मंदी में मोटा लाभांश देने वाले शेयरों में निवेश करना ही समझदारी है। इसलिए हमने आपके लिए बीएसई में सूचीबध्द सौ करोड़ रुपये की पूंजी और पांच फीसदी से ज्यादा का लाभांश देने वाली सभी कंपनियों के आंकड़ों का विश्लेषण किया।
राम प्रसाद साहू, जितेंद्र कुमार गुप्ता और विशाल छाबड़िया पेश कर रहे हैं वे कंपनियां, जिनमें निवेश करना फायदेमंद साबित हो सकता है।
वक्त काफी बुरा चल रहा है। शेयर बाजारों में तेज गिरावट की वजह से आज शेयरों की कीमत बुरी तरह से गिर चुकी है। इसी वजह से आज की तारीख में निवेश करने के लिए किसी शेयर को चुनना भी कम मुश्किल काम नहीं रह गया है।
क्या पता कब किस कंपनी के दाम धड़ाम से गिर पड़ें? इसी वजह से तो आज बाजारों में इतनी उठा-पटक मची हुई है और इसी वजह से बाजार पर से लोगों का भरोसा उठ चुका है। निवेशक डरे हुए हैं और वे अब कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते हैं। साथ ही, अब ब्याज दरों में भी गिरावट आने लगी है।
अब बैंक भी फिक्स्ड डिपोजिट्स पर 3.5 से लेकर आठ फीसदी तक ब्याज देने लगे हैं। मतलब यह हुआ कि अब सुरक्षित समझे जाने वाले निवेश विकल्पों से भी कमाई कम होने लगी है। इस माहौल में मोटा लाभांश देने वाले शेयरों में निवेश करने की रणनीति समझदारी भरी सोच लग रही है।
इसलिए हमने आपके लिए बीएसई में सूचीबध्द सौ करोड़ रुपये की पूंजी और पांच फीसदी या इससे ज्यादा का लाभांश देने वाली सभी कंपनियों के आंकड़ों का विश्लेषण किया।
साथ ही, कंपनियों को चुनते वक्त हमने उनके विकास की उम्मीद, कर्जों, कमाई के रिकॉर्ड और नगदी के प्रवाह को भी ध्यान में रखा।
इस तरह हमने आपके लिए चुने हैं वे नौ कंपनियां, जिनमें निवेश करना आपके लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। ये सारी कसौटियां न सिर्फ भविष्य में मोटे लाभांश की गारंटी देती हैं, बल्कि आगे चलकर ये मोटे मुनाफे को भी सुनिश्चित करते हैं।
इन नौ कंपनियों के अलावा 15 ऐसी दूसरी कंपनियां भी हैं, जो मोटा लाभांश दे रही हैं (देखें टेबल)। वैसे, हमारा आज का फोकस है इन नौ कंपनियों पर :
दीपक फर्टिलाइजर्स
दीपक फर्टिलाइजर्स नाइट्रोजन आधारित रसायनों के कारोबार में जानी-पहचानी कंपनी है। कंपनी की 71 फीसदी कमाई इन्हीं रसायनों से आती है। फार्मा, कीटनाशकों, कपड़ों, उवर्रक, रबड़ और पेट्रोकेमिकल्स उद्योगों में आई तेजी से काफी ज्यादा फायदा इस कंपनी को मिला है।
चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में कंपनी के शुध्द लाभ में नौ फीसदी की गिरावट आई, लेकिन इसकी बिक्री पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 34 फीसदी बढ़ी है।
वैसे, उसका मुनाफा कम होने की असल वजह यह थी ऑपरेटिंग मार्जिन्स का कम होना, ब्याज दरों में 182 फीसदी का मोटा-ताजा इजाफा और अमोनियम नाइट्रेट के प्लांट का 59 दिनों तक बंद रहना।
हालांकि, आज भी मांग कम ही है, लेकिन रसायनों की कीमतों में 20-40 फीसदी की कटौती की वजह से इसकी लागत कम होने की उम्मीद है।
कंपनी इस तिमाही में तरल नाइट्रिक एसिड (डीएनए) और अमोनियम नाइट्रेट की उत्पादन क्षमता में 50 और 45 फीसदी का इजाफा कर रही है।
साथ ही, रिलायंस इंडस्ट्रीज के केजी बेसिन से गैस की उपलब्धता भी मैथोनॉल और उवर्रक के उत्पादन के लिए वरदान का काम करेगी।
बढ़ती क्षमता, प्लांट का फिर शुरू होना, खपत में इजाफा और रियल एस्टेट तथा ऊर्जा सेक्टर से कमाई दुबारा शुरू होने की वजह से कंपनी के लिए राहत के आसार नजर आ रहे है। उम्मीद है कि इनकी वजह से कंपनी का वित्तीय विकास तेजी से होगा। इस वक्त इस कंपनी के शेयर 53.40 रुपये के स्तर पर बिक रहे हैं।
गेटवे डिस्ट्रीपार्क्स
नवंबर महीने में मुल्क से होने वाला निर्यात 9.9 फीसदी गिरा है, जबकि आयात में सिर्फ छह फीसदी का इजाफा हुआ है। ऐसे में गेटवे डिस्ट्रीपार्क्स जैसी कंपनियों पर असर होना तो लाजमी ही है, जिनकी 70 फीसदी कमाई कंटेनरों को एक जगह से दूसरी जगह लाने-ले जाने से आता है।
चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में गेटवे ने मुनाफे में 10 फीसदी की गिरावट दर्ज की है, जबकि इसकी कमाई में 30 फीसदी का इजाफा दर्ज हुआ है। कंपनी के कमाई में इजाफे की असल वजह रही किराए से हुई ऊंचाई आय।
हालांकि, विदेशी व्यापार की गिरती दर चिंता की कारण तो है ही, लेकिन यह कंपनी मुल्क की सबसे बड़ी कंटेनर फ्रेट कंपनी है। साथ ही, यह मुल्क के हर बड़े बंदरगाह पर काम कर रही है। इस वजह से आगे चल कर कभी भी आयात-निर्यात के धंधे में तेजी आई, तो सबसे ज्यादा फायदा इसी कंपनी को होगा।
अब वह रेलवे कंटेनर के कारोबार में भी उतर चुकी हैं। इस क्षेत्र में कंपनी की कमाई में चालू वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में 226 फीसदी का जबरदस्त इजाफा दर्ज किया गया है।
इस तिमाही में कंपनी को इस कारोबार से 43.8 करोड़ रुपये की कमाई हुई। साथ ही, इस दौरान उसने रेलवे कारोबार में अपनी क्षमता में सात रेक का इजाफा किया है। आज उसके पास कुल मिलाकर 14 रेक हैं।
कंपनी अब अपने रेक क्षमता में इजाफा करने की कोशिश में लगी हुई है। साथ ही, वह अपने कोल्ड चेन कारोबार में भी निवेश कर रही है। उसकी योजना 22 नए रेक हासिल करने और कोल्ड चेन क्षमता को 10 हजार पैलेट्स से बढ़ाकर 25 हजार पैलेट्स करने की है।
इसका कोल्ड चेन कारोबार में तेजी पकड़ रहा है और इसकी कुल कमाई उसका हिस्सा अब नौ फीसदी का हो चुका है। गेटवे में लंबी अवधि का निवेश करना एक समझदारी भरा कदम होगा। वजह है, इसका कारोबार का क्षेत्र। साथ ही, इसकी कमाई भी बढ़ती ही जा रही है और अहम जगहों पर इसकी मशीनरी भी है।
इसलिए छोटे समय के लिए कुछ समस्याएं हो सकती हैं, लेकिन लंबी अवधि के हिसाब से देखें तो इस कंपनी के शेयरों में निवेश करना एक अच्छा कदम होगा।
इसके शेयर का मौजूदा कारोबार कंपनी की चालू वित्त वर्ष की अनुमानित आय के 7.5 गुना और अगले वित्त वर्ष की अनुमानित आय के 8.5 गुना पर किया जा रहा है।
एलआईसी हॉउसिंग फाइनैंस
यह कंपनी घरों के साथ-साथ व्यवासयिक निर्माण कार्यों के लिए भी कर्जे देती है। वित्त वर्ष 2007 और 2008 में एलआईसी हॉउसिंग फाइनैंस ने काफी तेजी से विकास किया। इस दौरान कंपनी की कुल कमाई और शुध्द लाभ में औसतन 30 फीसदी और 37.5 फीसदी का इजाफा हुआ है।
चालू वित्त वर्ष के नौ महीनों में भी कंपनी की कमाई और मुनाफे में 36 और 39 फीसदी का इजाफा हुआ है। बड़ी बात यह है कि कंपनी की नेट इंटररेस्ट मार्जिन भी काफी अच्छा खासा है। पिछले छह तिमाही से यह 2.6 फीसदी से लेकर 3.3 फीसदी तक का रहा है।
साथ ही, इसी की परिसंपत्तियों की हालात भी अच्छी-खासी है। वित्त वर्ष 2008 की तीसरी तिमाही में इसकी गैर निष्पादित कर्जों की तादाद 1.6 फीसदी से कम होकर इस वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में 0.7 रह चुकी है। वैसे, कंपनी की मुनाफे की असल वजह अंदरुनी सुधार की प्रक्रिया है।
वैसे, विश्लेषकों के मुताबिक कंपनी के सामने मुश्किलों की भी कुछ बातें हैं। कंपनी के डेवलपर्स को इस साल की दूसरी और तीसरी तिमाहियों में काफी ज्यादा कर्ज दिए हैं। वैसे, इस सेगमेंट से होम लोन सेगमेंट की तुलना में ज्यादा कमाई होती है।
लेकिन आज डेवलपर्स को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है और यही वजह है चिंता की। वैसे, इनकी तादाद कुल कर्जों में सिर्फ 10 फीसदी की ही है। इस कंपनी को लेकर उम्मीद है कि इसका मुनाफा अगले वित्त वर्ष और वित्त वर्ष 2011 में 15 फीसदी की रफ्तार से बढ़ेगा।
ऐसे में उम्मीद यही है कि वह मोटा लाभांश देगा। इस वक्त इसके शेयर 206 रुपये के स्तर पर हैं।
ऑप्टो सर्किट्स
उम्मीद है कि कंपनी के मुनाफे में अगले चार सालों में 30 फीसदी का इजाफा होगा। इस उम्मीद के पीछे वजह है मेडिकल इलेक्ट्रोनिक्स डिवाइस सेगमेंट के लिए स्थिर विकास की मजबूत राह, अधिग्रहण और विलय की रणनीति और एक मजबूत वितरण प्रणाली।
कंपनी के उत्पादों के लिए इस वक्त 12 अरब डॉलर का बाजार है। कंपनी को अब भी अमेरिकी स्वास्थ्य विभाग के प्रमाण पत्र का इंतजार है। इसकी मदद से वह अपनी मशीनों को अमेरिका में बेच पाएगी।
इन उत्पादों की वैश्विक मांग का आधा हिस्सा तो अमेरिका और जापान से ही आता है। इसकी वजह से कंपनी के बाजारों का साइज बढ़कर पांच अरब डॉलर का हो जाएगा। इन दो बाजारों के अलावा ऑप्टो के पास सीई सर्टिफिकेशन है।
इस प्रमाण पत्र को हासिल करने से कंपनी को 34 मुल्कों में अपने उत्पादों को बेचने का मौका मिल गया है। साथ ही, कंपनी अब नए और सस्ते मुल्कों में भी अपने पैरों को फैला रही है। इससे कंपनी के मुनाफे में इजाफा होगा और लागत में भी कमी आएगी।
न के बराबर कर्ज और एक मंदी से प्रूफ सेक्टर में काम करने की वजह से कंपनी अपने कारोबार से 70 करोड़ रुपये उगाह पा रही है। उम्मीद है कि इसकी कमाई में भी सालाना 30 फीसदी का विकास होगा। इस वक्त कंपनी के शेयर अगले वित्त वर्ष की अनुमानित आय से छह गुना ज्यादा कीमत पर बिक रहे हैं।
फाइजर इंडिया
लिस्ट्रिन और बेनाड्रिल जैसे बड़े ब्रांड्स को जॉनसन एंड जॉनसन को बेचने के बावजूद कंपनी के पास आज भी कोरेक्स, जेलूसिल और वॉटरबेरिज कंपाउंड जैसे बड़े नाम हैं। साथ ही, कंपनी ने चैम्पिक्स और साइक्लोकप्रॉन को भी पिछले साल लॉन्च किया था।
इसकी वजह से कंपनी के मुनाफे में वित्त वर्ष 2008 (नवंबर तक) 20 फीसदी का इजाफा होने की उम्मीद की जा रही है। इसके दोनों स्तंभों, पशुओं की दवाओं और फार्मा सेक्टर में अगस्त, 2008 तक के नौ महीनों के दौरान 18 फीसदी और 11 फीसदी का विकास दर्ज किया गया है।
बिक्री में तेज इजाफा, ऑउटसोर्सिंग और लागत कम करने की कोशिशों की वजह से उम्मीद है कि अगले दो सालों में कंपनी के मुनाफे में इजाफे की दर भी मौजूदा 23 फीसदी से बढ़कर 28 फीसदी हो जाएगी।
वैसे, कंपनी के लिए खतरे की बात यह है कि इसकी 100 फीसदी स्वामित्व वाली सहयोगी कंपनी ने पिछले साल तक किसी उत्पाद को बाजार में उतारने का ऐलान नहीं किया था। कंपनी के शेयर इस वक्त 52 रुपये पर बिक रहे हैं।
सविता केमिकल्स
कच्चे तेल की कीमतों में आई तेज गिरावट के बावजूद भी खास तरह के पेट्रोलियम उत्पाद (ट्रांसफार्मर ऑयल सहित) को बनाने वाली कंपनी सविता केमिकल्स के परिचालन मुनाफे में तेजी अगले वित्त वर्ष की पहली तिमाही में नजर आ सकती है।
बेस ऑयल की कीमतों में आज 63 फीसदी जबरदस्त गिरावट देखने को मिली है। अगस्त, 2008 में तो इसकी कीमत 530 डॉलर प्रति टन के स्तर तक पहुंच चुकी थी। लेकिन जमा माल के आज भी मौजूद होने की वजह से इसका परिचालन मुनाफा 7-7.5 फीसदी के स्तर पर रहा है।
वैसे, आने वाला वक्त काफी चुनौतियों से भरा होगा क्योंकि आज भी कई बिजली परियोजनाओं को पूरा होने का इंतजार है। फिर भी उम्मीद है कि अगले वित्त वर्ष में 1500 करोड़ रुपये के ट्रांसफार्मर ऑयल का बाजार 15-20 फीसदी की रफ्तार से आगे बढ़ेगा ही।
साथ ही, कंपनी को उम्मीद है कि ट्रांसफॉर्मर ऑयल और लिक्विड पाराफीन के निर्यात की मदद सं कंपनी वह अपनी कमाई को 18 फीसदी बढ़ाकर 1,200 करोड़ रुपये तक ले जाएगी।
कंपनी इससे भी तेज रफ्तार से आगे बढ़ती, लेकिन मंदी की वजह से इसके पश्चिमी एशियाई मुल्कों में मांग कम हो गई है।
कंपनी ने अपनी क्षमता में इजाफा करने और पवन ऊर्जा के क्षेत्र में उतरने के लिए 65 करोड़ रुपये लगाए हैं। कंपनी लाभांश भी मोटा-ताजा देती है।
यह पिछले चार साल से 100 फीसदी लाभांश देती आई है। विकास की अच्छी राह को देखते हुए लग तो यही रहा है कि यह आगे भी इस परंपरा को कायम रखेगी।
थर्मेक्स
औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के अक्टूबर के आंकड़ों औद्योगिक जगत में मंदी की चेतावनी दे रहे हैं। इस चेतावनी के इंजीनियरिंग सेक्टर की कंपनियों (जैसे थर्मेक्स) पर पड़ने वाले असर को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
इसी वजह से तो इस कंपनी के शेयरों की कीमत में आज की तारीख में अपने उच्चतम स्तर से 80 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। जनवरी, 2008 में इसके एक शेयर की कीमत 925 रुपये हुआ करती थी। यह मौजूदा आर्थिक हालत को भी दिखलाता है।
इसकी वजह हो सकती है इस कंपनी का औद्योगिक स्तर से जुड़ा होना। थर्मेक्स की 70 फीसदी कमाई इसके हीटिंग, कूलिंग, वेस्ट हीट रिकवरी और फैक्टरियों के लिए जेनरेटरों के निर्माण से आती है। बाकी की 30 फीसदी कमाई वॉटर ट्रीटमेंट एंड रिसाइकिलिंग, वेस्ट मैनेजमेंट और केमिकल्स होती है।
वैसे, इस अंधेरी रात में उम्मीद की कई किरणें नजर आ रही हैं। औद्योगिक विकास की दर में नवबंर में 2.38 फीसदी की थोड़ी-बहुत ही सही, लेकिन इजाफा तो नजर आया है।
साथ ही, आज जिंसों की कीमतों और ब्याज दरों गिरावट, कर्ज की बढ़ती उपलब्धता और सरकारी मदद की वजह से कुछ राहत मिली है।
साथ ही, उसका ऑर्डर बुक भी 4,500 करोड़ रुपये का हो चुका है। यह कंपनी समय पर अच्छा लाभांश भी देती है।
पेपर प्रोडक्ट्स
यह कंपनी हिस्सा है पैकेजिंग इंडस्ट्री के बड़े नामों में से एक फिनलैंड की हुतामकी ओज कंपनी का। यह मुल्क में पैकेजिंग की सारी सुविधाएं मुहैया करवाती है। इसकी कमाई का 70 फीसदी हिस्सा एफएमसीजी सेक्टर से आता है।
साथ ही, सीड्स, केमिकल्स, फार्मा सेक्टर और इलेक्ट्रोनिक्स सेक्टर भी इसकी सेवाओं का इस्तेमाल करती है। इसके ग्राहकों की सूची में यूनिलीवर, नैस्ले, ब्रिटानिया, कोका-कोला, डाबर और पीएंडजी जैसे बड़े नाम हैं।
वैसे आपको बता दें कि पिछले कुछ समय में एफएमसीजी सेक्टर ने वाकई काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। इस कंपनी ने सितंबर, 2008 में खत्म हुए नौ महीनों में बिक्री में 22 फीसदी का इजाफा दर्ज किया है। हालांकि, कंपनी को इस दौरान विनिमय दरों की वजह से 10.5 करोड़ रुपये का घाटा भी झेलना पड़ा।
इस तरह कंपनी का शुध्द मुनाफा 19.7 फीसदी घटकर 16.6 करोड़ रुपये रह गया। वैसे, विश्लेषकों को उम्मीद है कि आने वाले वक्त में इसका मुनाफा 15 फीसदी तक बढ़ सकता है।
वरुण शिपिंग
ऊर्जा का परिवहन करने वाली कंपनी वरुण शिपिंग अब कच्चे तेल और एलपीजी के परिवहन पर ज्यादा जोर दे रही है। इसी लिए तो उसने छठा एंकर हैंडलिंग टोइंग एंड सप्लाई वेसल (एएचटीएस) को हाल ही में खरीदा है।
केजी बेसिन और नाइजरिया, ब्राजील और मेक्सिको के समुद्रों में कच्चे तेल और गैस के खोज पर ज्यादा जोर की वजह से इन जहाजों की मांग भी बढ़ चुकी है। इसलिए इनकी वजह से कंपनी को मोटा मुनाफा भी हो सकता है।
पिछले दो सालों में इसका कंपनी की कमाई में हिस्सा दो फीसदी से बढ़कर अब 25 फीसदी हो चुका है। कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट के बावजूद कंपनी को उम्मीद है कि यह सेगमेंट उसे मोटी कमाई देगा।