लीमन ब्रदर्स के दिवालियेपन की अर्जी ने 40 पूर्व ब्रिक्स सिक्योरिटीज के कर्मचारियों की व्याकुलता को बढ़ा दिया है। पिछले साल सितंबर महीने में ये कर्मचारी 290 करोड़ रुपये के सौदे के तहत लीमन ब्रदर्स में शामिल हुए थे जिसके तहत निवेश बैंक ने ब्रिक्स के संस्थागत इक्विटी कारोबार का अधिग्रहण किया था।
पिछले सप्ताह लीमन ब्रदर्स के दिवालियेपन के लिए अध्याय 11 के तहत अर्जी देने के साथ ही भारतीय संस्थागत इक्विटी कारोबार के भविष्य पर अनिश्चितता छा गई है। इस अनिश्चितता ने इसके कर्मचारियों को नई नौकरियां तलाश करने पर विवश कर दिया है।
इसमें बहुत सारे कर्मचारी ऐसे हैं जो कि वापस ब्रिक्स लौट जाना चाहते हैं लेकिन नो-पोचिंग एग्रीमेंट के तहत इंडियन सेक्योरिटीज फर्म इन कर्मचारियों को वापस नहीं ले सकती है।
पूरे घटनाक्रम पर नजर रख रहे एक सूत्र ने बताया कि यह समझौता दो वर्षों का है जो कि अगस्त 2007 में हस्ताक्षर करने की तारीख से लागू है। इसके अलावा इस समझौते की महत्वपूर्ण बात यह है कि लीमन ब्रदर्स को तीन किस्तों में 290 करोड रुपये का भुगतान करना था जिसकी कि अंतिम किस्त दिसंबर 2009 में दी जानी थी।
चूंकि लीमन ने ब्रिक्स को दो किस्तो का भुगतान कर चुका है लेकिन इसके बावजूद इसे 120 करोड़ रुपये का भुगतान करना है। पिछले सप्ताह के घटनाक्रम के बाद इस समझौते के भविष्य पर सवालिया निशान लग गए हैं।
जब इस बारे में ब्रिक्स सिक्योरिटीज के मुख्य कार्यकारी अधिकारी वी आर श्रीनिवासन से संपर्क किया गया तो उन्होंने इस पर कोई भी टिप्प्णी करने से मना कर दिया।
दो सूत्रों का कहना है कि अगर ब्रिक्स इसके संस्थागत इक्विटी टीम में काम कर चुके 40 में से किसी कर्मचारियों को अपने यहां नियुक्त करती है तो उस स्थिति में ब्रिक्स को अंतिम किस्त से हाथ धोना पड़ सकता है।