमों के लिए यात्रा की और जरूरी सावधानी नहीं बरती।
मुंबई के सैफी अस्पताल में कंसल्टेंट फिजिशियन और क्रिटिकल केयर मेडिसिन विभाग के प्रमुख डॉ. दीपेश जी अग्रवाल ने कहा, “जो वायरस जल्दी फैलते हैं, वे एक साथ समय बिताने वाले लोगों में तेजी से फैलते हैं। इसलिए युवा, जो ऑफिस या सामाजिक जगहों पर ज्यादा मिलते-जुलते हैं, उनमें संक्रमण के मामले ज्यादा देखे जा रहे हैं।”