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Cyclone Biparjoy: चक्रवात, बाढ़ से लेकर भूकंप तक, चुनौतियों से निपटने के लिए हरदम तैयार NDRF

चक्रवात बिपरजॉय, अरब सागर के सबसे लंबे चक्रवातों में से एक है जो भारत को भी अपनी ताकत दिखाने के लिए तैयार है।

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वीनू संधू   
Last Updated- June 13, 2023 | 9:27 PM IST

एक बेहद घातक चक्रवात (Cyclone Biparjoy) गुजरात तट की ओर बढ़ रहा है। इसके चलते ट्रेनें रद्द कर दी गई हैं और हजारों लोगों को निकाला जा रहा है। चक्रवात बिपरजॉय, अरब सागर के सबसे लंबे चक्रवातों में से एक है जो भारत को भी अपनी ताकत दिखाने के लिए तैयार है।

केंद्र और राज्य सरकार इस चक्रवात को लेकर बेहद सक्रिय हो गई है। इससे निपटने के लिए चलाए जा रहे अभियान में राष्ट्रीय आपदा राहत बल (NDRF) भी शामिल है जो दुनिया का सबसे बड़ा ऐसा बल है जो साल में 365 दिन और चौबीस घंटे सक्रिय रहता है।

एनडीआरएफ का लक्ष्य बेहद स्पष्ट है, दुश्मन का पता चलने पर जान-माल के नुकसान को रोकें या उसे बेहद कम करने की कोशिश करें। इसके अलावा प्राकृतिक या अन्य आपदा की घोषणा न होने की स्थिति में भी जल्द से जल्द और अधिकतम स्तर पर बचाव एवं राहत दे। इस राहत बल का कार्य केवल देश की सीमाओं तक ही सीमित नहीं है और न ही यह बाहरी आदेश मिलने तक कार्रवाई करने की प्रतीक्षा करता है।

1988 बैच के आईपीएस अधिकारी और एनडीआरएफ के महानिदेशक अतुल करवाल कहते हैं, ‘टीमों को सूचना मिलने के शुरुआती 20 मिनट के भीतर ही वर्दी में और उस विशिष्ट ऑपरेशन के लिए आवश्यक उपकरणों के साथ लैस होना चाहिए।’ करवाल को मार्शल आर्ट्स में ब्लैक बेल्ट भी मिला है और उन्होंने स्कूबा तथा स्काई ड्राइवर में प्रशिक्षण भी पाया है।

नई दिल्ली में पुराने संसद भवन से एक या दो किलोमीटर दूर अपने कार्यालय में बैठे 59 वर्षीय अधिकारी करवाल राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड द्वारा प्रशिक्षित कमांडो हैं और माउंट एवरेस्ट भी फतह कर चुके हैं। उनका कहना है कि जब 2 जून को बालासोर में तीन ट्रेनों में टक्कर हुई तो पहली टीम को 10 मिनट में जुटाया गया था।

करवाल कहते हैं, ‘बालासोर में हमारे पास पहले से ही एक टीम तैनात थी, लेकिन पहली कॉल एनडीआरएफ के एक जवान से ही मिली जो कोरोमंडल एक्सप्रेस में सवाल थे। उन्होंने अपनी चोटों की जांच करने के बाद हमें सतर्क किया और फिर अपने प्रशिक्षण के कारण तुरंत लोगों को बाहर निकालना शुरू कर दिया।’

प्रशिक्षण

एनडीआरएफ के प्रशिक्षण में काफी विविधता है और इसे बेहद कठोर प्रशिक्षण माना जाता है जिसके लिए शारीरिक और मानसिक रूप से मजबूत होना जरूरी है। एनडीआरएफ शत-प्रतिशत प्रतिनियुक्ति पर काम करता है। एनडीआरएफ के ये कर्मी, केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों या अर्धसैनिक बलों जैसे सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ), केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी), असम राइफल्स और अन्य से लिए जाते हैं।

इसकी 16 बटालियन हैं जिनमें से प्रत्येक की संख्या 1,149 है और प्रत्येक में इसका श्वान दस्ता होता है और इनकी तैनाती पूरे भारत में होती है। इसके 28 क्षेत्रीय केंद्र भी हैं (34 और प्रस्तावित हैं)।

इस बल में महिलाएं भी शामिल हैं, जो राहत-बचाव अभियान में भी शामिल होती हैं और उन्हें पुरुषों के समान ही प्रशिक्षण लेना होता है। उदाहरण के तौर पर लिए, इस साल फरवरी में तुर्की के भूकंप राहत-बचाव अभियान में एनडीआरएफ की पांच महिलाएं थीं, जिनमें से एक को राहत बचाव के लिए अपने जुड़वां बच्चों को छोड़ना पड़ा था।

हर समय, एनडीआरएफ की एक टीम लगभग तैनात मुद्रा में ही रहती है जिसे कहीं भी तुरंत भेजा जा सकता है। इस टीम में हर सात दिन में बदलाव होता है।

एनडीआरएफ को अन्य एजेंसियों और बलों से भी तुरंत समर्थन मिलता है। उदाहरण के लिए, तुर्की के अभियान के लिए भारतीय वायु सेना (आईएएफ) ने उसी रात एनडीआरएफ की पहली टीम के साथ उड़ान भरी जिस रात भूकंप आया था। इसके सी-17 ग्लोबमास्टर विमान में बचावकर्मी, ट्रक और बसें दोनों सवार थीं। करवाल कहते हैं, ‘जब हम वहां उतरे तब हम पूरी तरह से आत्मनिर्भर थे जबकि कई अन्य टीमें स्थानीय परिवहन की अनुपस्थिति में हवाईअड्डे पर ही फंस गईं थीं।’

आईटीबीपी से प्रतिनियुक्ति पर आईं और तुर्की में राहत-बचाव कार्य में शामिल होने वाली सब-इंस्पेक्टर शिवानी अग्रवाल का कहना है कि तुर्की में भूकंप की वजह से मची तबाही और कड़ाके की सर्दी की वजह से वह बुरी तरह प्रभावित हुईं लेकिन प्रशिक्षण ने उन्हें जल्दी से अभियान में जुटना सिखाया है। वह कहती हैं, ‘जिंदा या मर चुके पीड़ितों को निकालने से लेकर, उपकरणों को संभालने, परिवारों को भावनात्मक संबंल देने और भीड़ को नियंत्रित करने जैसे सभी काम हमने किए।’ उन्होंने कहा, ‘ऐसे समय में आपको अपने पैरों को मजबूत रखना होता है और अपना सब कुछ झोंक देना होता है। हम भूकंप के बाद के झटकों की वजह से एक बचाव स्थल से दूसरे स्थान पर चले गए।’

करवाल ने कहा कि इस राहत और बचाव अभियान की याद में भारत और अन्य देशों की टीमों ने अपनी वर्दी से बैज और डिस्क का आदान-प्रदान किया।

एनडीआरएफ में प्रतिनियुक्ति सात साल के लिए होती है। जो युवा और मेहनती हैं उन्हें प्राथमिकता दी जाती है, लेकिन नए लोगों को इसमें तरजीह नहीं मिलती है क्योंकि शारीरिक फिटनेस के अलावा, नौकरी के लिए परिपक्वता और संयम की आवश्यकता होती है। करवाल का कहना है, ‘आप उन लोगों से निपटने की कोशिश करते हैं जिन्हें बड़ा नुकसान हुआ हो और शायद बेहद दुख में होंगे, उनमें से कुछ लोग नाराज भी हो सकते हैं। इसलिए, हमारी टीम में शांत स्वभाव वाले लोग होने चाहिए जो यह समझते हों कि उन्हें जवाबी कार्रवाई नहीं करनी चाहिए या कठोर तरीके से जवाब नहीं देना चाहिए।’

किसी उम्मीदवार को कठिन माहौल में काम करने लायके समझे जाने का मापदंड क्या है मसलन, क्या उस व्यक्ति ने कश्मीर या छत्तीसगढ़ में कठिन परिस्थितियों के बीच काम किया है? यानी इसमें स्कोर जितना अधिक होगा उनके एनडीआरएफ में शामिल होने की संभावना अधिक होगी। करवाल कहते हैं, ‘एक और सवाल यह है कि उम्मीदवार को बेहतर तरीके से शिक्षित होना चाहिए और आदर्श स्थिति यह होगी अगर उनका संबंध विज्ञान पृष्ठभूमि से हो क्योंकि ऐसा किसी रासायनिक आपदा जैसी स्थिति के लिए बेहतर तरीके से तैयार होगा।’

एनडीआरएफ की एक टीम के कमांडर का कहना है कि शुरुआती जांच के बाद भारत के भीतर या बाहर उनकी बटालियनों में या विशेष एजेंसियों के तहत कठोर प्रशिक्षण दिया जाता है। इसमें स्कूबा डाइविंग, तेज और समयबद्ध तैराकी, अग्निशमन, रस्सी से बचाव, पशु आपदा प्रबंधन, नाव का रखरखाव, मनोवैज्ञानिक-सामाजिक हस्तक्षेप, आपदा में पीड़ित के शरीर को कैसे संभालें, रासायनिक, जैविक, रेडियोलॉजिकल और परमाणु आपदा से जुड़ी जागरूकता जैसे पहलुओं की सूची बेहद लंबी है।

यह एक ऐसा बल है जिसे लोगों को ढहती इमारत से भी बाहर निकालने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है या फिर डूबी हुई बोगी से शवों को निकालना, धातु को काटने के लिए भारी-भरकम उपकरणों के साथ गहराई से गोता लगाना जैसे प्रशिक्षण भी इसमें शामिल हैं।

ओडिशा ट्रेन हादसे के वक्त एनडीआरएफ से सिर्फ पांच दिन पहले से जुड़ने वाले एक जवान भी राहत-बचाव टीम का हिस्सा थे जिसने हादसे के सदमे से जूझ रहे यात्रियों को प्राथमिक चिकित्सा और सहायता मुहैया कराई थी। जवानों ने स्वेच्छा से राहत कार्यों में जुटे आम नागरिकों और सबसे पहले पहुंचने वाले लोगों को मलबा उठाने, हथौड़ा मारने या खोदने के सही तरीकों का मौके पर ही प्रशिक्षण दिया और उनका मार्गदर्शन भी किया ताकि नीचे फंसे लोगों को बचाया जा सके।

वहीं श्वान दस्ते ( डॉग स्क्वॉड) को ड्रग्स या विस्फोटक नहीं बल्कि जीवित लोगों को सूंघने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है। इसके लिए लैब्राडोर को पसंद किया जाता है क्योंकि वे जर्मन शेफर्ड की तुलना में अधिक प्रशिक्षित, सौम्य और कठोर होते हैं और वे किसी भी जलवायु में सक्रिय रहते हैं।

एनडीआरएफ को मजबूत प्रौद्योगिकी और डेटा समर्थन भी हासिल है और यह इसे लगातार अपग्रेड भी कर रहा है। करवाल कहते हैं, ‘भास्कराचार्य इंस्टीट्यूट फॉर स्पेस एप्लिकेशन ऐंड जियोइन्फॉर्मेटिक्स (बीआईएसएजी) कई डेटा उपलब्ध कराता है। उन्होंने कहा, ‘इसीलिए, बचावकर्ता को तुरंत उस जगह के सबसे तेज मार्ग के बारे में सूचित किया जा सकता है जो डूब सकता है? या, अगर यह एक रासायनिक आपदा है, तो यह कौन सा रसायन है, इसके प्रभाव क्या हैं, इसके असर को रोकने वाला मारक तत्व क्या है, हवा की गति और दिशा क्या है, जिस पर यह निर्भर करता है कि वे कौन से ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें पहले खाली करने की आवश्यकता है।’

इन सब के लिए फंड की आवश्यकता होती है। करवाल ने कहा, ‘इस राहत बचाव बल को बहुत अच्छी तरह से समर्थन दिया जाता है और इसका सम्मान किया जाता है। गृह मंत्रालय भी इस बात को लेकर बेहद उत्सुक है कि हम आधुनिकीकरण करें और बेहतर प्रशिक्षण के साथ लैस हों। इसलिए मुझे बजट की कोई कमी नहीं दिखती है। जब एनडीआरएफ को अधिक फंड की जरूरत होती है तब यह उसे दिया जाता है।’

एनडीआरएफ में तैनात लोगों को प्रतिनियुक्ति भत्ते के रूप में पांच या 10 प्रतिशत अतिरिक्त राशि मिलती है लेकिन इससे ज्यादा नहीं। करवाल का कहना है, ‘काम मुश्किल है। हम कई बार अपने बचावकर्मियों को खो देते हैं और ऐसा कभी-कभी प्रशिक्षण के दौरान और कभी-कभी ऑपरेशन के दौरान भी हो जाता है।’ वर्ष 2013 में केदारनाथ में आई बाढ़ के दौरान वायुसेना के एक हेलिकॉप्टर के दुर्घटनाग्रस्त होने से मारे गए 20 कर्मियों में एनडीआरएफ के 9 कर्मी भी शामिल थे।

करवाल चाहते हैं कि यह राहत-बचाव बल मानसिक और शारीरिक रूप से फिट रहे। वह कहते हैं, ‘एनडीआरएफ के कर्मी बहुत कहर, दुख और आघात देखते हैं। उनकी काउंसलिंग भी कराई जाती है और हम चाहते हैं कि उनकी ताकत को बढ़ाने के लिए एक स्थायी परामर्शदाता मिल जाए।’

इन कर्मियों को अपने बॉडी मास इंडेक्स (बीएमआई) को 25 के आदर्श स्तर पर लाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। वह कहते हैं, ‘हमने हर किसी के बीएमआई को डिजिटल रूप से मापा है। पिछले साल जनवरी तक हमारे कर्मियों में से 33 प्रतिशत लोग 25 बीएमआई से ऊपर थे। अब यह घटकर 10 प्रतिशत रह गया है। सिर्फ जवानों को ही नहीं, उनकी पत्नियों को भी स्वस्थ आहार को लेकर सलाह दी जाती है।’ इसके अलावा फिटनेस के प्रति उत्साही मशहूर अभिनेता अक्षय कुमार के साथ भी इन कर्मियों का संवाद कराया गया था।

सीआरपीएफ के सिपाही अमरजीत राठी का कहना है कि उन्होंने ज्यादा प्रोटीन और कम वसा वाले आहार और व्यायाम के माध्यम से दो महीने में अपना वजन 98 से घटाकर 84 किलोग्राम कर लिया है। वहीं कॉन्स्टेबल विक्रम सिंह ने पैदल चलने, दौड़ने और रात का खाना छोड़कर 3.5 महीने में अपना 18 किलो वजन कम कर लिया और उनका कहना है, ‘यह कठिन था लेकिन अब मुझे अच्छा लग रहा है।’ उनका वजन 100 किलो हुआ करता था।

करवाल कहते हैं कि वे एनडीआरएफ के इस मंत्र को पूरे दिल से अपना चुके हैं, ‘अन्य लोगों का जीवन मेरी फिटनेस पर निर्भर करता है।’

(साथ में देवार्घ्य सान्याल)

First Published : June 13, 2023 | 9:27 PM IST