दिल्ली में 1 जनवरी तक पटाखों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाए जाने, कर्नाटक में बिक्री के लिए सरकार द्वारा लाइसेंस न दिए जाने और नोएडा क्षेत्र में प्रतिबंध के कारण तमिलनाडु के शिवकाशी का पटाखा कारोबार प्रभावित हो रहा है। शिवकाशी का पटाखा उद्योग दीवाली सीजन में भारत के 90 फीसदी से अधिक पटाखों का उत्पादन करता है। इस उद्योग के दिग्गजों का कहना है कि पिछले साल के मुकाबले इस साल मांग करीब 20 फीसदी घट गई है।
बेरियम नाइट्रेट के उपयोग पर प्रतिबंध और उसे मिलाकर पटाखा बनाने एवं बेचने पर रोक से भी मांग पर असर पड़ रहा है। द इंडियन फायरवर्क्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (TIFMA) के महासचिव टी कन्नन ने कहा, ‘अब हम बेरियम नाइट्रेट के बगैर केवल हरित पटाखे बना रहे हैं। दिल्ली में प्रतिबंध के कारण शिवकाशी के पटाखा विनिर्माताओं की मांग करीब 20 फीसदी घट गई है।’ पटाखा बनाने में ऑक्सीडाइजिंग एजेंट के तौर पर इस्तेमाल होने वाले बेरियम नाइट्रेट पर प्रतिबंध से फुलझड़ी, चकरी और अनार जैसे पटाखों का उत्पादन प्रभावित हुआ है।
दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (DPCC) ने 1 जनवरी, 2023 तक राजधानी में पटाखों पर पूरी तरह प्रतिबंध लगा दिया है। इस प्रतिबंध के दायरे में हरित पटाखों के साथ-साथ सभी प्रकार के पटाखों का उत्पादन, भंडारण, बिक्री और आतिशबाजी शामिल है। दिल्ली में इस प्रतिबंध पर अमल सुनिश्चित करने के लिए कि दिल्ली पुलिस और राजस्व विभाग के अधिकारियों सहित करीब 285 टीम पहले से ही काम कर रही हैं।
उद्योग के एक अन्य सूत्र ने कहा, ‘दिल्ली के प्रतिबंध की ही बात नहीं है। कर्नाटक और नोएडा में भी लाइसेंस जारी नहीं किए जा रहे हैं। इससे हमारे अग्रिम ऑर्डर प्रभावित हो रहे हैं।’ कर्नाटक और तमिलनाडु की सीमा पर अट्टीबेले में एक पटाखा गोदाम के भीतर भीषण आग लगने से 14 लोगों की जान चली गई। उसके बाद कर्नाटक में पटाखा उद्योग के लिए कड़े दिशानिर्देश जारी किए गए और राज्य सरकार ने राजनीतिक जुलूस, त्योहार, धार्मिक जुलूस एवं शादी-ब्याह के अवसर पर पारंपरिक आतिशबाजी पर भी प्रतिबंध लगा दिया।
शिवकाशी फायरवर्क्स मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (SFMA) के मुरली असाइथम्बी ने कहा, ‘शिवकाशी क्षेत्र में कई अवैध निर्माता बेरियम नाइट्रेट से पटाखे बना रहे हैं। अदालती रोक के बाद भी ये उत्पाद सभी बाजारों में मिल रहे हैं। जो लोग नियमों का पालन कर रहे हैं उन्हें मुश्किलों से जूझना पड़ रहा है।’
सर्वोच्च न्यायालय ने 2018 में ही बेरियम नाइट्रेट के उपयोग पर प्रतिबंध लगा दिया था। 2021 में दोबारा उसकी पुष्टि की गई और प्रमुख सामग्रियों का उत्पादन रुक गया। तमिलनाडु फायरवर्क्स अमोर्सेस मैन्युफैक्चरर्स एसोसिएशन (TANFAMA) के अनुमान के मुताबिक वैश्विक महामारी से पहले शिवकाशी के पटाखा उद्योग का आकार करीब 3,000 करोड़ रुपये था। कोविड-19 के प्रकोप और नियमों में बदलाव के कारण पटाखों की मांग लगातार घटती गई।
कन्नन ने कहा, ‘बेरियम नाइट्रेट हानिरहित ऑक्सीडाइजिंग एजेंट है। यह कितना महफूज है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसका इस्तेमाल बच्चों के खेलने की फुलझड़ी में किया जाता है। इस पर रोक से दीवाली जैसे महत्त्वपूर्ण हिंदू त्योहार की चमक फीकी पड़ गई है।’
TIFMAके आकलन के मुताबिक शिवकाशी सहित तमिलनाडु के विरुदुनगर जिले में करीब 1,175 पटाखा विनिर्माता हैं। शिवकाशी का लगभग हरेक परिवार भारत के त्योहारी सीजन में योगदान देता है। इससे करीब 3 लाख लोगों को प्रत्यक्ष और 5 लाख को परोक्ष रोजगार मिलता है।
दिल्ली में सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद सबसे पहले 2017 में पटाखों पर प्रतिबंध लगाया गया था। उस समय खराब होती वायु गुणवत्ता का हवाला दिया गया था। 2018 में दिल्ली में केवल हरित पटाखों की अनुमति दी गई थी और उसके बाद 2020 से सभी पटाखों पर पूरी तरह प्रतिबंध जारी है।