चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में (2021-22 या वित्त वर्ष 22) निवेश पिछले वित्त वर्ष 2020-21 की समान अवधि की तुलना में ज्यादा रहा है। वहीं अगर हम महामारी के पहले के वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही या या वित्त वर्ष 21 की चौथी तिमाही से तुलना करें तो निवेश कम हुआ है।
वित्त मंत्रालय का मानना है कि यह निवेश निजी क्षेत्र द्वारा संचालित है, जबकि ज्यादातर स्वतंत्र अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों की वजह से बढ़ा है।
एक साल पहले की समान अवधि के 46.6 प्रतिशत के कम आधार की तुलना में वित्त वर्ष 2021-22 की पहली तिमाही में निवेश 55 प्रतिशत बढ़ा है। सही तस्वीर क्रमिक वृद्धि से मिल सकती है, जो 24 प्रतिशत कम थी। इसकी तुलना में वित्त वर्ष 20 की पहली तिमाही में वृद्धि दर 17 प्रतिशत ज्यादा थी।
अगर जीडीपी के प्रतिशत के रूप में निवेश की स्थिति देखें तो यही धारणा नजर आती है। सकल नियत पूंजी सृजन (जीएफसीए), जिससे निवेश का पता चलता है, 2021-22 की पहली तिमाही में जीडीपी का 27 प्रतिशत रहा, जो तीन तिमाही का निचला स्तर है।
मुख्य आर्थिक सलाहकार कृष्णमूर्ति सुब्रमण्यन ने कहा कि पिछली तिमाही में जीडीपी के प्रतिशत के रूप में जीएपसीएफ 26 तिमाही या साढ़े छह साल के उच्च स्तर पर था। उन्होंने कहा कि कोविड की दूसरी लहर के कारण निवेश गतिविधियां ठहर जाने के बावजूद वित्त वर्ष 22 की पहली तिमाही में निवेश पिछले साल की तुलना में 55 प्रतिशत बढ़ा है। सुब्रमण्यन ने कहा, ‘मुझे लगता है कि यह निजी क्षेत्र के व्यय द्वारा संचालित है, क्योंकि सरकार का पूंजीगत व्यय इस तिमाही में पिछले साल की तुलना में करीब 15 प्रतिशत बढ़ा है।’
निजी पूंजीगत व्यय में तेजी को पिछले 2-3 सप्ताह में हुई कॉर्पोरेट घोषणाओं से भी जोड़ा जा सकता है। आदित्य बिड़ला समूह की हिंडालको ने 2 अरब डॉलर निवेश की घोषणा की है। सुब्रमण्यन ने कहा कि निजी कारोबारियों ने करीब 1.75 लाख करोड़ डॉलर निवेश की घोषणा की है। उन्होंने कहा, ‘निजी क्षेत्र ने पिछले 5 साल में सबसे ज्यादा मुनाफा कमाया है। इसमें गिरावट आई है, जिससे पता चलता है कि निवेश के लिए अनुकूल स्थिति है।’
भारतीय स्टेट बैंक के समूह मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष ने कहा कि 2020-21 में 11 लाख करोड़ रुपये की नई घोषणाएं हुईं, जबकि वित्त वर्ष 20 में 10.8 लाख करोड़ रुपये की हुई थीं, वहीं वित्त वर्ष 22 से आशाएं नजर आ रही हैं क्योंकि अब तक शुरुआती 5 महीनों में 5.6 लाख करोड़ रुपये की निवेश घोषणाएं हो चुकी हैं।
घोष ने प्रोजेक्ट टुडे की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि इसमें से करीब 70 प्रतिशत घोषणाएं निजी क्षेत्र से हुई हैं, जबकि 30 प्रतिशत सरकारी क्षेत्र से।
इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च के मुख्य अर्थशास्त्री देवेंद्र पंत ने कहा कि केंद्र व 12 राज्स सरकारों का पूंजीगत व्यय वित्त वर्ष 21 की पहली तिमाही और वित्त वर्ष 22 की पहली तिमाही के बीच 2 प्रतिशत अंक गिरा है। पंत ने कहा, ‘इस समय मांग कम है और क्षमता ज्यादा। ऐसे में कॉर्पोरेट सेक्टर का निवेश कुछ क्षेत्रों तक सीमित है। सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयों और घरेलू क्षेत्र के पूंजीगत व्यय में बढ़ोतरी हुई है।’
इक्रा में मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर नेकहा कि क्षमता का उपयोग निचले स्तर पर है और कोविड-19 की दूसरी लहर के कारण कारोबारी धारणा गिरी है, ऐसे में केंद्र व राज्यों के पूंजीगत व्यय ने जीएफसीएफ को बल दिया है। क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डीके जोशी ने कहा कि निवेश में पिछले साल की तुलना में वृद्धि आधार से प्रभावित होता है। जोशी ने कहा, ‘सार्वजनिक निवेश पर जोर देने के बावजूद कुल मिलाकर निवेश कमजोर है। कम क्षमता उपयोग से निजी निवेश नहीं बढ़ा है। यह घरेलू मांग कम होने का संकेत है।’
केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि इसके लिए वित्त वर्ष 22 की पहली तिमाही और वित्त वर्ष 20 की पहली तिमाही में तुलना करने की जरूरत है, क्योंकि वित्त वर्ष 21 की पहली तिमाही में निवेश नहीं हुआ था।
सबनवीस ने कहा, ‘इस हिसाब से वृद्धि कम है और प्रभावी नहीं है। जो निवेश हुआ है, उसका श्रेय सरकार को दिया जा सकता है। निजी क्षेत्र नीचे है क्योंकि कर्ज जारी किया जाना और कर्ज में वृद्धि कमजोर है।’