घटती कीमतों में फंस सकते हैं आप

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बीएस संवाददाता
Last Updated- December 07, 2022 | 5:04 PM IST

मकान की कीमतें जब भी बढ़ती हैं, आपकी अपने मकान में लगाई गई इक्विटी भी बढ़ती है। चलिए इस बात को हम एक उदाहरण की मदद से समझते हैं।


मान लेते हैं कि आपने तीन वर्ष पहले 50 लाख रुपये कीमत की परिसंपत्ति खरीदी थी, जिसके लिए आपने 5 लाख रुपये की एक-मुश्त अदायगी की थी और 45 लाख रुपये के लिए आवास ऋण लिया था।

अब अगर उस परिसंपत्ति की कीमत बढ़कर 1 करोड़ रुपये हो गई है तो इसका मतलब है कि अब अगर आप उस घर को बेच भी देते हैं और अपने पूरे कर्ज का भुगतान भी कर देते हैं तो भी आपको 55 लाख रुपये के तकरीबन शुध्द मुनाफा होगा।

कीमतों में इजाफे का एक और फायदा यह भी है कि इससे आप परिसंपत्ति पर अतिरिक्त कर्ज भी ले सकते हैं। इसे होम इक्विटी के नाम से जाना जाता है, जो अमेरिका में काफी आम योजना है। भारत में ज्यादातर बैंक इसे ‘टॉप-अप लोन’ के नाम से पुकारते हैं, जिसमें कर्ज लेनदार परिसंपत्ति के मौजूदा मूल्यांकन के आधार पर अतिरिक्त राशि कर्ज के रूप में ले सकता है।

जहां परिसंपत्ति की कीमतों में इजाफे से होम इक्विटी में भी इजाफा होता है, वहीं इसका ठीक विपरीत भी उतना ही सच है जितना होम इक्विटी में इजाफा। इसलिए जब परिसंपत्ति की कीमतें गिरती हैं, आपकी होम इक्विटी में भी गिरावट आती है। हालिया समय में, कई ऐसी खबरें आई हैं, जिनमें रियल एस्टेट में कीमतों में मंदी की बात कही गई है।

साथ में यह भी देखा गया है कि इन दिनों में बहुत ही कम कारोबार हुआ है। इसकी वजह से कीमतों में सुधार हो सकता है और जिन क्षेत्रों में कीमतें जहां बहुत तेजी से और जल्दी बढ़ती हैं, वहां सुधार काफी तेज हो सकता है। भविष्य में मकान खरीदने का सपना देखने वालों के लिए यह काफी सुकून देने की बात हो सकती है। लेकिन मौजूदा मकान मालिकों के लिए परिस्थिति कुछ पेंचीदा है।

परिसंपत्ति की गिरती कीमतों का मतलब है कि उनकी होम इक्विटी भी कम होगी। जबकि कई इस बात से अंजान हैं कि आवास ऋण के करार में अन्य शर्तों के साथ एक छुपी हुई शर्त भी होती है, जिसे ‘प्रतिभूति का मूल्यह्रास’ शर्त कहते हैं। चलिए इस शर्त की अहमियत को एक उदाहरण के साथ समझते हैं। उदाहरण के लिए, 50 लाख रुपये में वहीं घर 5 लाख रुपये के निजी योगदान और 15 वर्ष के लिए 45 लाख रुपये के आवास ऋण के साथ खरीदा जाता है।

अगर रियल एस्टेट बाजार में तीसरे साल में 25 प्रतिशत का सुधार होता है तो परिसंपत्ति की कीमत 37.5 लाख रुपये रह जाती है। हालांकि बैंक ने आपको 45 लाख रुपये दिए थे। अगर ऐसी स्थिति पैदा होती है तो बैंक के पास परिसंपत्ति की कीमत का 90 प्रतिशत अपने पास रखने के लिए अधिक प्रतिभूतियों की मांग करने का अधिकार है। ऐसे में बैंक को आदर्श रूप में 33.75 लाख रुपये की मांग करनी चाहिए।

इससे खुद ब खुद बैंक को 10 लाख रुपये से अधिक के अंतर के लिए प्रतिभूतियां मांगने का अधिकार मिल जाता है (आवास ऋण के शुरुआती वर्षों में चूंकि सिर्फ ब्याज का भुगतान होता है, मूलधन की अदायगी बाद के वर्षों में की जाती है)। और अगर आप इस अदायगी में नाकामयाब रहते हैं तो माना जाता है कि आप डिफॉल्टर हैं, फिर बेशक आपने ईएमआई का समय से भुगतान किया हो।

घर खरीदने की चाह में अक्सर इन बातों की अनदेखी कर दी जाती है। अक्सर घरेलू बजट को इन कामों के लिए बढ़ा भी दिया जाता है। लेकिन इस बात को ध्यान में रखना बेहद जरूरी है कि आवासीय परिसंपत्ति को कर्ज पर खरीदने का मतलब है कि आप बैंक के पैसे पर आप जी रहे हैं। ऐसे खरीदार जिन्होंने कम स्तर पर बाजार में प्रवेश किया था और उन्होंने टॉप-अप लोन नहीं ले रखा, वे चैन की सांस ले सकते हैं।

दूसरी ओर जिन्होंने हालिया समय में बाजार में कदम रखा है और अगर कीमतें तेजी से नीचे गिर रही हैं, तो उनकी हालत बेहद अच्छी नहीं है। घर खरीदारों की आम चिंता ब्याज दरों के बढ़ने पर है, जिसकी वजह से ईएमआई भी बढ़ जाएंगी। इससे भी बढ़ा जोखिम तो तब है, जब बैंक आपसे अग्रिम रूप में पैसा मांगेंगे और आप उसे चुकाने में असमर्थ होंगे।

किसी भी व्यक्ति को ऐसी घटनाओं के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। आप समय से ईएमआई चुकाते हैं तो भी आप डिफॉल्ट के चंगुल से बच जाएंगे, ऐसा नहीं है। सबसे अहम यह है कि अगर आप  इस अतिरिक्त राशि को चुकाने में असमर्थ होते हैं तो आपको तुरंत डिफॉल्टर की श्रेणी में डाल दिया जाता है। और इसका मतलब  है कि आपके कर्ज की बची हुई राशि का तुरंत भुगतान करना होगा।

ऐसी स्थितियों से बचने के लिए, आवास ऋण लेने से पहले हमेशा इन बातों का ध्यान रखें:

अपने बजट को कभी न बढ़ाएं। अगर आपको अतिरिक्त बेडरूम चाहिए तो इससे आप पर पैसे का अधिक बोझ बढ़ जाएगा। ऐसा करने से पहले सोचें।

सिर्फ इसलिए क्योंकि बैंक आपको 90-05 प्रतिशत तक कर्ज दे रहे हैं, इसका मतलब यह नहीं है कि आप उनसे अधिक कर्ज ले लें। बेहतर यह होगा कि आप 60-70 प्रतिशत राशि केक लिए ही कर्ज लें, क्योंकि इससे घटती कीमतों से सुरक्षा मिलती है।

ईएमआई में होने वाली किसी भी बढ़ोतरी का सामना करने के लिए हमेशा अपने पास अतिरिक्त राशि रखें।

अपने घर के लिए सही कीमत दें। अगर आपको लगता है कि परिसंपत्ति का मूल्यांकन सही नहीं है तो बातचीत करें। अगर आप इंतजार कर सकते हैं तो यह बेहतर विकल्प, खासतौर पर अनिश्चितताओं के समय में। सार यह है कि सोच-समझकर कर्ज लेने से आप काफी समस्याओं से बच सकते हैं, खासतौर पर उस समय जब बाजार नीचे का रुख लिए हो।

First Published : August 18, 2008 | 2:39 AM IST