प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
बाजार पर बिचौलियों के कब्जे, कई साल से ठहरी कीमतें, प्रसंस्करण इकाइयों की किल्लत और मौसम की मार ने प्रतापगढ़ के आंवले को बदरंग कर दिया है। देश में सबसे अधिक आंवला उत्पादन के लिए मशहूर उत्तर प्रदेश के इस जिले में अब किसान धान, गेहूं, किन्नू, अनार जैसी फसलें उगाने लगे हैं।
महंगी मजदूरी और मामूली से मुनाफे के कारण किसानों ने आंवले से ऐसा मुंह मोड़ा है कि प्रतपागढ़ जिले में आंवले का रकबा पांच साल में 12,000 हेक्टेयर से घटर 7,000 हेक्टेयर ही रह गया है। देश के कुल आंवला उत्पादन में अभी 35-40 फीसदी योगदान उत्तर प्रदेश का है, जिसमें से 80 फीसदी आज भी प्रतापगढ़ में ही होता है। जिले में हर साल करीब 3.50 लाख टन आंवला उगाया जाता है। उसके बाद पड़ोस के जिलों सुल्तानपुर, रायबरेली और फैजाबाद में भी आंवले की खेती होती है। एटा जिले में भी करीब 150-200 हेक्टेयर रकबे में आंवला उगाया जाता है।
महंगाई, खाद और कीटनाशकों की कीमतें बढ़ने के बाद भी फसल का दाम नहीं बढ़ने से प्रतापगढ़ के किसानों का आंवले से मोहभंग हुआ है। उनका कहना है कि सितंबर से शुरू होने वाले सीजन से पहले ही खाद तथा कीटनाशक डालने होते हैं, जो कालाबाजारी के कारण या तो मिलते ही नहीं या महंगे मिलते हैं। किसानों को उम्मीद है कि बारिश के बाद अच्छी बारिश के कारण इस साल उत्पादन बढ़ सकता है और प्रतापगढ़ से ही 4 लाख टन आंवला आ सकता है मगर उन्हें कीमतों के मोर्चे पर कोई उम्मीद नहीं है। उनका कहना है कि पिछली बार औसत से कम फसल होने पर भी दाम नहीं मिले थे तो इस बार भरपूर उत्पादन होने पर क्या मिलेंगे?
प्रतापगढ़ जिले में आंवला मंडी पूरी तरह से बिचौलियों के हवाले है और वे ही कीमत तय करते हैं। जिले के महुली इलाके में लंबे अरसे से रात में आंवले की मंडी लगती है और केवल दस आढ़ती फसल का भाव तय कर देते हैं। आंवले का प्रयोग जूस, पाउडर, दवा, मुरब्बा, अचार, कैंडी, लड्डू और दूसरी मिठाइयां बनाने में होता है और देश भर की कंपनियां प्रतापगढ़ का आंवला ही इस्तेमाल करती हैं। लेकिन कोई भी सीधे किसान से फसल नहीं लेती बल्कि बिचौलियों के पास जाती है।
किसानों का कहना है कि पिछले साल फसल कम रहने पर भी मंडी में केवल 6 रुपये किलो भाव मिला था, जबकि आंवले की तोड़ाई के लिए एक मजदूर को ही रोजाना 200 रुपये देने पड़ते हैं। प्रदेश सरकार के उद्यान विभाग के अधिकारी भी स्वीकार करते हैं कि रात की मंडी में दर्जन भर आढ़ती ही कीमत तय करते हैं, जिससे किसानों को फसल का लाभ नहीं मिलता। किसान चाहते हैं कि कंपनियां सीधे किसानों से माल खरीदें और सरकार इसकी व्यवस्था करे।
प्रतापगढ़ के आंवला किसानों की बदहाली का मामला इस साल बजट सत्र के दौरान संसद में भी उठा था और बड़ी प्रसंस्करण इकाई लगाने की मांग उठी थी। सरकार ने आंवले की पैकिंग, ग्रेडिंग और प्रोसेसिंग की सुविधा के लिए 1.20 करोड़ रुपये खर्च कर यहां आंवला पैक हाउस बनवा दिया है मगर अभी वह चालू नहीं हुआ है।
उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रतापगढ़ के आंवले को एक जिला एक उत्पाद (ओडीओपी) योजना में शामिल किया है। इसके बाद प्रतापगढ़ के नाम पर देश भर में आंवला उत्पाद पहुंच रहे हैं मगर किसानों को कोई फायदा नहीं हो रहा। उनका कहना है कि ओडीओपी के तहत कुछ लोगों ने छोटे स्तर पर मुरब्बा, त्रिफला, कैंडी बनाना शुरू गिया है मगर वे भी कच्चा माल बिचौलियों से ही खरीदते हैं। उद्यान विभाग के अनुसार प्रधानमंत्री शुद्ध खाद्य योजना और उद्योग निधि के तहत प्रसंस्करण इकाई लगाने पर 30 फीसदी (अधिकतम 10 लाख रुपये) तक सब्सिडी मिलती है मगर किसानों को इसका फायदा भी नहीं मिल रहा। विभाग के मुताबिक जिले में पिछले दो साल में मुश्किल से 350 लोगों ने इन योजनाओं का लाभ लिया है।
प्रतापगढ़ के आंवला किसान राजेश मिश्रा की मांग है कि सरकार ही हर साल आंवले की कीमत तय करे और इसके सरकारी खरीद केंद्र खोले। इससे खुले बाजार में दाम नहीं गिरेंगे और बिचौलियों की मनमानी रुक जाएगी। किसान धान और गेहूं की तरह आंवले के लिए भी रियायती दाम पर खाद की मांग कर रहे हैं क्योंकि खुले बाजार से खाद और कीटनाशक दवाएं बहुत महंगी पड़ रही हैं। मिश्रा कहते
हैं कि पिछले दो-तीन साल से मौसम में बदलाव के कारण आंवले में लुटूरा रोग लग रहा है और दवा छिड़कनी पड़ती है, जो महंगी पड़ जाती है।
प्रतापगढ़ जिले के अलावा उत्तर प्रदेश के बाकी जिलों में भी आंवले की खेती नहीं बढ़ रही। प्रतापगढ़ में आंवला उगाने वाले किसान वीरेंद्र सिंह कहते हैं कि बुंदेलखंड की सीमा पर बसे इस पिछड़े इलाके में बिना पूंजी के उगने वाली इस फसल का बड़ा सहारा था और इसीलिए दशकों से यहां आंवला उगाया जा रहा है। फैजाबाद के कुमारगंज में बने कृषि विश्वविद्यालय ने आंवले की अच्छी प्रजातियां विकसित कीं, जिनका पेड़ एक बार लगने पर 20 साल तक आंवले देता रहता है। मगर बदलते हालात में कई किसान आंवले की जगह अनार, किन्नू और संतरे की खेती करने लगे हैं। कई किसान तो आंवले के पेड़ काटकर वापस धान और गेहूं लगा रहे हैं।