मंदी के इस दौर में बड़ी-बड़ी कंपनियों की हालत खराब है। ऐसे में रिलायंस इंडस्ट्रीज कैसे इसकी मार से बच सकती है। कंपनी को बुरी खबरों का सामना करना पड़ा, तो उसके लिए कई अच्छी खबरें भी आईं।
कच्चे तेल की बुरी गत और वैश्विक मंदी को देखते हुए कंपनी के रिफाइनिंग कारोबार पर दबाव साफ महसूस किया जा रहा था। लेकिन विश्लेषकों की मानें तो रिलायंस में इस दौर की दिक्कतों से निपटने की पूरी ताकत है।
कंपनी के कारोबार के बारे में बता रहे हैं शरत चेल्लुरी और विशाल छाबड़िया :
पिछले कुछ महीने मुल्क की सबसे बड़ी कंपनी रिलायंस इंडस्ट्रीज (आरआईएल) के लिए उथल-पुथल भरे रहे।
इस दौरान कंपनी को बुरी खबरों का सामना करना पड़ा, तो उसके लिए कई अच्छी खबरें भी आईं। कच्चे तेल की बुरी गत और वैश्विक मंदी को देखते हुए कंपनी के रिफाइनिंग कारोबार पर दवाब साफ महसूस किया जा रहा था।
पिछले वित्त वर्ष में इसी कारोबार ने कंपनी को उसके कुल मुनाफे का 54 फीसदी से भी ज्यादा हिस्सा दिया था। इसीलिए पिछले तीन सालों में जब कंपनी का मुनाफा कम हुआ, तो किसी को इस पर ज्यादा हैरानी नहीं हुई। इसके साथ-साथ कंपनी का पेट्रोकेमिकल्स का कारोबार भी उसकी खास मदद नहीं कर पा रहा था।
गैस को लेकर अनिल अंबानी की रिलायंस नैचुरल रिसोर्सेज लि. (आरएनआरएल) और एनटीपीसी के साथ विवाद ने भी कोढ़ में खाज का काम किया। इसी वजह से कंपनी कृष्णा-गोदावरी बेसिन (केजी बेसिन) से गैस का उत्पादन शुरू नहीं कर पाई, जिससे उसके मुनाफे पर असर पड़ा।
बंबई हाईकोर्ट के फैसले से कंपनी को कुछ राहत तो मिली है क्योंकि इससे गैस के उत्पादन आंशिक रूप से ही सही, लेकिन शुरू तो हो जाएगा। वैसे, इससे यह भी पता चलता है कि गैस की कीमतों की अनिश्चितता अभी कुछ महीनों तक चलेगी।
हालांकि, अनिश्चितता से भरा यह दौर कमजोर खिलाड़ियों के लिए बड़ी दिक्कतों को पैदा कर सकता है। लेकिन विश्लेषकों की मानें तो रिलायंस में इस दौर की दिक्कतों से निपटने की पूरी ताकत है। इस वजह से उसे अगले वित्त वर्ष में भी मुनाफा कमाने में मदद मिलेगी।
अगर उसकी ताकत की बात करें, तो सबसे पहले नाम आता है उसकी कंपनी रिलायंस पेट्रोलियम और उसके गैस और कच्चे तेल के उत्पादन के कारोबार से हुआ मोटा मुनाफा।
उम्मीद है कि कंपनी का यह कारोबार अगले वित्त वर्ष में भी मोटी कमाई देगा। विश्लेषकों का तो यहां तक मानना है कि कंपनी की कुल कमाई इसका हिस्सा बढ़कर 50 फीसदी से भी ज्यादा हो जाएगा।
तेल और गैस पर दबाव
कंपनी ने पहली बार कच्चे तेल का उत्पादन सितंबर, 2008 से केजी बेसिन के डी6 ब्लॉक से शुरू किया था। शुरुआत में इस ब्लॉक कच्चे तेल में हर रोज 5,000 बैरल का उत्पादन होता था। महानदी ब्लॉक को मिला दें तो 2010 और 2011 तक हर दिन यहां से 30 से 40 हजार बैरल कच्चे तेल का उत्पादन होने होने लगेगा।
अब आते हैं, गैस पर। इसके बारे में उम्मीद है कि कंपनी को इससे काफी मोटी कमाई होगी। आरआईएल ने पहले ऐलान किया था कि केजी बेसिन से गैस का उत्पादन वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही से ही होने लगेगा।
कंपनी को उम्मीद थी कि अगले वित्त वर्ष में गैस के उत्पादन को बढ़ाकर वह 80 एमएमएससीएमडी (मिलियन मेट्रिक स्टैंडर्ड क्यूबिक मीटर्स पर डे) कर देगी।
शुक्रवार को आए अदालती फैसले के बाद उम्मीद है कि कंपनी मार्च से गैस का उत्पादन शुरू कर देगी। कंपनी मार्च, 2010 तक गैस के उत्पादन को बढ़ाकर 80 एमएमएससीएमडी के स्तर तक ले जाएगी।
वैसे, इसके एक अच्छी शुरुआती कहेंगे, लेकिन कीमत से जुड़े मुद्दों का हल अभी बाकी है। इस विवाद के जड़ में है आरएनआरएल और एनटीपीसी को गैस की बिक्री।
आरआईएल का कहना है कि उसे इन कंपनियों को सरकारी आधार पर यानी 4.2 डॉलर प्रति एमबीटीयू (मिलियन ब्रिटिश थर्मल यूनिट) की कीमत पर गैस बेचने की इजाजत मिलनी चाहिए।
वहीं, आरएनआरएल का कहना है कि आरआईएल उसे 2.34 डॉलर प्रति एमबीटीयू की कीमत पर ही गैस बेचे। विश्लेषकों को आशंका है कि जब तक केजी बेसिन की गैस की कीमत का मुद्दा हल नहीं होता, आरआईएल के शेयरों की कीमत पर दबाव बना रहेगा। दोनों पक्षों की कीमतों में 45 फीसदी का अंतर है, इसलिए दांव पर काफी कुछ लगा हुआ है।
वैसे, अगर फैसला आरआईएल के पक्ष में रहा तो उसे गैस को 4.2 डॉलर प्रति एमबीटीयू की कीमत पर बेचने की इजाजत मिल जाएगी।
विश्लेषकों का मानना है कि अगर 2010 तक वह सचमुच गैस उत्पादन को 40 एमएमएससीएमडी के स्तर पर ले जाता है, तो ऐसे में उसे कम से कम दो अरब डॉलर की कमाई होगी।
फिर खर्च, मुनाफे में सरकारी हिस्सा, रॉयल्टी और टैक्स चुकता करने के बाद भी कंपनी के हिस्से में 1-1.1 अरब डॉलर का मुनाफा तो आएगा ही।
लेकिन अगर फैसला आरएनआरएल और एनटीपीसी के साथ जाता है, तो कंपनी को उन्हें 40 एमएमएससीएमडी गैस सिर्फ 2.34 डॉलर प्रति एमबीटीयू के आधार पर बेचनी होगी।
इसका मतलब यह हुआ कि कंपनी का मुनाफा घटकर सिर्फ 40-50 करोड़ डॉलर तक सिमट कर रह जाएगा। हालांकि, 40 एमएमएससीएमडी के ऊपर गैस के बारे में कोई अनिश्चितता नहीं है। इसे कंपनी ऊंची कीमत पर बेच सकती है।
आनंद राठी के विश्लेषक विश्वास काटेला का कहना है कि, ‘अब तक केजी-डी6 ब्लॉक के एक हिस्से में ही गैस की तलाश की गई है। इसका मतलब यह हुआ कि आगे भी राह खुली हुई है। साथ ही, कंपनी के बुनियादी ढांचे का एक बड़ा हिस्सा डी6 ब्लॉक में पहले से ही है।
इसका मतलब यह हुआ कि इस बेसिन में तेल के नए कुओं की तलाश और भी तेज रफ्तार से होगी। इसके साथ-साथ आरआईएल अगले तीन-चार सालों में सीबीएम और एनईसी ब्लॉक से भी उत्पादन शुरू कर सकती है।
इन बातों को ध्यान में रखते हुए हमें उम्मीद है कि कंपनी के इस कारोबार का कंपनी की कुल कमाई में हिस्सा 2011 के बाद से और भी तेजी से बढ़ेगा।’
कंपनी की टैक्स और ब्याज चुकता से पहले की कुल आय में इसका हिस्सा 15 फीसदी का है, जो अगले दो साल में बढ़कर 50 फीसदी का हो जाएगा। इसमें 40 एमएमएससीएमडी के ऊपर किए गए गैस के उत्पादन से होने वाली कमाई भी शामिल है।
कंपनी को उम्मीद है कि 2011 तक गैस उत्पादन को बढ़ाकर 80 एमएमएससीएमडी के स्तर तक ले जाएगी। इस पूरे खोज अभियान की खातिर कंपनी को 11 अरब डॉलर का पूंजी विस्तार करना पड़ेगा। इसमें से छह अरब डॉलर तो कंपनी पहले ही खर्च कर चुकी है।
हालांकि, प्रवर्तक 2008 के अंत तक कंपनी में 3.5 अरब डॉलर की पूंजी लगा चुके हैं। साथ ही, कंपनी को कर्ज देने के लिए बैठे लोगों की भी बाजार में कोई कमी नहीं है। ऐसे में बाकी की पूंजी उगाहना कोई मुश्किल काम नहीं दिखता।
रिफाइनिंग और पेट्रोकेमिकल्स : कमजोर मुनाफा
कंपनी की कुल कमाई का 95 और मुनाफे का 85 फीसदी हिस्सा रिफाइनिंग और पेट्रोकेमिकल्स के कारोबार से आता है। लेकिन मंदी की चोट इन पर भी पड़ी है। कच्चे तेल की गिरती कीमत का असर आरआईएल के आंकड़ों पर साफ दिखाई दे रहा है।
आरआईएल का सकल रिफाइनिंग मुनाफा (जीआरएम) पिछले वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही के 15.4 डॉलर प्रति बैरल से कम हो कर इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में गिरकर 10 डॉलर ही रह गया था। दुनिया की दूसरी रिफाइनिंग कंपनियों का भी ऐसा ही हाल हुआ।
हालांकि, कंपनी ने पिछले 14 तिमाहियों की तरह इस बार भी अपना जीआरएम सिंगापुर के बेंचमार्क जीआरएम से ऊपर ही रखा, जो पिछले साल की तीसरी तिमाही में 6.4 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर था।
आईसीआईसीआई सिक्योरिटीज के विश्लेषक अमित मिश्रा का कहना है कि, ‘अच्छी हेजिंग के साथ-साथ आरआईएल के अच्छे जीआरएम की बड़ी वजह उसकी रिफाइनिंग के दौरान इस्तेमाल की जाने वाली अच्छी प्रक्रिया भी है। इस वजह से तो वह सिंगापुर के जीआरएम को मात दे पाई।’
हालांकि, आज मांग कम होती जा रही है और नई रिफाइनरियां बन रही हैं, तो ऐसे में अगली कुछ तिमाहियों के दौरान जीआरएम पर दबाव बरकरार रहेगा। विश्लेषकों को उम्मीद है कि अब आरआईएल का जीआरएम भी गिरकर आठ डॉलर प्रति बैरल के स्तर आ जाएगा।
वैसे, अच्छी बात यह है कि रिलायंस पेट्रोलियम की 5.8 लाख बीपीडी की क्षमता वाली रिफाइनरी ने 25 दिसंबर से काम करना शुरू कर दिया है। इसकी वजह से कंपनी को जीआरएम को गिरने से रोकने में मदद मिलने की उम्मीद है।
रिलायंस पेट्रोलियम की यह रिफाइनरी आरआईएल की मौजूदा रिफाइनरी से ज्यादा जटिल है, जो कंपनी को मोटा मुनाफा देने के काबिल है। विश्लेषकों को उम्मीद है कि यह रिफाइनरी रिलायंस पेट्रोलियम को आरआईएल के मुकाबले 1.5 डॉलर प्रति बैरल का ज्यादा मुनाफा देगी।
इस रिफाइनरी के तैयार होने के साथ ही, आरआईएल की गुजरात के जामनगर कॉम्पलेक्स की कुल रिफाइनिंग क्षमता दोगुनी होकर 12.1 लाख बीपीडी हो गई है। इस वजह से कंपनी को कम जीआरएम पर भी मोटा मुनाफा होने की पूरी उम्मीद है।
रिफाइनिंग के कारोबार में मुनाफा कमाने के लिए कंपनी ने अब अपने उत्पादों की गुणवत्ता को बढ़ाना शुरू कर दिया है। कंपनी ने ही सबसे पहले मुल्क में अपने पेट्रोलियम उत्पादों में सल्फर की मात्रा कम करनी शुरू की है। इस वजह से वह कड़े यूरोपीय नियमों का पालन कर सके।
इसकी वजह से वह अपने उत्पादों के लिए ऊंची कीमत मांग सकती है। साथ ही, मंदी के इस दौर में अच्छे उत्पादों को लाकर वह अपनी पूंजी का पूरा इस्तेमाल कर सकती है। रिलायंस पेट्रोलियम को शुरुआती सालों में कर छूट का भी लाभ मिलेगा क्योंकि उसकी रिफाइनरी सेज में है।
इस वजह से उसकी मुनाफा कमाने की ताकत में भी इजाफा होगा। इसीलिए उम्मीद है कि अगले वित्त वर्ष में भी वह मुनाफे में ही रहेगी।
दूसरे कारोबार : मजबूती है बरकरार
कच्चे तेल की आसमान छूती कीमतों की वजह से आरआईएल ने पेट्रोल और डीजल के रिटेल कारोबार में उतरने की योजना को ठंडे बस्ते में डाल दिया था। हालांकि, एक जमाने में प्रीमियम पेट्रोल और डीजल के बाजार के 10 फीसदी हिस्से पर इसी का कब्जा था।
हालांकि, जब कच्चे तेल के दाम आसमान छूने लगे तो उसे अपनी दुकान बढ़ानी पड़ी क्योंकि सरकारी तेल कंपनियां सब्सिडी की वजह से पेट्रोल और डीजल को कम कीमत पर बेच रही थीं। हाल के दिनों में जब कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट आने लगी, तो कंपनी ने इस पर फिर से काम करना शुरू कर दिया था।
हालांकि, पेट्रोल और डीजल की कीमतों में किए गए हालिया कमी और इस सेक्टर में स्वतंत्र मूल्य निर्धारण व्यवस्था की कमी की वजह से कंपनी ने इस योजना को फिर से इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया।
संगठित रिटेलिंग के क्षेत्र में आरआईएल के मुल्क भर में करीब 900 स्टोर हैं और वह इस सेक्टर की शीर्ष तीन कंपनियों में से एक है।
लेकिन विश्लेषकों के मुताबिक कंपनी अब भी मुनाफे में नहीं आई है। मंदी वजह से आज बड़े-बड़े खिलाड़ियों की कमाई जबरदस्त दबाव में है।
अभी उस दिन के आने में काफी वक्त बाकी है, जब यह कारोबार कंपनी को मोटा मुनाफा देगी। यहां तक कि सेज को बनाने के कारोबार में भी आने वाले वक्त में उम्मीद की कोई किरण नजर नहीं आ रही है।
अगर बड़े नजरिये से देखें तो रिफाइनिंग और पेट्रोकेमिकल्स के कारोबार में गिरावट साफ नजर आ रही है। हालांकि, तेल और गैस की खोज के कारोबार के बढ़ने की उम्मीद अगले साल के बाद से ही है। इसलिए कंपनी के लिए काफी कुछ निर्भर करेगा, गैस की कीमतों को लेकर पैदा हुए विवाद के निपटारे पर।
अगर फैसला कंपनी के हक में गया, तो कंपनी की कमाई में जबरदस्त इजाफा हो जाएगा। लेकिन अगर फैसला कंपनी के खिलाफ गया, तो उसके शेयरों की कीमत में 16 रुपये प्रति शेयर तक की गिरावट साफ देखने को मिलेगी। दूसरी तरफ, आरआईएल ने अभी तक 40 हजार वर्ग किलोमीटर में से एक छोटे से इलाके में ही तेल की खोज की है।
ऐसे में अगर कंपनी को दूसरे इलाकों में भी तेल मिल जाता है, तो उसके शेयरों की कीमत में इजाफा आना तो तय है। साथ ही, कंपनी अगर जीआरएम के स्तर को 10 डॉलर प्रति बैरल के स्तर पर भी बनाए रख पाती है, तो इसका भी उसके काफी फायदा मिलेगा।
इस वक्त कंपनी के शेयर 1,325 रुपये के भाव से बिक रहे हैं। विश्लेषकों का मानना है कि अगर ऐसे में कंपनी के लिए कोई बुरी खबर आती है, तो उसके शेयर के भाव में 12-15 फीसदी की गिरावट का आना तय है।