दोपहर के भोजन का समय शुरू हो गया है और हल्की बूंदा-बांदी भी शुरू हो गई है। आसपास की निर्यात इकाइयों में काम करने वाले श्रमिकों का एक समूह फरीदाबाद के सेक्टर 31 में इस अस्थायी भोजनालय में दोपहर का भोजन करने के लिए पहुंचा है। वे तनाव में दिख रहे हैं क्योंकि उनमें से एक घोषणा करता है कि उन्हें आने वाले कुछ महीनों में कम काम मिलेगा।
पास के एक कपड़ा कारखाने में कढ़ाई मशीन चलाने वाले 32 वर्षीय अमित ने कहा, ‘हमने सोचा था कि ट्रंप के साथ यह विवाद सुलझ जाएगा लेकिन अब ऐसा लगता है कि यह लंबा चलने वाला है। भारत भी झुकेगा नहीं। कुल मिलाकर हम जैसे दिहाड़ी मजदूरों को ही मार झेलनी पड़ेगी। मैं जिस यूनिट में काम करता हूं, वहां बनने वाले माल के कुछ ग्राहक अमेरिका के थे, जिन्होंने अपने ऑर्डर रद्द कर दिए हैं। देखते हैं, आगे क्या होता है।’
भारतीय सामान पर अमेरिकी बाजार में 50 फीसदी का भारी शुल्क लागू हो गया है। इससे कम मार्जिन और श्रम-गहन क्षेत्रों मसलन परिधान, कपड़ा, वाहन कलपुर्जा, इंजीनियरिंग सामान, रत्न और आभूषण से लेकर झींगे तथा कालीन निर्यात संकट में हैं। अब उन्हें दक्षिण पूर्व एशियाई देशों और चीन से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ेगा।
सैन ऑटो इंजीनियर्स के निदेशक विनोद कावरी का कहना है कि पिछला 25 फीसदी शुल्क अभी वहन करने योग्य था मगर नया शुल्क अमेरिकी बाजार से बाहर होने के लिए मजबूर कर सकता है। कावरी की कंपनी वैश्विक विमानन दिग्गज बोइंग को लैंडिंग गियर की आपूर्ति करती है। कावरी उद्योग निकाय पीएचडीसीसीआई की एमएसएमई समिति के अध्यक्ष भी हैं।
सरकारी आंकड़ों से पता चलता है कि अमेरिका को भारत का वस्तु निर्यात सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 2 फीसदी है। पिछले वित्त वर्ष में देश से कुल 443 अरब डॉलर के वस्तु निर्यात में से अमेरिका को करीब 81 अरब डॉलर मूल्य के सामान का निर्यात किया गया।
निर्यातकों के संगठन फियो के अध्यक्ष एससी रल्हन का कहना है कि इस कदम से भारत के सबसे बड़े निर्यात बाजार में आपूर्ति गंभीर रूप से बाधित होगी। भारत से अमेरिका जाने वाले शिपमेंट (47-48 अरब डॉलर मूल्य के) के लगभग 55 फीसदी पर असर पड़ेगा।
रल्हन ने कहा, ‘लागत प्रतिस्पर्धा में बढ़त गंवाने के बाद नोएडा में कपड़ा और परिधान विनिर्माताओं ने उत्पादन रोक दिया है। यह क्षेत्र वियतनाम और बांग्लादेश के कम लागत वाले प्रतिद्वंद्वियों से पिछड़ रहा है।’
जयराज समूह के संस्थापक राजीव के चावला का कहना है कि शुल्क ने उनके जैसे इंजीनियरिंग सामान विनिर्माताओं को खतरे में डाल दिया है जबकि यह अत्यधिक श्रम बहुल क्षेत्र है और बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिकों को रोजगार देता है। अमेरिका को निर्यात इस महीने निचले स्तर पर जा सकता है क्योंकि ग्राहकों ने ऑर्डर रद्द कर दिए हैं।
निर्यातक इस बात से सहमत हैं कि सरकार ने अमेरिकी आयात की अनुमति नहीं देकर भारतीय किसानों और डेरी क्षेत्र की रक्षा की है मगर वे लंबित व्यापार सौदे को तुरंत अंतिम रूप देने और इस बीच निर्यातकों को सहायता देने का आग्रह कर रहे हैं।
केईआई केबल्स के प्रबंध निदेशक अनिल गुप्ता का कहना है कि जो निर्यातक पूरी तरह से अमेरिकी बाजार पर निर्भर हैं उन्हें दिक्क्त है। उन्होंने कहा कि भारत को किसी भी तरह के दबाव को स्वीकार नहीं करना चाहिए।
निर्यतकों का कहना है कि सरकार तथा निर्यातकों को कारोबार बचाने के लिए नए बाजार तलाशने की जरूरत है। इस बीच अमित जैसे दर्जनों कामगार सांस रोककर इस विवाद के जल्द सुलझने की कामना कर रहे हैं ताकि उनका त्योहार का मौसम अच्छा बीते।