भारत में चीता प्रजाति को दोबारा बसाने के लिए विदेश से चीते लाए जाने के दो साल से अधिक समय बीत चुका है मगर उन्हें अब भी प्राकृतिक रूप से पर्याप्त शिकार नहीं मिल पा रहा है। बिज़नेस स्टैंडर्ड को मिली जानकारी के अनुसार, चीतों को जंगल में शिकार के लिए तेंदुआ जैसे अन्य जानवरों से तगड़ी प्रतिस्पर्धा से भी जूझना पड़ रहा है। इससे चीतों की देखभाल पर नजर रखने वाले वरिष्ठ अधिकारियों की चिंता बढ़ गई है।
चीतों को भारत में 1952 में विलुप्त घोषित कर दिया गया था। मगर सरकार ने मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों को नए सिरे से बसाने का निर्णय लिया। इसी क्रम में 17 सितंबर, 2022 को नामीबिया से 8 चीते और 18 फरवरी, 2023 को दक्षिण अफ्रीका से 12 चीते लाए गए। सरकारी सूत्रों के अनुसार, 10 चीतों की मौत हो गई और अब वहां 26 चीते मौजूद हैं। चीता परियोजना निगरानी समिति (सीपीएमसी) की पिछले साल 23 अगस्त को हुई 10वीं बैठक की रिपोर्ट में कहा गया, ‘कूनो और गांधीसागर दोनों में चीतों द्वारा हिरणों के शिकार बढ़ाने पर गंभीरतापूर्वक ध्यान देने की जरूरत है। कूनो में उन कारकों की पहचान करना जरूरी है जो शिकार को सीमित करते हैं।’
बैठक में इस बात पर गौर किया गया कि करीब 350 वर्ग किलोमीटर में फैला कुनो का पुराना अभयारण्य क्षेत्र चित्तीदार हिरणों का गढ़ है जहां प्रति वर्ग किलोमीटर 17.5 जानवर मौजूद हैं। मगर 400 वर्ग किलोमीटर के शेष संरक्षित क्षेत्र में हिरणों की मौजूदगी काफी कम है। वहां प्रति वर्ग किलोमीटर हिरणों की मौजूदगी महज 1.5 हिरण है।
यह कोई पहला मौका नहीं है जब सीपीएमसी ने चीतों के लिए शिकार की कम उपलब्धता पर चिंता जताई है। समिति ने मई 2023 में अपनी स्थापना के बाद 30 मई, 2023 को हुई अपनी पहली बैठक में भी कहा था कि चीतों के लिए प्राकृतिक शिकार बढ़ाने की जरूरत है।
सीपीएमसी के चेयरमैन राजेश गोपाल से बिज़नेस स्टैंडर्ड ने पूछा कि चीतों के लिए शिकार की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए पिछले छह महीनों के दौरान क्या उपाय किए गए हैं। इस पर गोपाल ने कहा कि इसके लिए कई कदम उठाए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि अन्य जगहों से जानवरों को कूनो में स्थानांतरित किया जा रहा है ताकि शिकार की आबादी तेजी से बढ़ सके। इसके अलावा ‘इन-सीटू रिवाइवल’ को लागू किया गया है। इस प्रक्रिया के तहत संरक्षित बाड़े बनाए जाते हैं जहां हिरण जैसी प्रजातियां शिकारियों से तत्काल खतरे के बिना प्रजनन बढ़ा सकती हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कूनो लाए गए चीते लगातार प्राकृतिक शिकार कर रहे हैं और इससे पता चलता है कि अब स्थिति सुधरने लगी है।
सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में घोषणा की थी कि गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में एक इन-सीटू बाड़े में चीते भी रखे जाएंगे। मगर बाड़े का निर्माण जारी रहने के कारण अब तक चीतों को वहां नहीं छोड़ा गया है।
केन्या एवं अन्य दक्षिण अफ्रीकी देशों से 20 वयस्क चीते लाने की योजना है। इसके लिए सभी आवश्यक मंजूरियां मिल चुकी हैं। अधिकारी अब रकम की व्यवस्था करने, शिकार की तादाद बढ़ाने आदि व्यवस्था कर रहे हैं। पिछले साल दिसंबर में एक सरकारी अधिकारी ने अपनी पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा था इन प्रक्रियाओं को पूरा होने के बाद मार्च तक चीतों को भारत लाने जाने की उम्मीद है। भारत नामीबिया, सोमालिया, दक्षिण अफ्रीका, सूडान और तंजानिया से चीते मंगाता है। इस मुद्दे पर जानकारी के लिए बिज़नेस स्टैंडर्ड द्वारा 26 फरवरी को भेजे गए सवालों का पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) और मध्य प्रदेश सरकार ने खबर लिखे जाने तक कोई जवाब नहीं दिया।
सीपीएमसी की अब तक 12 बैठकें हो चुकी हैं। हाल में 19 फरवरी को उसकी बैठक हुई थी। बिज़नेस स्टैंडर्ड ने पहली 11 बैठकों के नतीजों की समीक्षा की है। सरकारी सूत्रों ने इस समाचार पत्र को बताया कि 19 फरवरी की हालिया बैठक में शिकार जानवारों की कम उपलब्धता पर भी चर्चा की गई।
सीपीएमसी ने कूनो राष्ट्रीय उद्यान में चीतों के लिए शिकार की पर्याप्त उपलब्धता न होने पर बार-बार चिंता जताई है। अधिकारी और विशेषज्ञ वहां लाए गए चीतों के लिए अनुकूल परिवेश सुनिश्चित करने की चुनौती से लगातार जूझ रहे हैं।
सीपीएमसी के एक सदस्य ने 10 अगस्त, 2023 को आयोजित चौथी बैठक में कूनो राष्ट्रीय उद्यान में काम करने वाली फील्ड टीमों की प्रशंसा करते हुए शिकार की कमी पर चिंता जताई थी। एक अन्य सदस्य ने भी सहमति जताई कि वहां शिकार की पर्याप्त उपलब्धता नहीं है। समिति ने 4 सितंबर, 2023 आयोजित अपनी पांचवीं बैठक में कहा कि शिकारों की तादाद बढ़ाने के लिए प्रयास जारी रहने चाहिए।
सीपीएमसी के अध्यक्ष ने 27 अक्टूबर, 2023 हुई छठी बैठक में कहा था कि जब तक शिकारों की उपलब्धता पर्याप्त न हो जाए तब तक किसी भी चीते को बड़े बाड़ों से जंगल में नहीं छोड़ा जाएगा। समिति ने यह भी कहा था कि कूनो राष्ट्रीय उद्यान ‘एली प्रभाव’ से जूझ रहा है। यह एक जैविक घटना है जहां आबादी के एक खास सीमा से नीचे गिरने पर उसमें और गिरावट आती है। ऐसे में उसे संभालना काफी मुश्किल हो जाता है। जहां तक कूनो का सवाल है तो वहां हिरण आदि जानवरों का तेंदुओं द्वारा शिकार किए जाने एवं कुछ अन्य प्राकृतिक कारकों के कारण शिकार जानवरों की आबादी पहले से ही कम हो रही थी। अगर शिकार की आबादी काफी कम हो जाती है तो उसे प्राकृतिक तौर पर ठीक करने के लिए काफी संघर्ष करना पड़ सकता है। ऐसे में चीतों के लिए भोजन किल्लत की समस्या अधिक गंभीर हो सकती है।
समिति ने इस समस्या से निपटने के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान (डब्ल्यूआईआई) की टीम को सलाह दी है कि अन्य जगहों पर इस्तेमाल की जाने रणनीतियों का अध्ययन किया जाए। विशेष रूप से कनाडा में पहाड़ी शेरों के लिए शिकार की उपलब्धता बढ़ाने के लिए किए गए प्रयासों पर गौर किया जा सकता है। सीपीएमसी ने गांधी सागर वन्यजीव अभयारण्य में शिकारों की तादाद बढ़ाने की आवश्यकता पर भी जोर दिया क्योंकि वहां चीतों को छोड़ा जाना है।
समिति के एक सदस्य ने 13 दिसंबर, 2023 को आयोजित 7वीं बैठक में इस बात पर जोर दिया कि स्थानांतरण के जरिये अधिक समय तक शिकारों की उपलब्धता जारी नहीं रह सकती है। इसलिए बाड़ों के जरिये उनकी आबादी बढ़ाने पर ध्यान देना चाहिए। कूनो में शिकार जानवरों की आबादी के एक आकलन से पता चलता है कि वहां प्रति वर्ग किलोमीटर 17 शिकार उपलब्ध हैं। जबकि बेहतर उपलब्धता वाले इलाके में प्रति वर्ग किलोमीटर 30 से 35 शिकार जानवर मौजूद हैं। वहां तेंदुए की आबादी अधिक है जो प्रति 100 वर्ग किलोमीटर में करीब 26 है।