एचएसबीसी के भारत से बाहर कारोबार की जो भी स्थिति रही हो लेकिन इसकी भारतीय इकाई का प्रदर्शन सराहनीय रहा है। बैंक की भारत इकाई की शुध्द आय में काफी बढ़ोतरी हुई है।
यह इसलिए भी मायने रखती है क्योंकि इसी की मातृ कंपनी के शुध्द मुनाफे में कमी आई है। एचएसबीसी की भारत प्रमुख नैना लाल किदवई का मानना है कि विदेशी बैंक अभी भी भारत में निवेश को लेकर काफी उत्सुकता दिखा रहे हैं।
हालांकि वह चाहती हैं कि ब्रिटेन के बैंकों के साथ अन्य देशों के बैंकों की तरह व्यवहार नहीं किया जाए। पेश है सपना डोगरा सिंह से उनकी बातचीत के प्रमुख अंश:
एचएसबीसी को भारत में परिचालन से 25 फीसदी ज्यादा का मुनाफा प्राप्त हुआ है जबकि इसी की मातृ कंपनी के मुनाफे में काफी कमी आई है। इसके पीछे क्या कारण रहे हैं?
पूरे समूह स्तर पर हमारा बाजार पूंजीकरण 80 अरब डॉलर जबकि मुनाफा 19.9 अरब डॉलर का है। मौजूदा कारोबारी माहौल को देखते हुए कम से कम इसे कम कर के तो नहीं आंका जा सकता है। पिछले तीन सालों में भारत में परिचालन से हमारे मुनाफे में सीएजीआर पर 45 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
ऐसे समय में जबकि लोगों को खर्च की चिंता खासा परेशान कर रही है, हमारे पास निवेश करने के लिए काफी कुछ था। हमने अपने आईटी और मार्केटिंग कारोबार में काफी ज्यादा निवेश किया है। हमने एक खुदरा ब्रोकरेज कंपनी को खरीदने के लिए 330 मिलियन डॉलर का निवेश किया और इसके बाद बीमा करोबार के लिए संयुक्त उद्यम की स्थापना भी की।
वर्ष 2009 में आप भारत में किस स्तर तक निवेश की योजना बना रहीं हैं?
फिलहाल तो निवेश की राशि के बारे में हम कुछ भी नहीं कह सकते हैं। पिछले साल हमने खुदरा ब्रोकरेज फर्म में निवेश किया और इसके अलावा बीमा कारोबार के तहत एक संयुक्त उद्यम की स्थापना भी की। हमारे समूह ने निवेश करने में कोई कोताही नहीं बरती है और जब कभी निवेश का मौका आया है, हमने बेधरक निवेश किया है।
अभी आपके पास निवेश के लिए कितनी अतिरिक्त राशि है?
दिसंबर 2008 तक के हमारे पास इस बारे में कोई ताजा आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। लेकिन मार्च 2008 तक हमारे पास निवेश के वास्ते 8,700 करोड रुपये की अतिरिक्त राशि थी। अगर इसमें पिछले साल अर्जित आय को जोड़ दिया जाए तो तो हमने उस हिसाब से कम निवेश किया है।
भारत सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक बैंकिंग क्षेत्र में सुधार को लेकर फिलहाल कोई जल्दबाजी नहीं दिखा रहे हैं और अगर ऐसा होता तो विदेशी बैंकों के भारत में कारोबार में और लचीलापन आता जाएगा। इसकी वजह मौजूदा समय में विदेशी बैंकों का बेहतर प्रदर्शन नहीं कर पाना रहा है…….
वित्त मंत्रालय को इस बात पर गौर करना चाहिए कि सारे बैंकों का प्रदर्शन बुरा नहीं है। भारत में हमारी उपस्थिति पिछले 155 सालों से रही है। भारत सरकार को सभी विदेशी बैंकों को एक ही तराजू में नहीं तौलना चाहिए क्योंकि ऐसा करना कहीं से भी समझदारी भरा नहीं होगा। एचएसबीसी का भारत में कारोबार काफी बढ़िया रहा है और बैंक मुनाफा कमा रहा है। ब्रिटन णने अपने यहां भारतीय बैंकों को कारोबार शुरू करने को लेकर ज्यादा खुले विचार रखे हैं।
वर्ष 2009 को आप किस तरह से देख रहीं हैं और इस साल आप किन चीजों पर ध्यान केंद्रित करेंगी?
यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन से उद्योग ज्यादा बढिया कर रहे हैं। हमारे लिए ट्रेड क्रेडिट काफी उपयुक्त है। एक ओर जहां पूरे विश्व में व्यापार में काफी गिरावट आई है और भारत भी इससे सुरक्षित नहीं बचा है, लेकिन फिर भी व्यापार के आंकड़े अभी भी काफी दुरूस्त हैं। गैर-आवासीय कारोबार भी हमारी नजर में काफी अच्छा है और इसमें विकास की काफी संभावनाएं हैं।
ब्याज दरों को कम नहीं करने को लेकर विदेशी बैंकों से लोगों की काफी शिकायत रही है।
ऐसा कहना सही नहीं है। दो महीने पहले हम जमा दरों में सबसे पहले कमी करने वाले बैंकों में शामिल थे। बाजार में अग्रणी बैंक ब्याज दरों में कटौती करता है तो हमें भी दरों में कटौती करनी पड़ती है, बजार में हमें अपना हिस्सा गंवाना पड़ता है।