वित्त-बीमा

निर्यातकों से लेकर बॉन्ड ट्रेडर्स तक: RBI पर हस्तक्षेप करने का बढ़ता दबाव

हाल के हफ्तों में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं, जबकि सरकारी बॉन्ड यील्ड अगस्त के अंत में पांच महीने के उच्च स्तर 6.66% तक पहुंच गई

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बीएस वेब टीम   
Last Updated- September 10, 2025 | 12:14 PM IST

अमेरिकी टैरिफ और बाजार अस्थिरता के बीच भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) पर हस्तक्षेप करने के लिए बढ़ते दबाव का सामना कर रहा है। निर्यातक अमेरिकी टैरिफ से प्रभावित हैं, जबकि बैंक ट्रेजरीज बॉन्ड मार्केट में बढ़ती अनिश्चितता से चिंतित हैं। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, स्थानीय या वैश्विक फोर्स जब बाजार संतुलन को प्रभावित करते हैं, तो आमतौर पर RBI से हस्तक्षेप की उम्मीद रहती है। इस साल की शुरुआत में RBI ने क्रेडिट ग्रोथ बढ़ाने के लिए एग्रेसिव तरीके से बॉन्ड्स खरीदे थे।

हाल के हफ्तों में कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं, जबकि सरकारी बॉन्ड यील्ड अगस्त के अंत में पांच महीने के उच्च स्तर 6.66% तक पहुंच गई।

नोमुरा होल्डिंग्स इंक के रेट्स स्ट्रैटेजिस्ट नाथन श्रीबालासुंदरम ने कहा, “यह जानना कठिन है कि बाजार को स्थिर करने के लिए अथॉरिटीज को आगे आना चाहिए या नहीं, क्योंकि हर गवर्नर की दबाव को एडजस्ट करने सीमा अलग-अलग होती है।” उन्होंने आगे कहा, “मौजूदा गवर्नर ने ज्यादा सहज, खासकर FX के संबंध में, नजरिया अपनाया है।” भारतीय रिजर्व बैंक के प्रवक्ता की ओर से इस मसले पर कमेंट के लिए भेजे गए ईमेल का जवाब नहीं दिया।

अमेरिकी टैरिफ का दिख रहा असर

रिपोर्ट के मुताबिक, यूएस प्रेसिडेंट डॉनल्ड ट्रंप के 50% टैरिफ ने व्यापार प्रतिस्पर्धा, रोजगार और आर्थिक विकास पर चिंता बढ़ा दी है। मुख्य आर्थिक सलाहकार वी. अनंथा नागेश्वरन के अनुसार, यह टैरिफ भारत की GDP को 0.5–0.6% तक घटा सकता है। सरकार ने पहले ही कंज्यूमर टैक्सेस में कटौती की है, जिससे ₹48,000 करोड़ का रेवेन्यू लॉस हुआ, और निर्यातकों के लिए पैकेज तैयार कर रही है।

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बॉन्ड मार्केट और रुपये पर क्या है असर

बैंक और पेंशन फंड से घटती मांग के बीच लंबी अवधि के बॉन्ड्स की सप्लाई को कम करने के लिए RBI पर दबाव है। कमजोर रुपये से निर्यातकों को टैरिफ नुकसान कम करने में मदद मिल सकती है। इस साल रुपये ने डॉलर के मुकाबले लगभग 3% की गिरावट दर्ज की है।

IDFC First Bank के अनुसार, रुपये का वर्तमान मूल्य तुलनात्मक रूप से सही या हल्का अंडरवैल्युड है। निर्यातकों ने RBI से कहा है कि उन्हें अमेरिकी डॉलर की आय को अधिक अनुकूल दरों पर बदलने की अनुमति दी जाए।

ऐसे में उम्मीद की जा रही है कि रिजर्व बैंक सेकेंडरी मार्केट में बॉन्ड खरीदारी, साप्ताहिक बॉन्ड नीलामी में बोली अस्वीकार करने जैसे कदम उठा सकता है।

क्या कहते हैं एक्सपर्ट

द लेंडर की मुख्य अर्थशास्त्री गौरा सेन गुप्ता ने कहा, “निकट भविष्य में हाई बायलेटरल टैरिफ से निपटने के लिए एक्सचेंज रेट में गिरावट ही एकमात्र उपाय है।” इस बीच, ब्लूमबर्ग न्यूज ने पिछले हफ्ते बताया कि निर्यातकों ने केंद्रीय बैंक से अनुरोध किया है कि वह उन्हें अमेरिकी इनकम को ज्यादा अनुकूल एक्सचेंज रेट पर एक्सचेंज करने की अनुमति दे।

गामा एसेट मैनेजमेंट एसए के ग्लोबल मैक्रो पोर्टफोलियो मैनेजर राजीव डी मेलो ने कहा, “कीमतों पर दबाव फिर से उभरने की संभावना के साथ, बॉन्ड बाजार को किसी भी तरह का डायरेक्ट पॉलिसी मिसस्टेप के रूप में देखे जाने का जोखिम है।” वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार शाम इस चुनौती को रेखांकित करते हुए कहा कि कम ब्याज दरों के समय हाई यील्ड सस्ती नहीं हैं।

नोमुरा होल्डिंग्स के मुताबिक, आरबीआई के विकल्पों में सेकंडरी मार्केट में खरीदारी के जरिए हस्तक्षेप करना या वीकली बांड ऑक्शन में बोलियों को रिजेक्ट करना शामिल है।

First Published : September 10, 2025 | 12:14 PM IST