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BS Infrastructure Summit 2025: एक्सपर्ट्स बोले — दशकों तक भारत की ऊर्जा खपत का अहम हिस्सा रहेंगे फॉसिल फ्यूल

भारत भले ही रिन्यूएबल एनर्जी और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी की ओर तेजी से बढ़ रहा हो, लेकिन आने वाले दशकों तक फॉसिल फ्यूल देश की ऊर्जा खपत का मुख्य हिस्सा बने रहेंगे।

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बीएस वेब टीम   
Last Updated- August 21, 2025 | 6:01 PM IST

BS Infrastructure Summit 2025: बिज़नेस स्टैंडर्ड के पहले इंफ्रास्ट्रक्चर समिट में बोलते हुए एक्सपर्ट्स ने कहा कि भारत भले ही रिन्यूएबल एनर्जी और इलेक्ट्रिक मोबिलिटी (electric mobility) की ओर तेजी से बढ़ रहा हो, लेकिन आने वाले दशकों तक फॉसिल फ्यूल (जीवाश्म ईंधन) देश की ऊर्जा खपत का मुख्य हिस्सा बने रहेंगे।

विद्युत मंत्रालय के पूर्व सचिव आलोक कुमार ने कहा कि एनर्जी सिक्योरिटी के लिए फॉसिल फ्यूल न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया की रीढ़ बने हुए हैं। उन्होंने कहा, “80 फीसदी से ज्यादा एनर्जी सप्लाई फॉसिल फ्यूल से होती है। भारत में 79 फीसदी ऊर्जा कोयले से आती है। भारत को जल्द से जल्द और व्यवस्थित तरीके से फॉसिल फ्यूल पर निर्भरता घटानी होगी। हम 80 फीसदी से ज्यादा तेल और 50 फीसदी से ज्यादा गैस आयात करते हैं। ऊर्जा संसाधनों के मामले में हम सीमित संसाधनों वाले देश हैं।”

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बदलाव में वर्षों नहीं, बल्कि दशकों लगेंगे

कुमार ने जोर देकर कहा कि यह बदलाव तुरंत नहीं होगा। उन्होंने कहा, “इस बदलाव में वर्षों नहीं, बल्कि दशकों लगेंगे। रिन्यूएबल एनर्जी का उत्पादन बढ़ाने के प्रयासों के बावजूद फॉसिल फ्यूल की अहमियत बनी रहेगी। रिन्यूएबल्स को बढ़ावा देने के बावजूद हमारा ग्रिड फैक्टर घट नहीं रहा है। तब तक अगर हम फॉसिल फ्यूल के उत्पादन, उपयोग और ट्रांसपोर्ट को और अधिक कुशल बना सकें, तो उत्सर्जन कम किया जा सकता है। इनकी हिस्सेदारी धीरे-धीरे घटेगी, लेकिन इनका कुल उपयोग फिर भी बढ़ सकता है। हालांकि ज्यादा पर्यावरण-हितैषी तरीके से।”

भारत की तेजी से बढ़ती ऊर्जा मांग पर बात करते हुए कुमार ने कहा, “रिन्यूएबल एनर्जी में आपकी 50 फीसदी क्षमता पर्याप्त नहीं है। मांग पूरी करने के लिए आपको चार गुना ज्यादा रिन्यूएबल एनर्जी के उत्पादन की जरूरत होगी। कुल मिलाकर फॉसिल फ्यूल का इस्तेमाल बढ़ेगा, भले ही उनकी हिस्सेदारी घट जाए।”

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अगले पांच साल अहम, डिकार्बोनाइजेशन पर जोर

वहीं, वर्ल्ड बैंक की सीनियर एनर्जी स्पेशलिस्ट मणि खुराना ने कहा कि पावर सेक्टर में डिकार्बोनाइजेशन को लेकर भारत “सही दिशा” में है, लेकिन ट्रांसपोर्ट और इंडस्ट्रियल एनर्जी यूज पर ज्यादा फोकस करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, “नई टेक्नोलॉजी आ रही हैं और उनकी कीमतें भी बहुत कम हैं, लेकिन इसमें समय लगेगा। ट्रांसपोर्ट और इंडस्ट्रियल सेक्टर में डिकार्बोनाइजेशन पर ध्यान देना बेहद जरूरी है। ग्रीन हाइड्रोजन मौजूद है, लेकिन इसमें अभी समय लगेगा। हमें अगले पांच साल में जो काम कर रहे हैं, उस पर ज्यादा फोकस करना चाहिए।”

बैटरी की कीमतें 90 फीसदी से ज्यादा घटी

ई-मोबिलिटी के भविष्य पर बात करते हुए स्टैटिक के सीईओ और फाउंडर अक्षित बंसल ने कहा कि पिछले दो साल “टर्निंग पॉइंट” साबित हुए हैं। उन्होंने कहा, “इस साल ईवी पैठ बढ़कर 4.5 फीसदी हो गई है। ICE और EVs के बीच मूल्य समानता (Price parity) बेहतर हो रही है। पिछले एक दशक में बैटरी की कीमतें 90 फीसदी से ज्यादा घटी हैं। अब सवाल यह है कि हम कितनी तेजी से इलेक्ट्रिक इंफ्रास्ट्रक्चर तैयार कर सकते हैं ताकि ज्यादा ग्रीन बन सकें।”

बंसल ने आगे कहा, “पूंजी की लागत कम करने की जरूरत है। दूसरा, हमें टेक स्टैक भारत में ही तैयार करने पर फोकस करना होगा। हम विदेशी कंपनियों पर निर्भर नहीं रहना चाहते। और इसमें डिस्कॉम्स की भूमिका बेहद अहम है।”

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ग्रिड इंटीग्रेशन में सुधार करने की जरूरत

सिरिल अमरचंद मंगलदास के पार्टनर रामानुज कुमार ने कहा कि भारत को ग्रिड इंटीग्रेशन में सुधार करने की जरूरत है। उन्होंने कहा, “रिन्यूएबल एनर्जी में ग्रिड इंटीग्रेशन के मामले में हम अभी सिर्फ 22 फीसदी पर हैं। प्रगति हो रही है, लेकिन अब फोकस इस बात पर होना चाहिए कि हम हर जगह ग्रिड में कितनी रिन्यूएबल एनर्जी जोड़ रहे हैं और उसके लिए एक टारगेट तय करना चाहिए।”

फाइनेंसिंग पर उन्होंने कहा, “जब हाल ही में RBI ने प्रोजेक्ट फाइनेंस के लिए नए नियम जारी किए, तो मुझे लगा कि फॉसिल और नॉन-फॉसिल फ्यूल प्रोजेक्ट्स के बीच फर्क करना जरूरी है। इसके बाद प्रोजेक्ट्स के उत्सर्जन के आधार पर वेटेज तय करना चाहिए और उसी के अनुसार लेंडिंग पॉलिसी बनाई जानी चाहिए।”

CCUS पर रखें फोकस

आलोक कुमार ने लॉन्ग टर्म में कार्बन कैप्चर की अहमियत पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा, “टेक्नोलॉजी को समय लगता है। चीन 20 साल बाद EV लीडर बना है। CCUS (Carbon Capture, Utilisation and Storage) का समय भी आएगा। इसे रडार पर रखिए और इस पर काम कीजिए। भारत को अगले दो दशकों में CCUS की जरूरत पड़ेगी।”

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पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों पर ध्यान देने की जरूरत

वहीं, मणि खुराना ने पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों को सबसे बड़ी बाधा बताया। उन्होंने कहा, “अगर हम अपनी पावर डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियों पर ध्यान नहीं देंगे, तो दिक्कत होगी। ये कंपनियां ग्राहकों के सीधे संपर्क में हैं और सिस्टम को चलाने के लिए लगातार मशक्कत कर रही हैं। डिस्ट्रीब्यूशन कंपनियां उतनी तेजी से भर्ती नहीं कर रही हैं, जितनी मांग को पूरा करने के लिए जरूरी है।”

उन्होंने आगे कहा कि ऊर्जा दक्षता को प्राथमिकता देनी चाहिए। उन्होंने कहा, “हम सब तेजी से बढ़ती ऊर्जा मांग की ओर बढ़ रहे हैं। घरेलू और औद्योगिक क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता ही आगे का रास्ता है।”

रामानुज कुमार ने एनर्जी ट्रांसमिशन के लिए एक “नेशनल टेक्नोलॉजी मिशन” की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि इसे IIT जैसे संस्थानों के नेतृत्व में, सरकार और CSR की मदद से चलाया जाना चाहिए, ताकि ग्रीन हाइड्रोजन और अन्य उभरती स्वच्छ ऊर्जा तकनीकों को आगे बढ़ाया जा सके।

First Published : August 21, 2025 | 5:56 PM IST