वित्त-बीमा

भारत में बॉन्ड निवेश के लिए सही समय, RBI की पॉलिसी और डॉलर में कमजोरी से मिल रहा सपोर्ट

बंधन एएमसी में फिक्स्ड इनकम के प्रमुख सुयश चौधरी से बातचीत के मुख्य अंश:

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अभिषेक कुमार   
Last Updated- May 02, 2025 | 7:02 AM IST

बंधन एएमसी में फिक्स्ड इनकम के प्रमुख सुयश चौधरी ने अभिषेक कुमार को ईमेल इंटरव्यू में बताया कि टैरिफ प्रभाव की वजह से पैदा हुए हालात अमेरिका के लिए अनिश्चित हैं, लेकिन भारत के लिए यह थोड़े स्पष्ट हैं क्योंकि यहां मुद्रास्फीति नियंत्रण में है। चौधरी का कहना है कि मजबूत आर्थिक विकास और राजकोषीय अनुशासन की उम्मीदों के कारण भारत के सरकारी बॉन्ड आकर्षक हो जा रहे हैं। 

भारत का ऋण बाजार वैश्विक व्यापारिक दबाव से काफी हद तक बचा हुआ है। इसकी क्या वजह हैं और क्या यह स्थिति बनी रह सकती है?

डॉलर के कमजोर होने से तथाकथित ‘अमेरिकी अपवाद’ थीम कुछ हद तक कमजोर होती दिखती है। इस थीम ने पिछले कुछ वर्षों में डॉलर परिसंपत्तियों के लिए अनुपात से ज्यादा आवंटन आकर्षित किया था। थीम का कमजोर होना भारत और अन्य उभरते बाजारों के लिए अच्छी खबर है क्योंकि इससे स्थानीय मुद्राओं पर दबाव घटा है। इसकी वजह से भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पास अब मौद्रिक नीति में अधिक स्वायत्तता है। टैरिफ के असर के कारण वृद्धि और मुद्रास्फीति का संतुलन अमेरिका के लिए कुछ परेशानी वाला है, लेकिन भारत के लिए यह अधिक बेहतर है।

आप वृद्धि-मुद्रास्फीति परिदृश्य को किस तरह से देख रहे हैं? क्या आपको दर कटौती जारी रहने की उम्मीद है?

खाद्य कीमतों पर मौसम संबंधित किसी तरह के दबाव को छोड़ दें तो भारत का मुद्रास्फीति परिदृश्य काफी हद तक नरम दिख रहा है। आरबीआई के पूर्वानुमान में यह भी कहा गया है कि आने वाले वर्ष में मुद्रास्फीति लक्ष्य स्तर के आसपास ही रहेगी। आर्थिक वृद्धि मजबूत बनी रहने की संभावना है, लेकिन वैश्विक कारकों की वजह से अल्पावधि में कुछ चक्रीय बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।

उम्मीद है कि आरबीआई के पास इस चक्रीय गिरावट का जवाब देने के लिए पर्याप्त गुंजाइश होगी। केंद्रीय बैंक दर कटौतियों के अनुकूल समावेशन के लिए तरलता का सक्रियता के साथ प्रबंधन कर रहा है।

अनिश्चितताएं गहराने के बावजूद आप दीर्घावधि बॉन्डों पर उत्साहित बने हुए हैं। क्या जोखिम उठाना सही है?

डॉलर के कमजोर होने और स्थानीय मौद्रिक नीति की गुंजाइश को देखते हुए बॉन्डों के लिए संभावना सकारात्मक है। हम उम्मीद करते हैं कि सरकार सतर्क राजकोषीय रुख बरकरार रखेगी, भले ही कर राजस्व में कमी आने पर घाटे में मामूली वृद्धि हो जाए। इस तरह के राजकोषीय अनुशासन से भारतीय बॉन्डों का आकर्षण बढ़ेगा।

कॉरपोरेट बॉन्डों और स्टेट डेवलपमेंट ऋणों (एसडीएल) पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?

हमारे नजरिए से कॉरपोरेट बॉन्डों की चाल अपनी चमक गंवा चुकी है और अब यह सामान्य स्थिति में है। इससे मिड-ड्यूरेशन सेगमेंटों (पांच साल तक) में आवंटन बढ़ाने में मदद मिली है। एसडीएल भी छह-सात साल की मध्यवर्ती अवधि तक अच्छे लगते हैं। लेकिन लंबी अवधि के लिए हम अभी भी सरकारी बॉन्ड कर्व को प्राथमिकता देते हैं क्योंकि हमें मध्यावधि में मांग-आपूर्ति परिदृश्य ज्यादा अनुकूल लग रहा है।

आप दो-तीन साल की अवधि के लिहाज से निवेशकों को कौन सी योजनाओं का सुझाव देना चाहेंगे?

निवेशकों के लिए पहली प्राथमिकता पुनर्निवेश जोखिम कम करना होना चाहिए। इस तरह का बदलाव जोखिम उठाने की क्षमता और निवेश अवधि के अनुरूप उचित अवधि के चयन के माध्यम से किया जा सकता है। मुख्य तौर पर, मध्यावधि के फंड (उदाहरण के लिए तीन-छह साल की परिपक्वता) पर्याप्त हो सकते हैं।  

First Published : May 1, 2025 | 10:40 PM IST