वित्तीय समावेशन की जी20 वैश्विक साझेदारी दस्तावेज में डिजिटल सार्वजनिक आधारभूत ढांचे (डीपीआई) का उपयोग बढ़ाने की सिफारिश की गई है। विश्व बैंक द्वारा तैयार इस दस्तावेज में डीपीआई का उपयोग कर वित्तीय क्षेत्र के लिए उत्पादकता बढ़ाने, नियमन पर आधारित समुचित जोखिम को बढ़ावा देने, निरीक्षण और समझौते पर नजर रखने के बारे में कहा गया है।
इसके बारे में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ट्वीट किया, ‘विश्व बैंक द्वारा तैयार जी20 के दस्तावेज में भारत के विकास के बारे में रोचक तथ्य बताया गया है। भारत ने वित्तीय समावेशन का लक्ष्य केवल छह साल में हासिल कर लिया है जबकि इसमें कम से कम 47 वर्ष लग सकते थे।’
इस रिपोर्ट में जन धन बैंक खातों, आधार और मोबाइल से धन हस्तांतरण आदि का उदाहरण दिया गया है। रिपोर्ट के अनुसार मोबाइल से धन हस्तांतरण ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। वर्ष 2008 में एक चौथाई वयस्कों के मोबाइल से धन हस्तांतरण करने वाले खाते थे और यह संख्या अब 80 फीसदी से अधिक हो गई है।
रिपोर्ट में डिजिटल सार्वजनिक आधारभूत ढांचे को शामिल करने के उदाहरण दिए गए हैं। इनमें भारत के यूपीआई की तर्ज पर सिंगापुर के सिंगपास, फिलिपींस के फिलसिस, यूएई – पास व त्वरित भुगतान प्रणाली के बारे में जानकारी दी गई है। रिपोर्ट में ब्राजील के पिक्स, टर्की के पिक्स सहित अन्य का भी उल्लेख है।
इस रिपोर्ट में सांकेतिक, स्वैच्छिक और गैर बाध्यकारी सिफारिशें की गई हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि देशों को बेहतरीन डीपीआई विकसित करनी चाहिए। इसकेल लिए व्यापक सक्षम वातावरण भी विकसित किया जाना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सक्षम डीपीआई को ऐसे उत्पाद और सेवाएं मुहैया करवानी चाहिए कि कोई भी इस सुविधा से वंचित नहीं हो और उपभोक्ता के अधिकारों की सुरक्षा हो।’
रिपोर्ट के अनुसार डीपीआई से कुछ कानूनी और नियामकीय जोखिम भी आ सकते हैं। यदि इसके कुछ महत्त्वपूर्ण घटक वित्तीय रूप से अस्थिर हो जाते हैं तो दिवालिया के जोखिम के कारण बड़े पारिस्थितिकीतंत्र पर प्रभाव पड़ सकता है। डीपाई के दुरुपयोग से वित्तीय उपभोक्ता संरक्षण जोखिम बढ़ सकता है। रिपोर्ट के अनुसार डीपीआई का समुचित ढंग से प्रबंधन किए जाने की स्थिति में लेन-देन की लागत को कम किया जा सकता है। इससे नवाचार और प्रतिस्पर्धा को बढ़ाया जा सकता है।