दिलीप कुमार पिछले 14 महीनों से आईसीआईसीआई बैंक का अपना क्रेडिट कार्ड का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं।
नाजनीन के साथ भी कुछ ऐसा ही है। बैंक ने इन दोनों जैसे कई ग्राहकों के क्रेडिट कार्ड बंद कर दिए हैं जो अरसे से अपने कार्ड का इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं जबकि बैंक को हर महीने उन्हें कार्ड स्टेटमेंट करने पर ही खर्च करना पड़ता है।
वैसे इस कवायद में केवल आईसीआईसीआई ही अकेला बैंक नहीं है बल्कि कई छोटे-बड़े बैंक इसी फॉर्मूले को अपनाने में लगे हैं। दरसअल केवल नाम को क्रेडिट कार्ड रखने वाले ग्राहकों से निजात पाने और किसी भी तरह के जोखिम से बचने के लिए ही बैंकों ने यह रणनीति अपनाई हुई है।
एक विदेशी बैंक में कार्ड बिजनेस के प्रमुख कहते हैं, ‘जिन क्रेडिट कार्ड के जरिये काफी वक्त से कोई लेन-देन नहीं होता उन कार्डधारकों का तो कुछ खर्च नहीं होता लेकिन बैंक को जरूर उस पर खर्च करना पड़ता है।’
ग्राहक के पास प्रत्येक स्टेटमेंट भेजने पर ही बैंक को कम से कम 10 रुपये खर्च करने पड़ते हैं। वैसे यह खर्च तब बहुत बड़ा नहीं नजर आता है। लेकिन 20 लाख कार्डधारकों वाले बैंक के लिए यह खर्च बहुत भारी पड़ता है। ऐसे बैंक को स्टेटमेंट भेजने के लिए ही हर महीने 2 करोड़ यानी सालाना 24 करोड़ रुपये खर्च करने पड़ते हैं।
एक बैंक से जुड़े अधिकारी कहते हैं, ‘यह किसी भी बड़ी क्रेडिट कार्ड कंपनी के मुनाफे से भी मोटी रकम है।’ इसके अलावा कार्ड की एक्सापयरी डेट के बाद फिर से उसके नवीनीकरण के लिए रिप्लेसमेंट चार्ज भी बैंक को ही अदा करना पड़ता है। इसके अलावा ग्राहकों का आधार भी जितना बड़ा होगा बैंकों को कॉल सेंटर का आधार भी उसी अनुपात में बढ़ाना होता है। ऐसे में इनएक्टिव कार्ड को बंद करके बैंकों की लागत में कई तरह से कमी आ सकती है।
ऐसे ग्राहकों के डिफॉल्टर होने की आशंका भी ज्यादा बढ़ जाती है, क्योंकि कई मामलों में पैसा न होने की वजह से भी ग्राहक लेन-देन नहीं करते हैं। भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक फरवरी के अंत में कार्डधारकों की संख्या घटकर 2.551 करोड़ रह गई है जो पिछले 15 महीनों में सबसे कम है।
अगर सालाना आधार पर भी देखें तो फरवरी 2008 से फरवरी 2009 के बीच के्रडिटकार्ड धारकों का दायरा 5 फीसदी तक सिकुड़ा है। पिछले साल के 13.6 लाख के आंकड़े में इस साल 3,59,000 की कमी आई है। बैंकिंग क्षेत्र के कई जानकारों का मानना है कि बैलेंस शीट को दुरुस्त करने की वजह से वित्त वर्ष 2008-09 के अंतिम तिमाही में क्रेडिट कार्डधारकों की तादाद में और कमी आ सकती है।
क्रेडिट कार्डधारकों की संख्या में कमी आने से बैंक बहुत ज्यादा परेशान नहीं हैं। स्टैंडर्ड चार्टर्ड में क्रेडिट कार्ड और पर्सनल लोन के महाप्रबंधक आर एल प्रसाद कहते हैं, ‘मौजूदा दौर में बैंक अपने पोर्टफोलियो को दोबारा से आकार दे रहे हैं। इनका मकसद कम कार्डों के जरिये ज्यादा मुनाफा कमाना है।’
दूसरी ओर क्रेडिट कार्ड के जरिये ग्राहकों ने भी कम खर्च करना शुरू कर दिया है। फरवरी 2008 में एक ग्राहक औसतन 1,928 रुपये खर्च कर रहा था जो फरवरी 2009 में 5 फीसदी घटकर 1,826 रुपये पर आ गया है। इसके अलावा कार्ड श्रेणी में गैर निष्पादित संपत्ति (एनपीए) बनने के मामले में 20 फीसदी का इजाफा हुआ है जबकि इससे पहले वित्त वर्ष में यह 5 से 6 फीसदी था।
नाम न छापने की शर्त पर एक बैंक में क्रेडिट कार्ड शाखा के प्रमुख कहते हैं, ‘क्रेडिट कार्ड कंपनियों का मानना है कि ग्र्राहकों का आधार छोटा भले ही हो लेकिन जितने भी ग्राहक हों वे अच्छे हों और कारोबार के लिए फायदेमंद हों।’