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  वित्त-बीमा  ‘हमें आता है क्षमता का बेहतर इस्तेमाल’
वित्त-बीमा

‘हमें आता है क्षमता का बेहतर इस्तेमाल’

बीएस संवाददाता बीएस संवाददाता —January 4, 2009 9:47 PM IST0
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मांग घटने का असर शिपिंग कंपनियों पर देखने को मिल रहा है क्योंकि उनका माल भाड़ा भी काफी नीचे आ गया है।


हालांकि, एलपीजी की ढुलाई के मामले में भारत की सबसे बड़ी कंपनी वरुण शिपिंग का मानना है कि ऑफशोर (अपस्ट्रीम), क्रूड टैंकर (मिडस्ट्रीम) और वितरण (उत्पादएलपीजी) कारोबार में मांग अपेक्षाकृत ठीक रही है और कंपनी ने इन्हीं कारोबारों पर खासतौर पर ध्यान दिया है।

इसी वजह से जहां दूसरी शिपिंग कंपनियों पर मंदी की जोरदार मार पड़ी है, वहीं वरुण शिपिंग पर इसका असर कम रहा है।

कंपनी के उपाध्यक्ष और प्रबंध निदेशक युधिष्ठिर खटाऊ ने राम प्रसाद साहू के साथ बातचीत में इस क्षेत्र के विभिन्न पहलुओं और मौजूदा रुख की जानकारी दी और बताया कि उनकी कंपनी ने विकास की क्या योजनाएं तैयार की हैं। पेश हैं इस बातचीत के मुख्य अंश:

जहाज का भाड़ा घटा है। इसका आपके कारोबार पर कितना असर पड़ा है?

जिन ऊर्जा उत्पादों का परिवहन होता है उसमें मुख्य तौर पर घरेलू गैस और पेट्रोलियम उत्पाद हैं। ये कुछ ऐसे उत्पाद हैं जिनकी मांग आमतौर पर अधिक घटती नहीं है।

ऊर्जा क्षेत्र में माल ढुलाई की जरूरत भी पिछले दिनों कुछ कम हुई है, लेकिन इसका असर कंटेनर और ड्राई बल्क सेक्टर पर नहीं पड़ा है।

क्रूड टैंकर के परिवहन के लिए प्रतिदिन का हमारा ढुलाई भाड़ा औसतन 35,000 से 40,000 डॉलर के बीच रहा है जबकि, गैसों के परिवहन के लिए यह करीब 25,000 से 30,000 डॉलर के बीच रहा है। वहीं अपतटीय संपत्तियों से हमें 50,000 डॉलर मिलते हैं।

उद्योग जगत की दूसरी कंपनियों की तुलना में हमारा प्रदर्शन कुछ बेहतर रहने की कई वजहें रही हैं। उदाहरण के लिए क्रूड टैंकर सेक्टर में हमारे पास आधुनिक बेड़े हैं,

एलपीजी में हमारी यूटिलाइजेशन दर उद्योग जगत की दूसरी कंपनियों से बेहतर है और अपतटीय कारोबार में हम गहरे जल के कारोबार पर अधिक ध्यान देते हैं। हमारे राजस्व में 5 से 10 फीसदी की गिरावट देखने को मिल सकती है।

वरुण अपतटीय कारोबारों पर अधिक ध्यान दे रहा है, इसकी वजह क्या है?

हमनें 1984 में ही अपतटीय कारोबारों की शुरुआत की थी, पर तब हम छिछले जल के कारोबार से जुड़े थे। दो साल पहले हमने गहरे समुद्र में खुदाई शुरू की।

पहले अपतटीय कारोबार का हमारे राजस्व में करीब दो फीसदी का हिस्सा होता था, पर इस वित्त वर्ष में यह हिस्सा बढ़कर 20 से 25 फीसदी होने की उम्मीद है।

हमने इस कारोबार की ओर अधिक ध्यान दिया क्योंकि यह कारोबार उच्च तकनीक से जुड़ा हुआ था और दूसरे क्षेत्रों की तुलना में इस पर मंदी की मार पड़ने की गुंजाइश कम थी।

गहरे जल में तेल खुदाई की अभी भी काफी संभावनाएं हैं और इसी वजह से अपतटीय कारोबार का प्रदर्शन बेहतर रहा है। जो प्रमुख तेल कंपनियां समुद्र में खुदाई से जुड़ी हुई हैं, वे अपने कारोबार को सीमित करने के बारे में जल्द नहीं सोचती हैं।

इसकी प्रमुख वजह है कि तेल कंपनियां पहले से ही खुदाई के लिए संपत्तियों और ब्लॉक की खरीदारी कर चुकी होती हैं और वे चाहती हैं कि उनका चक्र पूरा हो सके। आने वाले दिनों में अपतटीय कारोबार से हमें और मुनाफा होने की उम्मीद है।

वित्त वर्ष 2009 के लिए हमारी कुल पूंजी निवेश योजना 40 करोड़ डॉलर की थी और इसमें से 10 करोड़ डॉलर हम संपत्तियों को खरीदने में खर्च कर चुके हैं।

हमारी योजना 31 मार्च, 2009 के पहले दो या तीन और जहाज जोड़ने की है। जब तक कच्चे तेल की कीमतें प्रति बैरल 50 से 60 बैरल के बीच हैं, तब तक इस क्षेत्र में कारोबार करना बहुत मुश्किल नहीं होगा।

ओपेक द्वारा प्रतिदिन 22 लाख बैरल तेल उत्पादन घटाने से क्या असर पड़ेगा?

इसका कुछ असर तो पड़ेगा, पर इस कटौती से वैश्विक स्तर पर उत्पादन 3 फीसदी से भी कम घटेगा। जो भी कमी आएगी, उसे गैर ओपेक देश पूरा कर सकते हैं।

कुछ समय पहले कच्चे तेल की कीमतों में आग लगी हुई थी और इसी वजह से उपभोग में भी कमी आई थी, पर अब जब की कीमतें गिर चुकी हैं तो उपभोग भी बढ़ने की उम्मीद है।

आज भी पहले के बराबर ही तेल का परिवहन किया जा रहा है, अंतर केवल इतना है कि इनकी ढुलाई जिन बर्तनों में की जाती थी, उसका आकार छोटा हो गया है।

इस वजह से अब इस कारोबार में कम लोगों की जरूरत हो रही है। हमने कारोबार के लिए मध्यम आकार के बर्तनों का इस्तेमाल किया और इसका फायदा हमें दिख रहा है।

एलपीजी की मांग में क्या फर्क पड़ा है?

भारत में 1 से 1.1 करोड़ टन एलपीजी की खपत होती है। इसमें से 70 फीसदी का उत्पादन वह खुद करता है और बाकी की जरूरत आयात से पूरी होती है। हमारा मानना तो यही है कि भारत में एलपीजी की मांग में कोई कमी नहीं आई है।

तो फिर क्या वजह है कि तीन तिमाही पहले राजस्व में एलपीजी की जो हिस्सेदारी थी इस बार वह घटकर आधी रह गई है?

हम चाहते थे कि हम अपने ग्राहकों के लिए एक ऐसे मंच के तौर पर उभरें जो सारे ऊर्जा उत्पादों के परिवहन की सुविधा देती हो। इस वजह से हमनें अपने कारोबार को अपस्ट्रीम, मिडस्ट्रीम और डाउनस्ट्रीम में बांटा। दूसरे हिस्सों में भी बराबर ध्यान देने के वजह से राजस्व में एलपीजी का हिस्सा कुछ घटा है।

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