प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में सार्वजनिक यातायात की कमी और फुटपाथों पर अतिक्रमण की वजह से लोगों की मुश्किलें लगातार बढ़ रही हैं। इसे देखते हुए शहर में इलेक्ट्रिक बसों की संख्या 10 गुना तक बढ़ाने का सुझाव दिया गया है।
यह पहल द क्लाइमेट एजेंडा के हरित सफर अभियान के तहत की जा रही है। इस अभियान का मकसद शहरी परिवहन को ज्यादा न्यायसंगत और पर्यावरण के अनुकूल बनाना है। इसी कड़ी में क्लाइमेट एजेंडा ने आईआईटी बीएचयू और इनवायरोकैटलिस्ट के विशेषज्ञों की मदद से लखनऊ की यातायात व्यवस्था पर दो अध्ययन रिपोर्ट तैयार की हैं। इन रिपोर्टों में ट्रैफिक जाम, हवा की गुणवत्ता और सार्वजनिक यातायात की स्थिति का विश्लेषण किया गया है। इसके साथ ही उत्तर प्रदेश की इलेक्ट्रिक वाहन निर्माण और मोबिलिटी नीति का आकलन भी किया गया है। यह रिपोर्ट शनिवार को लखनऊ में जारी की जाएगी।
रिपोर्ट के अनुसार लगातार ट्रैफिक जाम, बढ़ता प्रदूषण, सफर का ज्यादा खर्च और समय की बर्बादी लखनऊ के लोगों की सबसे बड़ी समस्या बन चुकी हैं। इन दिक्कतों से राहत पाने के लिए ज्यादा से ज्यादा सार्वजनिक इलेक्ट्रिक वाहनों की जरूरत है।
Also Read: दोपहिया कंपनियों का R&D खर्च हुआ दोगुना, 5 साल में 107% उछला; EV और नई तकनीक पर जोर
इस समय राजधानी में निजी और सरकारी मिलाकर केवल 279 बसें चल रही हैं, जिनमें से 140 ही इलेक्ट्रिक हैं। जबकि सुगम और प्रदूषण रहित यातायात के लिए कम से कम 2000 इलेक्ट्रिक बसों की जरूरत है। केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्रालय के मानकों के मुताबिक, हर एक लाख लोगों पर 50 बसें होनी चाहिए। इस हिसाब से लखनऊ में बसों की संख्या बेहद कम है। रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि प्रदूषण और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए बसों को पूरी तरह इलेक्ट्रिक में बदलना जरूरी है।
द क्लाइमेट एजेंडा की संस्थापक एकता शेखर ने कहा कि रिपोर्ट से साफ है कि राज्य को निवेश, नवाचार और टिकाऊ शहरी जीवन के लिए एक मजबूत रणनीति बनाने की जरूरत है। यह निष्कर्ष राजनीतिक और नीतिगत नेताओं के लिए एक संदेश है कि वे लोगों-केंद्रित, समावेशी और जलवायु-हितैषी शहरी परिवहन व्यवस्था पर गंभीर संवाद शुरू करें।