भारत में कोविड-19 के भयानक संकट की वजह के अब वैश्विक निवेशक बढ़ते कर्ज के बोझ और सुधारों में सुस्त प्रगति को लेकर सवाल उठाने लगे हैं। भारत को भविष्य की आर्थिक महाशक्ति के रूप में प्रचारित किया जा रहा था, वह क्या अभी भी ‘निवेश ग्रेड’ के दर्जे का हकदार है।
पिछले साल डाउनग्रेड किए जाने के बाद भारत पर पहले ही निवेश ग्रेड क्रेडिट रेटिंग पर खतरा मंडरा रहा था और अब हाल के सप्ताहों में प्रमुख रेटिंग एजेंसियों एसऐंडपी, मूडीज और फिच रेटिंग ने रुख कड़े कर लिए हैं। सभी तीनों फर्मों ने या तो भारत की जीडीपी वृद्धि दर में कटौती कर दी है, या कटौती की चेतावनी दी है। वहीं सरकार का कर्ज जीडीपी के 90 प्रतिशत के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है।
इस मामले में विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश लंबे समय से विसंगतियों से गुजर रहा है। देशों के कर्ज के स्तर को देखते हुएफ फिच ने बीबीबी ब्रैकेट में रखा है और इसे नीचे करने की चेतावनी भी दी है। कोविड-19 के कारण करीब हर जगह कर्ज बढ़ रहा है और रेटिंग फर्में संकेत दे रही हैं कि वे किसी निर्णय पर पहुंचने के पहले हाल के लहर के सुस्त पडऩे तक इंतजार करेंगी। रेटिंग के प्रति संवेदनशील संपत्तियों जैसे बॉन्ड में निवेश के बारे में निवेशक अपने स्तर पर फैसले कर रहे हैं।
एनएन इन्वेस्टमेंट पार्टनर्स में एशियन डेट के प्रमुख जोएप हंटजेंस ने कहा, ‘हम अभी भी भारत को निवेश ग्रेड के रूप में देख रहे हैंं।’ उनका मानना है कि भारत की अर्थव्यवस्था तेजी से पटरी पर लौटेगी।
वहीं कोरोना के मामले बढऩे व एक और राष्ट्रीय लॉकडाउन को देखते हुए अन्य की राय कुछ अलग है। जेपी मॉर्गन का कहना है कि रेटिंग एजेंसियां इस समय आंच को रोकने के लिए सुस्त रुख दिखा रहे हैं। एमऐंडजी के इल्डर वाखिटोव का कहना है उनकी फर्म का मॉडल डाउनग्रेड की ओर जा रहा है। वहीं यूबीएस का माना है कि भारत का कर्ज जल्द ही बड़े उभरते बाजारों में तीसरा बड़ा कर्जदार हो जाएगा और वह ब्राजील व अर्जेंटीना के बाद तीसरे स्थान पर आ जाएगा।