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न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने सोमवार को भारत के 53वें प्रधान न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में उन्हें शपथ दिलाई। वह 9 फरवरी 2027 को 65 वर्ष की उम्र होने तक लगभग 15 महीने तक इस पद पर रहेंगे। उपराष्ट्रपति सीपी राधाकृष्णन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई वरिष्ठ नेता इस समारोह में शामिल हुए। न्यायमूर्ति सूर्यकांत को न्यायमूर्ति बीआर गवई के स्थान पर न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर नियुक्त किया गया है। न्यायमूर्ति गवई रविवार को सेवानिवृत्त हो गए।
प्रधान न्यायाधीश के रूप में पहले दिन न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने सोमवार को एक नया प्रक्रियात्मक मानदंड स्थापित किया कि तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए मामलों का उल्लेख लिखित रूप में किया जाना चाहिए और मृत्युदंड एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता जैसे मामलों में असाधारण परिस्थितियों में ही मौखिक अनुरोध पर विचार किया जाएगा। प्रधान न्यायाधीश के रूप में अपने पहले दिन न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने अपनी अगुवाई वाले पीठ में लगभग दो घंटे तक 17 मामलों की सुनवाई की। राष्ट्रपति भवन में ईश्वर के नाम पर हिंदी में शपथ लेने के तुरंत बाद न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने 53वें प्रधान न्यायाधीश के रूप में औपचारिक रूप से पदभार ग्रहण किया।
पूर्वाह्न में प्रधान न्यायाधीश के रूप में पहली बार उच्चतम न्यायालय पहुंचने पर उन्होंने न्यायालय परिसर में महात्मा गांधी और डॉ. बी.आर. आंबेडकर की प्रतिमाओं पर पुष्पांजलि अर्पित की। इसके बाद उन्होंने अदालत कक्ष संख्या एक में तीन न्यायाधीशों के पीठ की अध्यक्षता की, जिसमें न्यायमूर्ति जॉयमाल्या बागची और न्यायमूर्ति अतुल एस. चंदुरकर भी शामिल थे।
दोपहर के समय कार्यवाही शुरू होते ही प्रधान न्यायाधीश ने हिमाचल प्रदेश द्वारा एक निजी फर्म के खिलाफ दायर याचिका पर फैसला सुनाया। फैसला सुनाने के तुरंत बाद सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स-ऑन-रिकॉर्ड एसोसिएशन (एससीएओआरए) के अध्यक्ष विपिन नायर ने खचाखच भरे न्यायालय कक्ष में नए प्रधान न्यायाधीश का स्वागत किया। एक वकील ने उन्हें ‘किसान का बेटा, जो प्रधान न्यायाधीश बन गया है’ कहकर बधाई दी, जिससे उनके चेहरे पर हल्की मुस्कान आ गई। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने जवाब दिया, ‘शुक्रिया। मैं चंडीगढ़ के युवा वकीलों को भी देख सकता हूं।’
काम शुरू करते हुए नए प्रधान न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि असाधारण स्थितियों को छोड़कर तत्काल सूचीबद्ध करने का अनुरोध मौखिक उल्लेख के बजाय पर्ची के माध्यम से लिखित रूप में किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा, ‘यदि आपके पास कोई अत्यावश्यक उल्लेख है तो कृपया इसका जिक्र करते हुए अपनी उल्लेख पर्ची दें; रजिस्ट्रार इसकी जांच करेंगे और उन मामलों में यदि हमें लगेगा कि मामला वास्तव में बहुत जरूरी है तो उस पर विचार करेंगे।’
जब वकील ने मामले में शीघ्रता बरतने पर जोर दिया तो न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा, ‘जब तक कोई असाधारण परिस्थिति न हो, जब किसी की स्वतंत्रता शामिल हो, मृत्युदंड आदि का प्रश्न हो, तभी मैं इसे सूचीबद्ध करूंगा। अन्यथा, कृपया उल्लेख करें। रजिस्ट्री निर्णय लेगी और मामले को सूचीबद्ध करेगी।’ इस मामले में एक वकील ने कैंटीन के ध्वस्तीकरण से संबंधित मामले के तत्काल उल्लेख के लिए अनुरोध किया था। इससे पहले पूर्व प्रधान न्यायाधीश संजीव खन्ना ने शीर्ष अदालत में मामलों को तत्काल सूचीबद्ध करने के लिए मौखिक उल्लेख की प्रथा को रोक दिया था। लेकिन, न्यायमूर्ति खन्ना के बाद इस पद पर आए न्यायमूर्ति बी.आर. गवई ने इसे दोबारा शुरू कर दिया था।
आमतौर पर वकील प्रधान न्यायाधीश के समक्ष मामलों को मौखिक रूप से उल्लेख करते हैं, ताकि उन्हें तत्काल सूचीबद्ध किया जा सके। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने एक वरिष्ठ अधिवक्ता की ओर से स्थगन की मांग कर रहे कनिष्ठ वकील को भी प्रोत्साहित करने का प्रयास किया। उन्होंने वकील से कहा, ‘इस अवसर का लाभ उठाइए, आपको बहस करनी चाहिए। अगर आप बहस करेंगे, तो हम थोड़ी छूट दे सकते हैं।’ सीजेआई ने हल्के-फुल्के अंदाज में यह टिप्पणी की, जिससे इस मामले के खारिज होने की संभावना का संकेत मिला। लेकिन कनिष्ठ वकील ने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उसे बहस करने के लिए कोई निर्देश नहीं मिला है।
भारत के प्रधान न्यायाधीश के तौर पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत अब उच्चतम न्यायालय के पांच सदस्यीय कॉलेजियम का नेतृत्व करेंगे। पांच और तीन सदस्यीय कॉलेजियम का पुनर्गठन पूर्व सीजेआई गवई की सेवानिवृत्ति के बाद महत्त्वपूर्ण घटनाक्रम है। सीजेआई सूर्यकांत के अलावा पांच सदस्यीय कॉलेजियम में अब न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना, न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी और न्यायमूर्ति एम एम सुंदरेश शामिल होंगे। कॉलेजियम उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का चयन करता है और उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के स्थानांतरण पर निर्णय लेता है।
राष्ट्रपति भवन में आयोजित कार्यक्रम में शपथ लेने के तुरंत बाद न्यायमूर्ति सूर्यकांत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का अभिवादन करने उनके पास गए। बाद में प्रधानमंत्री मोदी ने ‘एक्स’ पर शपथ ग्रहण समारोह की तस्वीरें साझा कीं। प्रधानमंत्री ने लिखा, ‘न्यायमूर्ति सूर्यकांत को भारत के प्रधान न्यायाधीश के तौर पर आगे के कार्यकाल के लिए शुभकामनाएं।’ समारोह में राष्ट्रपति मुर्मू, उप राष्ट्रपति राधाकृष्णन, प्रधानमंत्री मोदी, प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति सूर्यकांत, पूर्व प्रधान न्यायाधीश गवई और कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल की एक तस्वीर भी खींची गई। इस दौरान पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ भी मौजूद थे। उन्होंने भी न्यायमूर्ति सूर्यकांत को बधाई दी।
हरियाणा के हिसार जिले में 10 फरवरी, 1962 को मध्यमवर्गीय परिवार में जन्मे न्यायमूर्ति सूर्यकांत एक छोटे शहर के वकील से देश के सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुंचे हैं। वह राष्ट्रीय महत्त्व और संवैधानिक मामलों के कई फैसलों और आदेशों का हिस्सा रहे। उन्हें कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की। पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में कई उल्लेखनीय फैसले देने वाले न्यायमूर्ति सूर्यकांत को 5 अक्टूबर, 2018 को हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया था।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में उनका कार्यकाल अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को हटाने से जुड़े फैसले, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और नागरिकता के अधिकारों पर फैसले देने के लिए जाना जाता है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत राज्य विधान सभा द्वारा पारित विधेयकों से निपटने में राज्यपाल और राष्ट्रपति की शक्तियों से संबंधित राष्ट्रपति के परामर्श पर हाल में सुनवाई करने वाले न्यायालय के पीठ में शामिल हैं। वह उस पीठ का हिस्सा थे, जिसने औपनिवेशिक युग के राजद्रोह कानून को स्थगित रखा था तथा निर्देश दिया था कि सरकार के समीक्षा करने तक इसके तहत कोई नयी प्राथमिकी दर्ज नहीं की जाएगी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने निर्वाचन आयोग से बिहार में मसौदा मतदाता सूची से बाहर रखे गए 65 लाख मतदाताओं का ब्योरा सार्वजनिक करने को भी कहा था।