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विकास में लंबी छलांग, मंजिल अभी दूर

देश में एक्सप्रेसवे-सड़कों का जाल फैला, बुलेट ट्रेन के साथ विश्व व्यापार में छाने को बंदरगाह हैं तैयार

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ध्रुवाक्ष साहा   
दीपक पटेल   
Last Updated- December 31, 2024 | 10:55 PM IST

जब हम 21वीं सदी में कदम रख रहे थे तो देश का बुनियादी ढांचा विकास बहुत ही सुस्त था। तमाम परियोजनाएं बिखरी हुई थीं और इनमें निजी क्षेत्र की भागीदारी सीमित थी। लेकिन अब जब हम सदी का चौथाई सफर पूरा कर चुके हैं तो विकास का परिदृश्य बिल्कुल बदला हुआ है। देश बहुत महत्त्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है। चौड़ी और लंबी-लंबी सड़कों की परियोजनाएं फर्राटे भर रही हैं तो बुलेट ट्रेन का सपना साकार होने वाला है। वैश्विक व्यापार परिदृश्य में अपना प्रभुत्व जमाने के वादे के साथ बंदरगाहों का भी विस्तार हो रहा है।

दूरदराज के क्षेत्रों को राजमार्गों से जोड़ने से लेकर लाखों लोगों को सफर कराने वाले विमानन नेटवर्क के विस्तार तक भारत के बुनियादी विकास का सफर बदलाव की अनूठी कहानी है। चौथाई सदी की यह विकास यात्रा में अनेक उपलब्धियां हासिल हुई हैं तो अटकी परियोजनाएं और सुरक्षा चिंताएं जैसी बहुत सी चुनौतियां भी सामने आई हैं। जब देश 2047 तक 30 लाख डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य की ओर बढ़ रहा है तो इसके लिए अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है।

सड़कें: विकास का सुनहरा सफर

जब देश नई सदी का पहला साल पूरा कर रहा था तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दिसंबर 2000 में राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम- स्वर्ण चतुर्भुज योजना के पहले चरण की शुरुआत की। उस समय यह देश की सबसे बड़ी राजमार्ग विकास परियोजना थी। कई लोगों ने इसे देश के बुनियादी ढांचे के एकीकृत विकास की दिशा में पहला बड़ा कदम करार दिया था।

इन 25 सालों के दौरान 2024 में देश का राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क लगभग तीन गुना बढ़कर 146,000 किलोमीटर हो गया है। सड़कों का यह जाल जीपीएस आधारित टोल संग्रह और तेज गति के अनुकूल एवं एग्जिट-एंट्री प्वाइंट (एक्सेस कंट्रोल्ड एक्सप्रेसवे) जैसी आधुनिक सुविधाओं से सुसज्जित है। बुनियादी ढांचा विकास के साथ निजी वाहनों की संख्या भी तेजी से बढ़ी है, जिससे प्राइवेट उद्योग भी खूब फला-फूला है। इस बदलाव में टोल संग्रह ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार साल 2000 से अब तक राष्ट्रीय राजमार्गों पर वाहन चालकों से 2.1 लाख करोड़ रुपये का टोल वसूला गया है। इसमें 1.4 लाख करोड़ रुपये निजी टोल कंपनियों के खाते में गए हैं। बीते 25 वर्षों में राष्ट्रीय राजमार्ग टोल संग्रह की औसत चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर 12 प्रतिशत रही है। इस अवधि में राष्ट्रीय राजमार्गों की सूरत भी पूरी तरह बदल गई है। जो राजमार्ग 20-25 साल पहले साधारण नजर आते थे, आज आधुनिक सुविधाओं, बेहतर गुणवत्ता के साथ उनकी शक्ल-ओ-सूरत ही बदल गई है।

बड़े पैमाने पर निजी क्षेत्र की भागीदारी से सड़कें बन रही हैं। कभी यह काम अकेले ठेकेदारों के कब्जे में होता था, अब बेहतरीन वित्त पेशेवर इसे अंजाम दे रहे हैं। पिछले पांच वर्षों के दौरान ही राजमार्ग निर्माण के लिए केंद्र, राज्य और निजी क्षेत्र के बीच 11.3 अरब डॉलर का आदान-प्रदान हुआ है। अर्नस्ट ऐंड यंग (ईवाई) में पार्टनर सृष्टि आहूजा कहती हैं कि अगले पांच साल में यह आंकड़ा बढ़कर 25-30 अरब डॉलर पहुंचने की उम्मीद है।

लेकिन, 2024 राजमार्ग निर्माण की दृष्टि से बहुत ही चुनौतीपूर्ण साल रहा है। क्योंकि, देश का सबसे बड़ा राजमार्ग विकास कार्यक्रम 10 लाख करोड़ रुपये की भारतमाला परियोजना लालफीताशाही में अटक कर हुई देरी के कारण अत्यधिक लागत बढ़ जाने से रद्द करनी पड़ी। भारतमाला परियोजना में सम्मिलित करने के लिए 25 वर्षों के दौरान लगभग 20 लाख करोड़ रुपये की लागत वाले विजन 2047 अम्ब्रेला कार्यक्रम को केंद्र के दृष्टिकोण में आए बदलाव के कारण अलग कर दिया गया है।

एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘भारतमाला से जुड़ी बड़ी परियोजनाएं और नए एक्सप्रेसवे परियोजनाएं केंद्रीय कैबिनेट द्वारा एक-एक कर आगे बढ़ाए जा रहे हैं। उन्हें अलग-अलग ही स्वीकृति दिए जाने की योजना है।’ लोक सभा चुनाव के कारण राजमार्ग के ठेके देने का काम बहुत धीमा पड़ गया था और अगस्त में यह 1,152 किलोमीटर पर आ गया था। एसबीआई कैप्स को उम्मीद है कि अब इसमें तेजी आएगी और वित्त वर्ष 25 के अंत तक यह 8,500 किलोमीटर पर पहुंच जाएगा।

रेलवे ट्रैक का विस्तार

अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व वाली सरकार में तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी ने 2000 में जब सदी का पहला रेल बजट पेश किया तो उसमें आजादी के बाद पहली बार भारतीय रेल नेटवर्क में सुधार के कुछ संकेत नजर आए थे। बनर्जी ने अपने बजट भाषण में कहा था, ‘जब 1947 में भारत को आजादी मिली तो यहां लगभग 54,000 किलोमीटर रेल नेटवर्क मौजूद था। आज 25 फरवरी सन 2000 में रेलवे का नेटवर्क बढ़कर 62,800 किलोमीटर हो गया।

आजादी के 53 वर्षों में भारत ने इसमें साम्यवादी शासन के 94 वर्षों के मुकाबले एक चौथाई से भी कम वृद्धि की है।’ इस दौरान यात्री सुविधाओं और प्रौद्योगिकी विकास के मामले में काफी प्रगति की हो, लेकिन रेलवे का बुनियादी ढांचा फिर भी चिंता का विषय बना रहा। ताजा आंकड़ों के मुताबिक आज देश में रेल ट्रैक की लंबाई 68,584 किलोमीटर है। चौथाई सदी के दौरान प्रत्येक वर्ष 231 किलोमीटर रेल ट्रैक का इजाफा हुआ है।

यानी एक दिन में एक किलोमीटर रेलवे ट्रैक ही बिछाया गया। साल 2024 में भारत ने अपनी बुलेट ट्रेन बनाने का प्रयास किया। इसके टेंडर राज्य स्वामित्व वाली बीईएमएल (भारत अर्थ मूवर्स लिमिटेड) को दिए जा चुके हैं, जो 2026 तक देश में 280 किमी प्रति घंटा की रफ्तार से चलने वाले ट्रेन कोच बनाएगी।

बंदरगाह: वैश्विक दृष्टिकोण

बंदरगाह और टर्मिनल (संचालन और वाणिज्यिक), एमईएनए और उपमहाद्वीप, डीपी वर्ल्ड के मुख्य परिचालन अधिकारी रविंदर जोहल ने बताया, ‘स्वचालन से प्रौद्योगिकी बदलाव तक पिछले 25 वर्षों में बंदरगाह उद्योग में आमूलचूल परिवर्तन देखने को मिला है।’ उन्होंने कहा, ‘वस्तुओं को एक जगह से दूसरी जगह बिना देर किए लगातार आपूर्ति के लिए देश के आंतरिक हिस्सों में स्थित लॉजिस्टिक हब से जुड़ी एकीकृत आपूर्ति श्रृंखला विकसित करने, रेल, सड़क और जहाज नेटवर्क इसके विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।’

दो युद्धों और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के पूरी तरह गड़बड़ा जाने से भारत अपनी नौवहन रणनीति पर पुनर्विचार करने पर मजबूर हुआ है। केंद्रीय जहाजरानी मंत्री सर्बानंद सोनोवाल ने इस अखबार को बताया, ‘वर्ष 2047 तक जहाज निर्माण में शीर्ष पांच देशों में शामिल होने के लिए हम 54 लाख करोड़ रुपये निवेश करेंगे।’

नए क्षितिज पर विमानन क्षेत्र

दिसंबर 2000 में पूरे भारत में हर सप्ताह केवल 3,568 घरेलू उड़ानों का संचालन होता था। एयर इंडिया और इसकी सहायक कंपनी इंडियन एयरलाइंस, जेट एयरवेज और एयर सहारा जैसी चार बड़ी विमानन कंपनियां थीं। लेकिन, पिछले ढाई दशक में भारतीय नागर विमानन क्षेत्र में बहुत ही नाटकीय परिवर्तन देखने को मिला है। एविएशन एनालिटिक्स फर्म सिरियम के अनुसार आज प्रत्येक सप्ताह देश भर में 22,484 घरेलू उड़ानें संचालित हो रही हैं। भले ही कड़ी प्रतिस्पर्धा के कारण पिछले 25 वर्षों में जेट एयरवेज, किंगफिशर एयरलांइस और गो फर्स्ट जैसी तमाम एयरलाइंस का पतन देखा गया है, लेकिन इस दौरान किराए कम हुए हैं और हवाई यात्रा लोगों के लिए काफी किफायती हुई है।

भविष्य की राह

हाल के वर्षों में बड़े पैमाने पर पूंजी बुनियादी ढांचे पर खर्च हुई है, पिछले दिनों नीति आयोग के मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) बीवीआर सुब्रमण्यम ने कहा कि 2047 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को 10 गुना बढ़ने और 30 लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की भारत की महत्त्वाकांक्षा का मतलब है कि अभी देश के 90 प्रतिशत हिस्से को विकास से जोड़ा जाना है। विशेषज्ञ इस बात से एकमत हैं कि इसके लिए बुनियादी ढांचे में भारी निवेश की आवश्यकता होगी।

साल 2025 आ गया है और विकास को गति देने के लिए केंद्र के पास ग्रेट निकोबार की गैलाथिया खाड़ी में मेगा-बंदरगाह, महाराष्ट्र में वधावन और भारत-पश्चिम एशिया-यूरोप आर्थिक गलियारा जैसी तमाम बड़ी परियोजनाएं हैं, जिन्हें तेजी से आगे बढ़ाना है।

First Published : December 31, 2024 | 10:55 PM IST