देश की सुरक्षा चाक-चौबंद रखने के लिए ‘मिशन सुदर्शन चक्र’ के तहत प्रस्तावित रक्षा कवच प्रणाली के लिए व्यापक स्तर पर क्षमताओं के बीच तालमेल बैठाने, बुनियादी ढांचे का विकास, जानकारियों (डेटा) एवं आर्टिफिशल इंटेलिजेंस के साथ लार्ज लैंग्वेज मॉडल (एलएलएम) की जरूरत होगी। रक्षा प्रमुख (चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ) जनरल अनिल चौहान ने मंगलवार को यह बात कही। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर राष्ट्र के नाम संबोधन में ‘मिशन सुदर्शन चक्र’ की घोषणा की थी।
चौहान ने मध्य प्रदेश के आर्मी वॉर कॉलेज में युद्ध, युद्धकला और युद्ध लड़ने पर आयोजित त्रि-सेवा सेमिनार ‘रण संवाद, 2025’ के उद्घाटन भाषण में कहा, ‘सुदर्शन चक्र प्रणाली साकार करने के लिए क्षमताओं के व्यापक एकीकरण और बड़े पैमाने पर डेटा की आवश्यकता होगी। उन्होंने कहा कि सुदर्शन चक्र प्रणाली विकसित करने के लिए पूरे राष्ट्र को मिलकर काम करना होगा। सीडीएस ने उम्मीद जताई कि भारत कम से कम लागत पर यह सुरक्षा कवच तैयार करने में सक्षम होगा।’
सीडीएस ने कहा कि इस सुरक्षा कवच को पुख्ता एवं कारगर बनाने के लिए विभिन्न क्षेत्रों की खुफिया जानकारियां, निगरानी और सैन्य सर्वेक्षण (आईएसआर) की जरूरत होगी। आईएसआर जमीन, हवा, सागर और अंतरिक्ष में प्रसारित सेंसर का तंत्र है।
जनरल चौहान ने प्रस्तावित प्रणाली की तुलना अमेरिका के ‘गोल्डन डोम’ से की। हाल में अमेरिका ने 175 अरब डॉलर लागत से बहु-स्तरीय मिसाइल रक्षा प्रणाली विकसित करने की दिशा में कदम बढ़ाने की घोषणा की है। गोल्डन डोम प्रणाली मिसाइल नष्ट करने वाली तकनीक, रडार, लेजर और अंतरिक्ष में सुरक्षा करने की तकनीक से लैस होगी। रक्षा साजो-सामान बनाने वाली अमेरिका की प्रमुख कंपनी लॉकहीड मार्टिन के अनुसार गोल्डन डोम प्रणाली अमेरिका को हाइपरसोनिक मिसाइलों और ड्रोन के हमलों से बचाएगी।
सीडीएस ने कहा, ‘सुदर्शन चक्र स्वदेशी प्रणाली होगी, जो तलवार और ढाल दोनों के रूप में काम करेगी। यह देश के सामरिक, नागरिक और राष्ट्रीय महत्त्व के स्थानों को दुश्मनों के हवाई हमलों से बचाएगी। सुदर्शन चक्र प्रणाली विशिष्ट और व्यावहारिक कौशल (संचार तंत्र आदि) का इस्तेमाल कर ऊर्जा हथियारों की मदद से दुश्मन के हवाई हमलों का पता लगाकर उन्हें बेअसर कर देगी।’
जनरल चौहान ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इस अभियान से सबक लेकर जरूरी बदलाव लागू किए जा रहे हैं। लेकिन उन्होंने स्पष्ट किया कि यह सेमिनार 22 अप्रैल को पहलगाम में पाकिस्तान समर्थित आतंकवादी हमले के जवाब में भारत की सैन्य कार्रवाई से मिले सबक तक सीमित नहीं है बल्कि भविष्य में होने वाले युद्धों पर प्रौद्योगिकी के प्रभाव को समझने पर अधिक केंद्रित है।