तथागत अवतार ने एक साल तक हर सुबह उठकर करीब छह घंटे अपने कमरे में लैपटॉप पर बिताए। दोपहर का खाना खाने के तुरंत बाद वह फिर अगले 6-7 घंटे लैपटॉप पर ही बिताते थे। रात के खाने के दौरान ही वह अपने माता-पिता से थोड़ी बातचीत करते थे और फिर सो जाते थे।
इस दिनचर्या का नतीजा यह हुआ कि उन्हें इस साल राष्ट्रीय पात्रता कम प्रवेश परीक्षा (स्नातक) यानी नीट-यूजी 2024 में 720 में से 720 अंक मिल गए। तथागत अपनी इस सफलता का श्रेय एक एडटेक कंपनी को देते हैं। उन्होंने बिज़नेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘मुझे नहीं लगता है कि मैं उसके बिना यह हासिल कर पाता।’
इस साल 5 मई को की नीट-यूजी में कथित अनियमितताओं और पेपर लीक के खिलाफ कम से कम 38 याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल की गई हैं। नई लोक सभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने भी इस मुद्दे को उठाया है और अभ्यर्थियों के प्रति चिंता जताई है।
स्वायत्त सरकारी निकाय राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) द्वारा आयोजित होने वाली नीट-यूजी अब देश भर के मेडिकल कॉलेजों में प्रवेश पाने के लिए एकमात्र परीक्षा है। इसे दो चरण की प्रक्रिया को बदलकर एक आम परीक्षा में तब्दील कर दिया गया है। नीट के प्रचलन में आने से पहले अभ्यर्थी ऑल इंडिया प्री-मेडिकल टेस्ट (एआईपीएमटी) और विभिन्न राज्य स्तरीय परीक्षाओं में शामिल होते थे।
साल 2013 में शीर्ष अदालत ने निजी कॉलेजों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए नीट के कार्यान्वयन को रद्द कर दिया था। निजी संस्थानों को संस्थागत स्वायत्तता के नुकसान की आशंका थी। तीन साल बाद यानी साल 2016 में पांच न्यायाधीशों के संविधान पीठ द्वारा पूर्व के फैसले को वापस लिया गया और सरकार को सामान्य परीक्षा लेने की अनुमति के साथ ही इसे बहाल कर दिया गया। इस केंद्रीकृत परीक्षा होने से पहले तक अभ्यर्थियों को बड़े पैमाने पर कई परीक्षाओं के लिए फॉर्म भरना पड़ता था और उन्हें खास तैयारी के लिए एक शिक्षक से दूसरे शिक्षक तक दौड़ भी लगानी पड़ती थी।
देश में मेडिकल की पढ़ाई को नियंत्रित करने वाली संविधिक सरकारी संस्था राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग के मुताबिक, भारत में 704 मेडिकल कॉलेज हैं और उनमें कुल मिलाकर 1,09,170 सीटें हैं। केंद्र, राज्य सरकार, निजी और डीम्ड कॉलेजों की संख्या क्रमशः 7, 382, 264 और 51 है। अनुमान है कि इस साल करीब 24 लाख अभ्यर्थियों ने नीट-यूजी दी थी।
संस्थानों में एक साल की नीट की तैयारी का खर्च करीब 80 हजार से 1 लाख रुपये के बीच है। मगर वहां छात्रवृत्ति के नाम पर छूट भी दी जाती है। ऐसे किसी एक संस्थान के एक व्यक्ति ने कहा, ‘अगर अभ्यर्थी को 12वीं में 80 फीसदी या उससे अधिक अंक मिले हैं तो उन्हें फीस पर 25 फीसदी की छूट मिलेगी और इसमे उससे ज्यादा भी छूट मिल सकती है।’ कितनी छूट मिलनी है ये बाजार के शोध पर तय होता है।
उद्योग के जानकार अल्बर्ट पी रायन कहते हैं कि नीट ने कई कोचिंग संस्थानों को शुरू कराया है। कई स्कूल भी अब इंटीग्रेटेड प्रोग्राम के वास्ते कोचिंग संस्थानों के साथ करार करते हैं। उन्होंने कहा, ‘ये संस्थान शहरी और अमीर बच्चों का समर्थन करते हैं। संस्थान लाखों रुपये तक की फीस लेते हैं और अंततः पूरी बहस सामर्थ्य बनाम योग्यता पर आकर रुक जाती है।’
रितिका के माता-पिता को उसकी कोचिंग का फीस देने तक के लिए ऋण लेना पड़ा। लेकिन इस बार उसे जितने अंक मिले हैं अब डर है कि उसे निजी कॉलेज में दाखिला लेना पड़ सकता है। यह डर स्वाभाविक है। उच्च शिक्षा की जानकारी देने वाले करियर360 के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चलता है कि भारत में निजी कॉलेजों से एमबीबीएस (बैचलर ऑफ मेडिसन, बैचलर ऑफ सर्जरी) करने में करीब 70 से 75 लाख रुपये लगते हैं। सरकारी कॉलेजों में करीब 6 लाख रुपये में पढ़ाई पूरी हो जाती है।
पुणे के कंसल्टेंसी फर्म इनफिनियम ग्लोबल रिसर्च एलएलपी द्वारा भारत के कोचिंग क्लास बाजार पर 2023 में आई रिपोर्ट में कहा गया है कि अधिकतर निम्न आय वर्ग से आने वाले बच्चों और उनके परिवारों के लिए कोचिंग के लिए खर्च करना संभव नहीं हो पाता है। तैयारी में औसतन करीब 70 हजार से 2 लाख रुपये लगते हैं। छोटे संस्थान सस्ते होते हैं और वहां छात्रवृत्ति भी दी जाती है। ऐसे संस्थानों में काम करने वाले एक शख्स ने कहा, ‘परीक्षा की तैयारी कराने वाले बाजार बहुत प्रतिस्पर्धी है और इन दिग्गजों के सामने हमारे पास फीस कम करने के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है।’
इनफिनियम के मुताबिक, साल 2021 में कोचिंग बाजार का मूल्य 58,089 करोड़ रुपये था और इसके इस दशक के अंत तक 1,79,527 करोड़ रुपये पहुंचने की उम्मीद है। फर्म ने साल 2023-30 के दौरान इस उद्योग के 14.07 फीसदी चक्रवृद्धि वार्षिक दर से बढ़ने का अनुमान लगाया है।
इस साल 13,16,268 छात्र मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए सफल हुए हैं। केंद्रीय और सरकारी कॉलेजों में सिर्फ 56,405 सीटें ही हैं। जिन्हें इन कॉलेजों में दाखिला नहीं मिलता है वे या तो किसी निजी कॉलेज में दाखिला लेते हैं अथवा अगले साल फिर से तैयारी करते हैं। हर कोई निजी कॉलेजों में दाखिला नहीं ले पाता है, जैसा कि वहां की फीस के बारे में बताया गया है। करियर360 के संस्थापक महेश्वर पेरी ने कहा कि अमीरों के लिए ऐसा ही आरक्षण होता है। अधिक सरकारी सीटें होने से इस समस्या का समाधान हो सकता है।
द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम शुरू से ही इस परीक्षा के विरोध में रही है। पार्टी के तमिल अखबार मुरासोली ने इस साल की शुरुआत में संपादकीय में लिखा था कि सिर्फ तमिलनाडु में नीट के कारण 26 अभ्यर्थियों की मौत हो गई। इस साल अलग प्रश्नपत्र, प्रश्नपत्र लीक होना, अभ्यर्थियों को कृपांक देने के कई मसले सामने आए। कई अभ्यर्थियों ने सरकार से दोबारा परीक्षा आयोजित कराने की मांग की है।