जब बाजार घनघोर वित्तीय संकट से घिरा हो तो निवेश का निर्णय करना सचमुच एक कठिन काम होता है।
लेकिन वे युवा निवेशक जो लंबी अवधि के लिए अपना पोर्टफोलियो बनाना चाहते हैं, उनके लिए इससे बेहतर कोई दूसरा समय हो ही नहीं सकता। भारतीय शेयर बाजार में आई भारी गिरावट के बाद बीमा कंपनियां अब गारंटी देने वाले रिटर्न प्रॉडक्ट लांच कर रही हैं।
एलआईसी ने जीवन आस्था व रेलिगेयर एगोन ने गारंटी युक्त रिटर्न प्लान शुरू किए हैं। ये दोनों एक जैसी योजनाएं हैं। हालांकि ये योजनाएं नई तो नहीं हैं,
लेकिन इन्हें बीमा क्षेत्र की बदलती प्राथमिकताओं का संकेत माना जा रहा है। अब तक ये कंपनियां केवल बाजार पर आधारित यूलिप प्लान ही प्रमोट करती आ रही थीं।
यह बात बिल्कुल सही है कि इस तरह की योजनाएं निवेशक बाजार के लिए नए नाम नहीं हैं। साधारण शब्दों में कहें तो ये योजनाएं निवेशक को एक निश्चित समयावधि में एकमुश्त रिटर्न देती हैं।
ऐसे समय में जब अन्य सभी निवेश विकल्पों में लगातार अनिश्चितता का माहौल बना हुआ है, इन्हें निवेश के अच्छे विकल्प के रूप में देखा जा रहा है।
इनमें कुछ ऐसी बातें हैं जो यह तय करती हैं कि इस तरह का कौन सा निवेश विकल्प कितना आकर्षक है। निवेश से पहले किसी को भी इन पर विचार करना चाहिए क्योंकि यह निवेशक को इस तरह के किसी विकल्प को चुनने में मददगार होती हैं।
किस दर पर मिल रहा है रिटर्न: इस तरह के एश्योर्ड रिटर्न वाली योजनाओं में रिटर्न की दर 6.6 से 7.5 फीसदी के बीच है। निवेशकों के लिए ये काफी आकर्षक हैं क्योंकि इनसे मिलने वाला रिटर्न पूरी तरह से करमुक्त होता है।
इसके मायने यह हुए कि जो लोग 30 फीसदी के टैक्स ब्रेकेट में आते हैं, उनके लिए यही 7 फीसदी का रिटर्न 10 फीसदी के बराबर होगा। यहां मिलने वाले रिटर्न की तुलना इसी समयावधि में उपलब्ध दूसरे अवसरों से भी करना चाहिए।
अगर ये रिटर्न उनकी तुलना में अच्छे हैं तो निश्चित ही इन बातों से इनका आकर्षण बढ़ता है। फिर भी इन योजनाओं में निवेश से पहले कुछ अन्य विशेषताओं पर ध्यान देना जरूरी है।
ऊंचा निवेश: अत्यधिक गारंटीड रिटर्न योजनाएं एक ही प्रीमियम ऑफर वाली हैं। इसलिए निवेश की जाने वाली राशि एक ही बार में निवेश करनी हाती है। इसलिए यहां एक स्थिति ऐसी भी हो सकती है जहां न्यूनतम निवेश विकल्प 40 से 50 हजार रुपये से प्रारंभ हो।
इस तरह एक बार में ही इस तरह का निवेश करना कई निवेशकों के लिए कठिन हा सकता है। इसके चलते भले ही ये योजनाएं आकर्षक नजर आती हों लेकिन इनमें इंट्री के लिए इतने बड़े निवेश की अनिवार्यता की शर्त से कई लोग इनसे दूर जा सकते हैं।
समयावधि: इन योजनाओं के खिलाफ जाने वाली दूसरी बात इनकी समयावधि है। कई मामलों में इन स्कीम की अवधि बेहद कम है। इस तरह की स्कीमों की समयावधि अक्सर 7 से 12 साल के बीच होती है।
नि:संदेह कई निवेशक रिटर्न के लिए जो समयावधि चाहते हैं वह आमतौर पर 2-3 सालों से अधिक नहीं होती। इस लिहाज से यह समयावधि ज्यादा है। क्योंकि कई बार ऐसा होता है कि इस अवधि की स्कीम में डाले गए पैसे का निशिचत समय बाद पैसा मिल जाता है ।
तो फिर दिक्कत यह होती है कि इसी तरह की निवेश वाली दूसरी स्कीम आसानी से नहीं मिल पाती और उसे ढूंढना एक मुश्किल काम होता है।
इस कम समयावधि की प्रमुख वजह यह है कि बीमा कंपनियां लंबी समयावधि के लिए लॉक नहीं करना चाहती। इसलिए उन्होंने इसकी समयावधि सीमित कर दी है।
अपर्याप्त बीमा: सबसे अहम पहलू है बीमा। इस योजना को निवेशकों को एक बीमा योजना के रूप में ऑफर किया जा रहा है। इसका यह अर्थ हुआ कि पॉलिसीधारी को मिलने वाले लाइफ कवर पर भी विचार किया जाना चाहिए। हालांकि यह देखने में आया है कि इस तरह की योजनाओं में जीवन बीमा कवर हमेशा अपर्याप्त होता है।
उदाहरण के लिए अगर प्रीमियम 50,000 रुपये है तो आपको पांच गुना लाइफ कवर देता है। इस लिहाज से यहां आपको सिर्फ 2.5 लाख रुपये ही कवर मिलेगा। यह कवर अभी बेहद कम है।
पांच साल बाद अवमूल्यन को देखते हुए यह और भी कम दिखेगा। ऐसे में इस तरह की स्कीमों में बीमा एक अतिरिक्त सुविधा होगी, न कि जरूरी बीमा के लिए पसंद।
विशेष उपयोग: निवेशकों को इस तरह की बीमा पॉलिसी को समझने में पूरा सतर्क रहना होगा। यह उनके लिए उपयोगी नहीं है जो अपने पूरे परिवार के लिए कवर चाहते हैं क्योंकि यहां शुरुआती निवेश बेहद अधिक है और कवरेज बेहद कम है।
दूसरी ओर यह उन कई बड़े निवेशकों के लिए अच्छी है जिनके पास इसके लिए जरूरी पैसा है और जो अपनी बीमा जरुरतों को अन्यत्र पूरा कर चुके हैं। उन्हें इसके जरिए अपने कई लक्ष्य पूरा करने में मदद मिल सकती है।
लेखक पंजीकृत वित्तीय सलाहकार हैं।