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रतन टाटा : दिग्गज उद्योगपति जो संत की तरह जीया…

टाटा ने व्यक्तिगत हैसियत से 30 से ज्यादा स्टार्ट-अप में निवेश किया, जिनमें ओला इलेक्ट्रिक, पेटीएम, स्नैपडील, लेंसकार्ट और ज़िवामे शामिल हैं।

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भाषा   
Last Updated- October 10, 2024 | 7:12 PM IST

दुनिया के सबसे प्रभावशाली उद्योगपतियों में शामिल रतन टाटा अपनी शालीनता और सादगी के लिए मशहूर रहे लेकिन वह कभी अरबपतियों की किसी सूची में नजर नहीं आए। वह 30 से ज्यादा कंपनियों के कर्ताधर्ता थे जो छह महाद्वीपों के 100 से अधिक देशों में फैली हैं लेकिन उन्होंने अपना जीवन एक संत की तरह जीया।

रतन नवल टाटा ने बुधवार की रात 86 वर्ष की आयु में मुंबई के एक अस्पताल में अंतिम सांस ली। सरल व्यक्तितत्व के धनी टाटा एक कॉरपोरेट दिग्गज थे, वहीं अपनी शालीनता और ईमानदारी के बूते वह एक संत की तरह जिए।

टाटा ने कभी शादी नहीं की। हालांकि, चार बार ऐसा हुआ जब उनकी शादी होने वाली थी। एक बार ऐसा तब हुआ जब वह अमेरिका में थे। उनके निधन से टाटा ट्रस्ट्स के शीर्ष पद पर एक खालीपन आ गया है, जिसके पास समूह की होल्डिंग कंपनी टाटा संस का 66 प्रतिशत हिस्सा है।

रतन टाटा के सौतेले भाई नोएल टाटा को उनके उत्तराधिकारी के रूप में एक मजबूत दावेदार के तौर पर देखा जा रहा है। नोएल टाटा, स्टील और घड़ी कंपनी टाइटन के उपाध्यक्ष हैं। उनकी मां और रतन टाटा की सौतेली मां सिमोन टाटा इस समय ट्रेंट, वोल्टास, टाटा इन्वेस्टमेंट कॉर्पोरेशन और टाटा इंटरनेशनल की अध्यक्ष हैं। रतन टाटा के छोटे भाई जिम्मी पारिवारिक उद्योग से नहीं जुड़े हैं और कोलाबार के एक दो कमरों के मकान में रहते हैं।

रतन टाटा का जन्म 1937 में एक पारंपरिक पारसी परिवार में हुआ था। उनके माता-पिता नवल और सूनी टाटा का तलाक होने के बाद उनकी दादी उन्हें अपने साथ ले आईं। उस समय रतन 10 वर्ष के थे। रतन टाटा 1962 में कॉर्नेल विश्वविद्यालय, न्यूयॉर्क से वास्तुकला में बी.एस. की डिग्री प्राप्त करने के बाद पारिवारिक कंपनी से जुड़ गए।

वह कैलिफोर्निया में बसना चाहते थे लेकिन दादी की खराब सेहत की वजह से भारत लौट आए थे। उस समय उन्हें आईबीएम कंपनी से नौकरी का प्रस्ताव मिला था, लेकिन टाटा संस के तत्कालीन अध्यक्ष और रतन टाटा के चाचा जहांगीर रतनजी दादाभाई (जेआरडी) टाटा ने उन्हें अपने समूह के लिए ही काम करने के लिए मनाया।

उन्होंने शुरुआत में टाटा समूह के कई व्यवसायों में अनुभव प्राप्त किया, जिसके बाद 1971 में उन्हें (समूह की एक फर्म) ‘नेशनल रेडियो एंड इलेक्ट्रॉनिक्स कंपनी’ का प्रभारी निदेशक नियुक्त किया गया। एक दशक बाद वह टाटा इंडस्ट्रीज के चेयरमैन बने और उन्होंने 1991 में अपने चाचा जेआरडी टाटा से टाटा समूह के चेयरमैन का पदभार संभाला। जेआरडी टाटा पांच दशक से भी अधिक समय तक इस पद पर रहे थे।

यह वह वर्ष था जब भारत ने अपनी अर्थव्यवस्था को खोला और 1868 में एक छोटे वस्त्र और व्यापार प्रतिष्ठान के रूप में शुरुआत करने वाले टाटा समूह ने शीघ्र ही खुद को एक वैश्विक उद्यम में बदल दिया, जिसका साम्राज्य नमक से लेकर इस्पात, कार से लेकर सॉफ्टवेयर, बिजली संयंत्र और एयरलाइन तक फैला गया था।

रतन टाटा दो दशक से अधिक समय तक समूह की मुख्य होल्डिंग कंपनी ‘टाटा संस’ के चेयरमैन रहे और इस दौरान समूह ने तेजी से विस्तार करते हुए वर्ष 2000 में लंदन स्थित टेटली टी को 43.13 करोड़ डॉलर में खरीदा, वर्ष 2004 में दक्षिण कोरिया की देवू मोटर्स के ट्रक-निर्माण परिचालन को 10.2 करोड़ डॉलर में खरीदा, एंग्लो-डच स्टील निर्माता कोरस समूह को 11.3 अरब डॉलर में खरीदा और फोर्ड मोटर कंपनी से मशहूर ब्रिटिश कार ब्रांड जगुआर और लैंड रोवर को 2.3 अरब डॉलर में खरीदा।

भारत के सबसे सफल उद्योगपतियों में से एक होने के साथ-साथ, वह अपनी परोपकारी गतिविधियों के लिए भी जाने जाते थे। परोपकार में उनकी व्यक्तिगत भागीदारी बहुत पहले ही शुरू हो गई थी। वर्ष 1970 के दशक में, उन्होंने आगा खान अस्पताल और मेडिकल कॉलेज परियोजना की शुरुआत की, जिसने भारत के प्रमुख स्वास्थ्य सेवा संस्थानों में से एक की नींव रखी।

साल 1991 में टाटा संस के चेयरमैन के रूप में उनकी नियुक्ति के बाद, टाटा के परोपकार संबंधी प्रयासों को नई गति मिली। उन्होंने अपने परदादा जमशेदजी द्वारा स्थापित टाटा ट्रस्ट को सक्रिय रूप से आगे बढ़ाया, ताकि महत्वपूर्ण सामाजिक आवश्यकताओं को पूरा किया जा सके। रतन टाटा ने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज जैसे उत्कृष्ट संस्थानों की स्थापना की।

साल 2008 में उन्हें देश के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। ईमानदारी और शालीनता की प्रतिमूर्ति होने के बावजूद, रतन टाटा विवादों से भी अछूते नहीं रहे। यूं तो समूह का नाम 2008 में 2जी दूरसंचार लाइसेंसों के आवंटन में हुए घोटाले में सीधे तौर पर नहीं आया था, लेकिन लॉबीस्ट नीरा राडिया को किए गए उनके कथित फ़ोन कॉल की लीक हुई रिकॉर्डिंग के जरिए उनका नाम सामने आया। बहरहाल उनका नाम अंतत: किसी गलत काम से नहीं जुड़ा।

दिसंबर 2012 में रतन टाटा ने टाटा संस की जिम्मेदारी साइरस मिस्त्री को दे दी जो उस समय तक उनके सहायक थे। हालांकि टाटा समूह में स्वामित्व रखने वाले लोगों को टाटा परिवार से बाहर के पहले सदस्य मिस्त्री के कामकाज के तरीके से दिक्कतें होने लगीं और अक्टूबर 2016 में टाटा समूह की कमान मिस्त्री के हाथ से चली गई।

रतन टाटा उस समय कंपनी में शेयरधारक थे और कई परियोजनाओं पर वह मिस्त्री से असहमत थे। इनमें रतन टाटा की महत्वाकांक्षी परियोजना ‘नैनो’ कार का उत्पादन बंद करने का मिस्त्री का फैसला भी शामिल था।

मिस्त्री के हटने के बाद रतन ने अक्टूबर 2016 से कुछ समय के लिए अंतरिम चेयरमैन के रूप में जिम्मेदारी संभाली और जनवरी 2017 में नटराजन चंद्रशेखरन को टाटा समूह का अध्यक्ष बनाए जाने के बाद वह सेवानिवृत्त हो गए। तब से वह टाटा संस के अवकाश प्राप्त चेयरमैन थे। इसी दौरान उन्होंने 21वीं सदी के कुछ युवा उद्यमियों की मदद की, अनेक प्रौद्योगिकी आधारित नवाचारों और स्टार्ट-अप में निवेश किया।

टाटा ने व्यक्तिगत हैसियत से 30 से ज्यादा स्टार्ट-अप में निवेश किया, जिनमें ओला इलेक्ट्रिक, पेटीएम, स्नैपडील, लेंसकार्ट और ज़िवामे शामिल हैं।

कुछ ही महीने पहले की बात है। वो एक मानसून की भीगी-भीगी सी शाम थी। कुत्तों से बेहद प्रेम और स्नेह रखने वाले रतन टाटा ने अपने सभी सहयोगियों, कर्मचारियों से कह दिया कि मुंबई के आलीशान इलाके में स्थित टाटा समूह के मुख्यालय के दरवाजे लावारिस कुत्तों के लिए खोल दिए जाएं।

टाटा समूह मुख्यालय में शरण लेने वाले बहुत से कुत्ते अपने मालिक रतन टाटा के स्नेह के चलते फिर वहीं के होकर रह गए। लेकिन अब उनसे स्नेह और प्रेम करने वाले रतन टाटा अनंत यात्रा पर चले गए हैं।

First Published : October 10, 2024 | 7:12 PM IST (बिजनेस स्टैंडर्ड के स्टाफ ने इस रिपोर्ट की हेडलाइन और फोटो ही बदली है, बाकी खबर एक साझा समाचार स्रोत से बिना किसी बदलाव के प्रकाशित हुई है।)