सर्वोच्च न्यायालय ने भ्रामक चिकित्सा विज्ञापनों के प्रकाशन पर अवमानना मामले में पतंजलि आयुर्वेद और उसके प्रबंध निदेशक आचार्य बालकृष्ण द्वारा बिना शर्त माफी मांगने के लिए दायर किए गए हलफनामों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। न्यायालय ने पतंजलि के सह-संस्थापक बाबा रामदेव द्वारा दायर माफी हलफनामे को भी स्वीकार नहीं किया।
न्यायमूर्ति हिमा कोहली और न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह के पीठ ने पिछले साल नवंबर में अदालत के सामने दिए गए एक वचन का उल्लंघन करते हुए भ्रामक विज्ञापन प्रसारित करने पर माफी मांगने के लिए दायर हलफनामे को खारिज कर दिया। न्यायालय ने पतंजलि की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी से कहा कि हलफनामा महज कागज पर है। अदालत ने चेतावनी दी कि उन्हें अपने वचन के उल्लंघन के लिए दंडात्मक कार्रवाई का सामना करने के लिए तैयार रहना चाहिए।
अदालत ने कहा कि बालकृष्ण और रामदेव की माफी सिर्फ कागजी है। न्यायमूर्ति कोहली ने रोहतगी से कहा, ‘हम इसे स्वीकार करने से इनकार करते हैं। हमारा मानना है कि जानबूझकर वचन का उल्लंघन किया गया है। हलफनामे के खारिज होने के अलावा आगे के लिए भी तैयार रहें।’
जब रोहतगी ने कहा, ‘लोग गलतियां करते हैं।’ तो न्यायमूर्ति कोहली ने कहा, ‘तब उन्हें अंजाम भुगतना पड़ता है। हम इस मामले में उतना उदार नहीं होना चाहते हैं।’ सुनवाई के अंत में रोहतगी ने कहा कि पतंजलि आयुर्वेद सार्वजनिक माफी मांगने के लिए तैयार है। मगर अदालत ने उस पर विचार नहीं किया।
न्यायालय ने पतंजलि और उसकी सहायक कंपनी दिव्य फार्मेसी के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने में लाइसेंसिंग अधिकारियों की विफलता के लिए उत्तराखंड सरकार को भी फटकार लगाई। पीठ ने पूछा कि उसे ऐसा क्यों नहीं सोचना चाहिए कि अधिकारी पतंजलि/ दिव्य फार्मेसी के साथ मिले हुए थे।
अदालत ने कहा कि पतंजलि के एमडी और बाबा रामदेव ने विदेश यात्रा के झूठे दावे करते हुए अदालत के समक्ष व्यक्तिगत तौर पर उपस्थिति से बचने की कोशिश की है।