वित्त-बीमा

Interview: ‘2047 तक सबके लिए बीमा’ का लक्ष्य पूरा करना संभव: कल्पना अजयन

जनधन योजना और जन सुरक्षा जैसी सरकार की योजनाओं से वित्तीय सेवाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। लेकिन सरकारी योजनाओं का लाभ महिला आबादी के बड़े तबके तक पहुंचना अभी बाकी है।

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शिखा चतुर्वेदी   
Last Updated- December 30, 2024 | 12:42 AM IST

जनधन योजना और जन सुरक्षा जैसी सरकार की योजनाओं से वित्तीय सेवाओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है। लेकिन सरकारी योजनाओं का लाभ महिला आबादी के बड़े तबके तक पहुंचना अभी बाकी है। महिलाओं के आर्थिक सशक्तीकरण को समर्पित वैश्विक गैर लाभकारी संगठन, विमेन्स वर्ल्ड बैंकिंग (डब्ल्यूडब्ल्यूबी) की हाल की रिपोर्ट में इस पर मिली-जुली राय आई है। डब्ल्यूडब्ल्यूबी की दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय प्रमुख कल्पना अजयन ने समावेशन के शुरुआती स्तर पर बचत खातों की भूमिका, महिला एजेंटों का महत्त्व और बीमा की स्वीकार्यता को लेकर चुनौतियों जैसे मसलों पर शिखा चतुर्वेदी से बात की। प्रमुख अंश:

डब्ल्यूडब्ल्यूबी के अध्ययन के मुताबिक जन सुरक्षा माइक्रो इंश्योरेंस पॉलिसियां ग्रामीण इलाकों में खासकर महिलाओं के बीच सफल रही हैं। इसकी क्या वजह है?

वित्तीय समावेशन की दिशा में पहला शुरुआती बिंदु बचत खाता खुलना है। इससे आपके डिजिटल वित्तीय पदचिह्न बनाने में मदद मिलती है और आप क्रेडिट कार्ड जैसे अन्य उत्पादों के पात्र बनते हैं। अन्य लचीला उत्पाद बीमा है। ऐसे में हमें सबसे बड़ा यह मिथक तोड़ना था कि महिलाएं जोखिम लेने से बचती हैं। हकीकत में वे ऐसा नहीं करती। दरअसल, वे जोखिम के प्रति सजग होती हैं क्योंकि उन्हें परिवार का देखभाल और पालन पोषण करना होता है। ऐसे में, खासकर कोविड के बाद, यह देखना अहम था कि किस तरह की पॉलिसियों से उनकी सुरक्षा हो सकती है, उनकी आजीविका और आमदनी की रक्षा हो सकती है।

इसलिए जब महिलाओं की बात आई तो हमने तेजी से इसे अपनाया। महिला एजेंट उनसे बात कर रही थीं, जिन पर वे भरोसा कर सकती थीं तो इन पॉलिसियों में उनका नामांकन आसान था। जब हमने इन योजनाओं को बैंकों के साथ मिलकर लागू करना शुरू किया तो हमने पाया कि इसकी स्वीकार्यता दर 3 से 5 गुना बढ़ गई। स्वीकार्यता इसलिए हुई कि पॉलिसियां उचित, वहन करने योग्य और समझने में आसान थीं। बीमा बेहद जटिल है। करीब 15 साल से बीमा व्यवसाय में होने के कारण, मैं कह सकती हूं कि यह सबसे कठिन उत्पादों में से एक है। आप इसे ग्राहकों के लिए समझना कैसे आसान बनाते हैं? ये सभी वजहें महत्त्वपूर्ण हैं, जिन्होंने बीमा की स्वीकार्यता को संचालित किया।

रिपोर्ट के मुताबिक स्वीकार्यता दर अधिक होने के बावजूद सिर्फ 2 फीसदी महिलाओं ने लाभ का दावा किया। कम उपयोग दर की क्या वजह हो सकती है?

दावे का अनुपात कम है और यह पॉलिसियों की श्रेणियों पर निर्भर करता है। मैं कहना चाहती हूं कि यह कुल मिलाकर बीमा कारोबार का ही प्रतिबिंब है, न कि सिर्फ इस सेग्मेंट का। एक क्लेम रेशियो से जुड़ा मसला है और दूसरा अस्वीकृति अनुपात से जुड़ा मसला है। कुल मिलाकर यह ऐसा मसला है, जिसके बारे में शिक्षित लोग भी नहीं जानते हैं।

ऐसे में निम्न मध्यम आय वर्ग के लोगों और महिलाओं की तो बात ही छोड़ दीजिए। जागरूकता और प्रक्रिया सरल बनाना अहम है। निश्चित रूप से तीसरा मसला निपटान की प्रक्रिया का है। दावा करने के लिए ढेरों दस्तावेज की जरूरत होती है। इस तरह की चीजें बीमा दावों को कठिन बनाती हैं।

आबादी के निचले स्तर और महिलाओं तक बीमा की पहुंच कैसे बढ़ेगी?

देश में बीमा की पहुंच बढ़ाने के लिए अभी लंबा रास्ता तय करना है। जब आप पहुंच की बात करते हैं, यह बात भी आती है कि आबादी के किस तबके तक पहुंच का मसला है। अगर आप पिरामिड के सबसे निचले हिस्से में पैठ देखें, तो यह दरअसल काफी अच्छा है। इसे समग्र रूप में देखने के बजाय आबादी के विभिन्न हिस्सों में पहुंच के हिसाब से देखने की जरूरत है। इसमें से मध्य का हिस्सा गायब है, जिसकी संख्या अनुमानित रूप से 50 करोड़ या इससे अधिक है।

बीमा जटिल उत्पाद हो सकता है, खासकर कम वित्तीय साक्षरता वाले तबके के लिए। ऐसे में महिलाएं खासकर जन सुरक्षा जैसी पॉलिसियां कैसे अपना रही हैं? क्या वे प्रीमियम का भुगतान करने को इच्छुक हैं?

यह नामांकन का मसला नहीं है, यह सततता का मसला है। आप कैसे सुनिश्चित करेंगे कि मेरा बीमा कवर जारी रहे? उत्पाद और पॉलिसी की सफलता तब है, जब आप हर साल प्रीमियम भुगतान जारी रखते हैं। इस मामले में सरकार ने थोड़ी चालाकी दिखाई है। अगर आपके खाते में पैसे रहते हैं तो स्वतः ही प्रीमियम का भुगतान हो जाता है।

असंगठित क्षेत्र और गिग अर्थव्यवस्था की महिलाओं को कैसे औपचारिक वित्तीय और बीमा व्यवस्था से जोड़ा जा सकेगा?

महिलाओं की बैंकिंग के मामले में हम सिर्फ वित्तीय साक्षरता में ही विश्वास नहीं करते, बल्कि हम वास्तव में डिजिटल वित्तीय क्षमता में भरोसा करते हैं। यह सिर्फ पहुंच का नहीं, बल्कि एजेंसी का मसला है। ऐसे में घोर रूढ़िवादी होने पर वह किसी स्थिति में मंच पर नहीं आएंगी। वे डरी हुई हैं। यह समझना जरूरी है कि वे एकसमान समूह नहीं हैं। आपको हरेक महिला के लिए अलग दृष्टिकोण और समाधान अपनाने की जरूरत है।

मौजूदा चुनौतियों को देखते हुए क्या आपको लगता है कि ‘2047 तक सबके लिए बीमा’ का लक्ष्य पूरा हो पाएगा?

मेरा मानना है कि यह असंभव लक्ष्य नहीं है। क्या हमने सोचा था कि 7 साल में 55,00,00,000 खाते खुल सकते हैं। इसका जवाब है, नहीं। लेकिन हमने यह हासिल किया।

First Published : December 30, 2024 | 12:42 AM IST