बिहार व झारखण्ड

बिहार में नीतीश–मोदी फैक्टर की धमक: भाजपा की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा की राह में अब नहीं कोई बाधा

कई दशकों में पहली बार, लालू प्रसाद के परिवार का केवल एक सदस्य बिहार विधानसभा में दिखाई देगा (एक वक्त में उनके परिवार के आठ सदस्य थे)

Published by
आदिति फडणीस   
Last Updated- November 14, 2025 | 11:06 PM IST

बिहार के मतदाताओं ने नीतीश कुमार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनकी सेवा के लिए धन्यवाद का संदेश दिया और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) ने एक निर्बाध गठबंधन के साथ अभूतपूर्व जीत की ओर कदम बढ़ाए। ऐसे में विपक्षी खेमा पूरी तरह से बिखर गया। कई दशकों में पहली बार, लालू प्रसाद के परिवार का केवल एक सदस्य बिहार विधानसभा में दिखाई देगा (एक वक्त में उनके परिवार के आठ सदस्य थे)।

विपक्षी गठबंधन ‘दोस्ताना लड़ाई’, अंदरूनी कलह और भ्रामक राजनीतिक संदेशों का शिकार हो गया। लेकिन जीत का जश्न मनाने के साथ ही गठबंधन के दो सबसे बड़े दल, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल यूनाइटेड (जदयू), दोनों ने अपनी सीटों पर अधिकतम जीत हासिल करने की ओर देखना शुरू कर दिया था।

मिथिलांचल के एक भाजपा समर्थक ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को फोन पर बताया, ‘जीत ही ऐसी है कि अगर नीतीश कुमार चाहें भी तो नए दोस्त नहीं बना पाएंगे।’ नीतीश कुमार की एक कुशल राजनीतिक बाजीगर के रूप में प्रतिष्ठा सर्वविदित है। लेकिन उन्होंने कहा कि इस चुनावी परिणाम में एक अवसर छिपा है और अब भाजपा न केवल बिना किसी रुकावट के अपने राजनीतिक लक्ष्यों को साध पाएगी बल्कि जरूरत पड़ने पर आखिरकार मुख्यमंत्री को बदल भी सकती है। उन्होंने आगे कहा कि फिलहाल, नीतीश राज्य के शीर्ष पद के लिए निर्विवाद पसंद हैं और ऐसे में केवल उनके दो उपमुख्यमंत्रियों और मंत्रिपरिषद में अन्य पदों के लिए जगहें खाली हैं।

जदयू इस बात से वाकिफ है कि उसकी अपनी सफलता दर प्रभावशाली है और यह एक अद्वितीय राजनीतिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करती है। पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष संजय झा ने कहा, ‘नीतीश कुमार की कोई जाति नहीं है। बिहार में हमेशा जातिगत समीकरण हावी रहते थे। उन्होंने इस जातिगत कथ्य (नैरेटिव) को बदल दिया है।

नागरिकों, खासतौर पर महिलाओं और युवाओं ने उन पर भरोसा जताया है। इसीलिए हमें इस तरह के परिणाम मिले हैं।’ उन्होंने कहा, ‘आखिरकार यह उनकी विश्वसनीयता और भरोसे की बात है।’ निजी तौर पर जदयू नेताओं ने चुनावों से पहले यह स्वीकार किया था कि वे हर समय चौकस थे क्योंकि उन्हें कभी यकीन नहीं था कि भाजपा की मांग क्या होगी।

हालांकि जदयू ने हाल के वक्फ अधिनियम जैसे कानूनों का समर्थन किया है, जिसको लेकर ऐसा माना जाता है कि इससे पार्टी के मुस्लिम समर्थन आधार को नुकसान पहुंचा है। अतीत में, नीतीश कुमार ने बिहार में भाजपा के आधार का विस्तार नहीं होने देने को लेकर दृढ़ता दिखाई थी खासतौर पर अटल बिहारी वाजपेयी के शासन के दौरान पार्टी के साथ गठबंधन में रहते हुए भी उन्होंने यह सुनिश्चित किया की पार्टी का आधार बिहार में न बढ़े। अब, पार्टी को भी यकीन नहीं है कि नीतीश खुद को कितना मुखर कर पाएंगे।

हालांकि, तत्कालीन शासन के सामने बड़ी चुनौतियां हैं, खासतौर पर सार्वजनिक वित्त का प्रबंधन करने के मोर्चे पर। बिहार के एलएन विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के पूर्व प्रोफेसर, अवनी रंजन सिंह कहते हैं, ‘सर्वोच्च प्राथमिकता कर चोरी को रोकने के लिए कर कानूनों को प्रभावी ढंग से लागू करना होनी चाहिए। बिहार के कर और जीएसडीपी का अनुपात 5 से 6 प्रतिशत के बीच है जो उत्तर प्रदेश जैसे अन्य राज्यों से काफी पीछे है।’

वह सुझाव देते हैं कि राज्य को राजस्व के लिए शराबबंदी में आंशिक छूट पर विचार करना चाहिए और घाटे में चल रहे सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों का निजीकरण करना चाहिए। वह कहते हैं, ‘वर्ष 2023 में ही 73 ऐसी संस्थाओं (जैसे बीएसईडीसी, बियाडा, बिहार राज्य पर्यटन विकास निगम आदि) ने शुद्ध घाटा दर्ज किया।’ एक अन्य शिक्षाविद ए.के. झा कहते हैं, ‘बिहार में मानव संसाधन का विकास करने की आवश्यकता है और इसके साथ ही शिक्षा सुधार भी अनिवार्य है।’

First Published : November 14, 2025 | 10:56 PM IST