सरकार चेक बाउंस को फौजदारी अपराध की श्रेणी से बाहर करने की अपनी पहले की योजना को ठंडे बस्ते में डाल सकती है। सरकार से अनुरोध किया गया है कि चेक बाउंस को अपराध मानने की व्यवस्था जारी रखी जाए ताकि कार्रवाई के डर से लोग अपने वित्तीय वायदे पूरे करते रहें। चेक बाउंस के लंबित मामलों को जल्दी निपटाने के लिए उच्चतम न्यायालय के आदेश पर एक समिति का गठन किया गया है। सरकार अंतिम फैसला करने से पहले उसके सुझावों पर भी विचार कर सकती है।
वित्तीय सेवा विभाग ने कारोबारी धारणा सुधारने तथा अदालती मुकदमों में कमी लाने के लिए छोटे-मोटे अपराधों को फौजदारी अपराध की श्रेणी से बाहर करने का प्रस्ताव रखा था और चेक बाउंस भी इसी में शामिल था। विभाग ने इसे आर्थिक सुधार और न्यायिक व्यवस्था में सुधार लाने के लिए कोविड के बाद की रणनीति बताते हुए विभिन्न हितधारकों से प्रतिक्रिया मांगी थी।
एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने प्रतिक्रियाओं की जानकारी देते हुए कहा कि मौजूदा व्यवस्था बनाए रखने का अनुरोध किया गया क्योंकि अभी कानूनी कार्रवाई के डर से लोग फर्जी चेक नहीं काटते हैं और अपनी देनदारी ठीक से चुकाते हैं। उन्होंने कहा, ‘बड़ी संख्या में हितधारकों से सलाह ली गई और ज्यादातर की प्रतिक्रिया यही थी कि चेक बाउंस के बारे में मौजूदा कड़ाई कम नहीं की जाए।’
पिछले महीने ही सर्वोच्च न्यायालय ने एक समिति गठित करने का आदेश दिया था, जो देश भर में चेक बाउंस से जुड़े मामलों यानी निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स कानून के तहत मामले जल्दी निपटाने के बारे में सुझाव देगी। उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली समिति में सरकारी अधिकारी और इंडियन बैंक्स एसोसिएशन के प्रतिनिधि बतौर सदस्य शामिल हैं। चेक बाउंस से जुड़े मुकदमे निपटाने में काफी समय लग जाता है। अदालत ने कहा कि देश भर में लंबित कुल मामलों में करीब 30 फीसदी ऐसे ही हैं। उक्त अधिकारी ने कहा कि इस बारे में अंतिम निर्णय समिति के सुझावों को देखने के बाद लिया जाएगा।
निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स कानून की धारा 138 के अनुसार चेक काटने वाले के बैंक खाते में पर्याप्त रकम नहीं होने के कारण चेक लौट जाना अपराध है। उस सूरत में कानून के तहत उस व्यक्ति को दो साल का कारावास हो सकता है और चेक की राशि का दोगुना तक जुर्माना लग सकता है। चेक बाउंस को अपराध की श्रेणी से हटाए जाने पर कर्ज देने वालों के लिए मुश्किल हो जाएगी क्योंकि उन्हें वसूली में परेशानी होगी। इससे ऋण संबंधी अनुशासन भी कम हो जाएगा और दीवानी अदालतों में ऐसे मुकदमों की भरमार लग जाएगी क्योंकि इन्हें निपटाने में लंबा अरसा लग जाता है।
कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स के महासचिव प्रवीन खंडेलवाल ने कहा कि बेच बाउंस के मामले 10-15 साल तक चलते रहते हैं और इन्हें अपराध की श्रेणी से बाहर करने पर धोखेबाजों को देनदारी नहीं चुकाने का हौसला मिलेगा।
