चालू वर्ष में शुरुआती समय के मुकाबले भारतीय रुपया और 10 वर्ष के बॉन्ड कमजोर हए। चूंकि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने इन दोनों संपत्ति वर्गों की आसान उतार के लिए हस्तक्षेप किया था लिहाजा यह गिरावट मजबूती से नियंत्रित और कैलिब्रेटेड रही।
रुपया 31 दिसंबर, 2020 के 73.065 प्रति डॉलर के स्तर से फिसलकर 74.338 प्रति डॉलर पर बंद हुआ। दस वर्षीय बॉन्ड 6.454 फीसदी पर बंद हुए जो अपेक्षाकृत 5.865 फीसदी के साल के शुरुआती स्तर से तेज गिरावट को दर्शाता है।
देश और रिजर्व बैंक के लिए 2021 का वर्ष मुश्किल भरा रहा क्योंकि इस साल बैंकिंग नियामक को अपने विभिन्न उद्देश्यों के प्रबंधन के लिए अपरंपरागत उपकरणों पर विश्वास करना पड़ा। सरकार के धन प्रबंधक के तौर पर उसे संभावित सबसे सस्ती दरों पर लगातार दो वर्ष के लिए 12 लाख करोड़ रुपये से अधिक की भारी भरकम बाजार उधारी कार्यक्रम का प्रबंधन भी करना पड़ा था। उसने सरकार के लिए 16 वर्ष की कम भारित औसत लागत का प्रबंधन किया। उधारी 2022 में भी बहुत अधिक रहने के आसार हैं लेकिन रिजर्व बैंक के उदार रुख में बदलाव होते ही सरकार को अधिक धन चुकाना पड़ेगा।
केंद्रीय बैंक ने सरकारी प्रतिभूति अधिग्रहण कार्यक्रम (जी-एसएपी) और यहां तक कि खुले बाजार परिचालनों (ओएमओ) का सहारा लेना पड़ा ताकि बाजारों से कुछ बॉन्डों को हासिल किया जा सके इससे घाटे के मुद्रीकरण को लेकर चिंताएं बढ़ी। उसने अपने बॉन्ड परिचालन से ही करब 3 लाख करोड़ रुपये की खरीद की।
