भारतीय रिजर्व बैंक के विदेशी उधारी पर रोक लगाने के बावजूद भारतीय कंपनियां विदेशी मुद्रा परिवर्तनीय बाँड (एफसीसीबी) को विदेशों में अधिग्रहण या विदेशी खरीद के लिये पूंजी जुटाने के लिये अधिक मुफीद पा रही हैं। लेकिन पहले के लक्जमबर्ग के रास्ते से पूंजी जुटाने की अपेक्षा अब भारतीय कंपनियों की निगाहें सिंगापुर एक्सचेंज पर है क्योंकि यहां पर एफसीसीबी के जरिये धन जुटाने के लिये लिस्टिंग करने की कीमत कम है। गौरतलब है कि साल 2007 में एफसीसीबी के जरिये रिकॉर्ड़ 280 अरब रुपये जुटाये गये जबकि 2006 में यह धनराशि मात्र 160 अरब रुपये थी।
रुपये की मजबूती के दुष्प्रभावों को रोकने के लिये सेंट्रल बैंक ने अगस्त 2007 में कंपनियों से कहा था कि वे अपने विदेशी खर्चो के लिये विदेशों से जुटाये गये धन का ही इस्तेमाल करें, यहां तक कि कंपनियों के अधिग्रहण में भी।
कोटक महिंद्रा कैपिटल जिसने हाल में ही दो समझौते किये है,के मुख्य परिचालन अधिकारी एस रमेश का कहना है कि एफसीसीबी भारतीय कंपनियों के लिये धन जुटाने का बेहतर जरिया बना रहेगा।
केबीसी के कार्यकारी निदेशक स्टीफन जे वुड का कहना है कि परंपरागत रुप से कंपनियां एफसीसीबी के लिये लक्जमबर्ग को प्राथमिकता देती है। लेकिन अब सिंगापुर कम लिस्टिंग कीमत के कारण भारतीय कंपनियों की पसंद बनता जा रहा है।
सिटी ग्रुप ग्लोबल मार्केट इंडिया के प्रबंध निदेशक रवि कपूर का कहना है कि चाहे बड़ी कंपनी हो या मझोली कंपनी हो या छोटी कंपनी सभी धन जुटाने के लिये एफसीसीबी पर गौर कर रही है, ताकि अपने विदेशी अधिग्रहण की जरुरतों को पूरा किया जा सके।
जो कंपनियां इस प्रकार से धन जुटाने के लिये प्रयास करती है उनमें जेरी मॉर्गन,सिटी ग्रुप,बार्कलेज ग्रुप,स्टैंडर्ड चार्टर्ड,एचएसबीसी प्रमुख हैं।
यद्यपि शेयर बाजार में गिरावट के बाद कंपनियों के कंवरटिबल प्रीमियम मे गिरावट आयी है लेकिन फिर भी कंपनियां अपने विदेशी अधिग्रहण या खरीदारी के लिये एफसीसीबी के जरिये धन जुटाएंगी।
2007 में सर्वोच्च पांच एफसीसीबी सलाहकार
निवेशक बैंक सलाह किया गया धन
जेपी मॉर्गन 47900 करोड़ रुपये
सिटी ग्रुप 47568 करोड़ रुपये
बार्कलेज कैपिटल 3020 करोड़ रुपये
स्टैंडर्ड चाटर्ड 2154 करोड़ रुपये
एचएसबीसी होल्डिंग पीएलसी 2000 करोड़ रुपये
