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नरमी के दौर में बैंकों की दरों पर रीपो रेट का ज्यादा असर

Published by   सुब्रत पांडा
- 22/03/2023 11:35 PM IST

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की ओर से जारी नवीनतम मासिक बुलेटिन के आंकड़ों से पता चलता है कि मौद्रिक सख्ती के दौर की तुलना में नरमी के दौर में बैंकों की जमा और उधारी दर पर रीपो रेट का असर ज्यादा रहा है।

फरवरी 2019 से मार्च 2022 के बीच नरमी के चक्र में बेंचमार्क रीपो रेट में 250 आधार अंक की कटौती की गई। उसके साथ ही बैंकों ने अपनी मध्यावधि सावधि जमा दरों या कार्ड दरों में 208 आधार अंक की कटौती की। इसी तरह से इस अवधि के दौरान बैंकों की भारित औसत घरेलू सावधि जमा दरें (WADTR)188 आधार अंक कम हुईं।

वहीं उधारी की स्थिति पर नजर डालें तो एक साल की मध्यावधि धन की सीमांत लागत पर आधारित उधारी दर (MCLR) में 155 आधार अंक की कटौती की गई। वहीं रुपये में दिए जाने वाले नए कर्ज पर भारित औसत उधारी दर (WALR)और बैंकों के आउटस्टैंडिंग रुपये ऋण में क्रमशः 232 आधार अंक और 150 आधार अंक की कटौती की गई।

वहीं इसके विपरीत मई 2022 में शुरू और अब तक जारी मौद्रिक सख्ती के दौर में नीतिगत दरें तय करने वाली 6 सदस्यों की मौद्रिक नीति समिति (MPC) ने नीतिगत दर में 250 अंक की बढ़ोतरी की, लेकिन बैंकों की जमा और ऋण की दरों पर उतना असर नहीं पड़ा है, जितना नरमी के दौर में पड़ा था।

रिजर्व बैंक द्वारा दिए गए आंकड़ों के मुताबिक सख्ती के दौर में अब तक जहां मध्यावधि सावधि जमा दरों में 82 आधार अंक की बढ़ोतरी हुई है, वहीं आउटस्टैंडिंग डिपॉजिट के डब्ल्यूएडीटीआर में 87 आधार अंक की बढ़ोतरी हुई है। MPC ने जब दरों में बढ़ोतरी शुरू की तो जमा दरों में तत्काल बढ़ोतरी नहीं हुई, क्योंकि व्यवस्था में अतिरिक्त नकदी मौजूद थी। जब नकदी कम होने लगी और कर्ज की मांग बढ़ी हुई बनी रही तो बैंकों ने जमा दर में बढ़ोतरी की, जिससे कर्ज में वृद्धि का लाभ उठाने के लिए नकदी आकर्षित की जा सके।

वहीं ऋण की स्थिति देखें तो 1 साल का MCLR 135 आधार अंक बढ़ा है, जबकि नए रुपये ऋण और आउटस्टैंडिंग रुपये ऋण पर WALR में क्रमशः 149 और 86 आधार अंक की बढ़ोतरी हुई है।