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बेसिक सर्विसेज डीमैट खाते के लिए सेबी का प्रस्ताव

बीएसडीए एक विशेष प्रकार का डीमैट खाता है, जिसे सेबी ने कम कीमत की प्रतिभूतियां रखने वाले छोटे खुदरा निवेशकों के रखरखाव की लागत कम करने के लिए शुरू किया है।

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बीएस संवाददाता   
Last Updated- November 25, 2025 | 9:59 AM IST

भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (SEBI) ने बेसिक सर्विसेज डीमैट अकाउंट (बीएसडीए) तय करने के लिए पोर्टफोलियो मूल्य गणना से कथित जीरो कूपन जीरो प्रिंसिपल (जेडसीजेडपी) बॉन्ड और डीलिस्टेड प्रतिभूतियों की कीमत को बाहर रखने का प्रस्ताव दिया है।

बीएसडीए एक विशेष प्रकार का डीमैट खाता है, जिसे सेबी ने कम कीमत की प्रतिभूतियां रखने वाले छोटे खुदरा निवेशकों के रखरखाव की लागत कम करने के लिए शुरू किया है। ऐसे खाताधारकों को 50,000 रुपये तक की होल्डिंग के मूल्य पर कोई वार्षिक रखरखाव शुल्क (एएमसी) नहीं देना पड़ता है।

नियामक ने सुझाव दिया है कि कोई निवेशक बीएसडीए के लिए पात्र है या नहीं, यह तय करते समय जेडसीजेडपी बॉन्डों को नहीं गिना जाना चाहिए, जिनका सामाजिक प्रभाव ढांचे के तहत व्यापक इस्तेमाल किया जाता है। नियामक ने कहा कि ये निवेश गैर-हस्तांतरणीय हैं और इनका ट्रेड नहीं होता है। इनमें कोई मौद्रिक रिटर्न नहीं है, जिससे ये लिक्विड निवेश परिसंपत्ति की तुलना में सामाजिक योगदान के ज्यादा करीब होते हैं।

इसी प्रकार गैर-सूचीबद्ध प्रतिभूतियों को भी पोर्टफोलियो कीमत गणना से बाहर रखने का प्रस्ताव किया गया है। इस तरह वे निलंबित प्रतिभूतियों के बराबर हो जाएंगी, जिन्हें मूल्य निर्धारण और तरलता की कमी के कारण पहले ही नजरअंदाज कर दिया गया है। हालांकि इलिक्विड प्रतिभूतियों का मूल्यांकन उनके अंतिम बंद भाव पर ही किया जाता रहेगा। ये मूल्यांकन नियम वैयक्तिक प्रवर्तकों पर लागू नहीं होंगे।

इसके अलावा, डिपॉजिटरी प्रतिभागियों को हर निवेशक के बिलिंग चक्र के अंत में बीएसडीए पात्रता का दोबारा मूल्यांकन करना पड़ता है, जो प्रतिभागियों के बीच अलग-अलग होता है और परिचालन संबंधी जटिलता पैदा करता है। नियामक ने प्रक्रिया को सरल बनाने तथा सभी संस्थाओं में एकरूपता सुनिश्चित करने के लिए एक समान तिमाही पुनर्मूल्यांकन का प्रस्ताव दिया है।

इसके अलावा, जो निवेशक बीएसडीए के बजाय नियमित डीमैट खाता बनाए रखना चाहते हैं, उन्हें केवल अपने पंजीकृत ईमेल से ही सहमति भेजनी होगी। डिपॉजिटरियों ने सेबी को बताया है कि इससे देरी होती है और प्रतिक्रिया दर कम होती है। नियामक ने अब किसी भी प्रमाणित और सत्यापन योग्य चैनल के माध्यम से सहमति की अनुमति देने का प्रस्ताव किया है, जिससे निवेशकों और मध्यस्थों दोनों को ज्यादा लचीलापन मिलेगा।

First Published : November 25, 2025 | 9:59 AM IST