एक दशक पहले महात्मा गांधी की जयंती पर शुरू हुआ स्वच्छ भारत अभियान अब अपनी उपलब्धियों और चुनौतियों पर विचार कर सकता है। साल 2014 में शुरू हुए अभियान के दो घटक थे। पहला ग्रामीण और दूसरा शहरी भारत। इसका उद्देश्य खुले में शौचमुक्त करना (ओडीएफ), गंदे शौचालयों को ठीक करना, हाथ से मैला ढोने प्रथा खत्म करना, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन को बढ़ावा देना और स्वच्छता के संबंध में लोगों के व्यवहार परिवर्तन की दिशा में कार्रवाई करना।
साल 2023-24 में ग्रामीण इलाकों के लिए 7,192 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे और शहर के लिए 5 हजार करोड़ रुपये ने सरकार ने दिया था। चार साल तक लगातार गिरावट के बाद साल 2022-23 में अभियान के तहत ग्रामीण इलाकों को मिलने वाली रकम में उल्लेखनीय वृद्धि देखने को मिली थी और शहरी इलाकों के लिए सिर्फ एक बार साल 2023-24 (संशोधित अनुमान) में बजट बढ़ाया गया था।
इस साल के बजट आवंटन में ग्रामीण इलाकों के लिए मामूली और शहरों के लिए भारी वृद्धि का अनुमान है। मगर शहरी इलाकों के आवंटन में साल 2023-24 के संशोधित अनुमान में बजट अनुमान से लगभग 49 फीसदी की भारी गिरावट देखी गई।
पहल के तहत खुले में शौचमुक्त ही सरकार की प्राथमिकता थी और साल 2019 में सरकार ने भारत को खुले में शौचमुक्त देश घोषित किया था। भले ही खुले में शौच के मामले में गिरावट आई है, लेकिन विश्व बैंक के आंकड़े दर्शाते हैं कि साल 2022 तक भारत की 11 फीसदी आबादी, खासकर ग्रामीण इलाकों की आबादी खुले में शौच कर रही थी। यह पाकिस्तान (6.8 फीसदी) और अफगानिस्तान (8.8 फीसदी) जैसे पड़ोसी देशों की तुलना में अधिक है।
सरकार का उद्देश्य अब गांवों को ओडीएफ प्लस बनाने का है और इसके लिए ठोस और तरल अपशिष्ट प्रबंधन प्रणाली की भी जरूरत है। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक, फिलहाल 93 फीसदी गांवों ने यह दर्जा हासिल कर लिया है।
इसके अलावा 78 फीसदी कचरे का प्रसंस्करण किया जाता है। सरकार ने लक्ष्य से 25 फीसदी ज्यादा शौचालय बनाए हैं। सरकार का लक्ष्य 5,07,587 शौचालय बनाने का था मगर सरकार 6,36826 शौचालय बनाए। इसके अलावा शौचालय तक पहुंच में काफी सुधार हुआ है और साल 2019-21 से तक 82.5 फीसदी परिवारों के पास शौचालय की सुविधा थी, जो साल 2004-05 के मुकाबले 45 फीसदी ज्यादा है। मगर शहरी भारत इसमें बेहतर प्रदर्शन कर रहा है और ग्रामीण भारत के 76 फीसदी के मुकाबले शहरों में रहने वाले 95.6 फीसदी परिवारों के पास शौचालय तक पहुंच है।
विशेषज्ञों ने कहा कि स्वच्छता सुविधाओं में सुधार से काफी फायदा मिला है। जिला स्तर पर 30 फीसदी या उससे अधिक शौचालय से शिशु एवं बाल मृत्यु दर में खासी गिरावट आई है। अध्ययन से खुलासा हुआ है कि स्वच्छ भारत अभियान के तहत 30 फीसदी से अधिक शौचालय कवरेज वाले जिलों में प्रति हजार जीवित बच्चों के जन्म पर शिशु मृत्यु दर 5.3 फीसदी और पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में 6.8 फीसदी की गिरावट आई है। विश्व बैंक के आंकड़े इन दरों में गिरावट का संकेत देते हैं लेकिन स्वच्छ भारत अभियान के कार्यान्वयन के बाद गिरावट उतनी अधिक भी नहीं रही है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को स्वच्छ भारत अभियान को इस सदी में दुनिया का सबसे बड़ा और सबसे सफल जन आंदोलन करार दिया और कहा कि ‘विकसित भारत’ की यात्रा में हर प्रयास ‘स्वच्छता से संपन्नता’ के मंत्र को मजबूत करेगा।
स्वच्छ भारत अभियान आरंभ होने के 10 साल पूरे होने के अवसर पर नई दिल्ली स्थित विज्ञान भवन में आयोजित एक कार्यक्रम में स्वच्छता और सफाई से संबंधित 9,600 करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाली कई परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास करने के बाद अपने संबोधन में प्रधानमंत्री ने स्वच्छता को हर नागरिक के जीवन का अभिन्न अंग बनाते हुए भावी पीढ़ियों में इस मूल्य का संचार करने पर भी जोर दिया।