भारतीय रिजर्व बैंक की मध्यावधि मौद्रिक नीति समीक्षा के बाद शुक्रवार से ही कई बैंकों ने नकद आरक्षित अनुपात (सीआरआर) और सांविधक तरलता अनुपात (एसएलआर) में कटौती की बात शुरू कर दी।
बैंकों का कहना है कि इसके बाद वे मुसीबतों से घिरे बुनियादी ढांचा क्षेत्र को वित्तीय सहायता दे सकते हैं। बैंक बुनियादी क्षेत्र की उन परियोजनाओं के लिए अस्थायी नियमों में भी नरमी चाहते हैं, जिनमें दो साल की देर पहले ही हो चुकी है। बैंकरों ने भारतीय बैंकों की विदेशी परिचालन प्रणाली में आए तरलता के संकट पर भी बातचीत की।
उनका कहना है कि कई अंतरराष्ट्रीय बैंक वैश्विक वित्तीय संकट से बुरी तरह जूझ रहे हैं और संसाधनों की कमी उन्हें साल रही है, जिसकी वजह से वे कर्ज देने की स्थिति में भी नहीं हैं। इससे भारतीय बैंक भी बुरी तरह फंस गए हैं।
एक बैंकर ने बताया कि बैंकरों ने विदेशी संसाधनों खास तौर पर प्रवासी भारतीयों को आकृष्ट करने के लिए तमाम विकल्पों पर चर्चा की। इनमें लंदन इंटर बैंक ऑफर रेट (लाइबोर) से जुड़ी ब्याज दरों पर सीलिंग बढ़ाना भी शामिल है। इसके अलावा ट्रेड फाइनैंस पर लगी सीलिंग हटाने की मांग भी की गई है।
रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति में सावधि ऋण के लिबोर की सीलिंग में इजाफा किया गया है। छह माह से तीन साल तक के सावधि ऋण के लिए यह सीलिंग पहले 0.75 से 1.25 फीसद तक थी, जिसे बढ़ाकर 2 फीसद कर दिया गया। बैंक चाहते हैं कि निर्यातकों औरर आयातकों को उधार देने के लिए इसमें और कटौती की जाए क्योंकि बाजार दर पर संसाधन जुटाने के बाद कम दर पर कर्ज देना बेहद मुश्किल हो रहा है।
भारतीय स्टेट बैंक, आईसीआईसीआई बैंक, बैंक ऑफ इंडिया और यूनियन बैंक ऑफ इंडिया समेत तमाम बैंकों के अधिकारियों ने शुक्रवार शाम रिजर्व बैंक के अधिकारियों से मुलाकात की। इसमें बैंकिंग प्रणाली में तरलता के संकट को दूर करने के लिए दूसरी बार बातचीत हुई।
इस मामले से जुड़े सूत्रों ने बताया कि कि लंबी अवधि की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के लिए वित्तीय मदद बढ़ रही है, लेकिन इनके लिए संसाधन कम अवधि के जमा जैसे छोटे उपायों के जरिये जुटाए जा रहे हैं। लेकिन यह जोखिम भरा है। औद्योगिक विकास की मंद पड़ती दर के बीच बुनियादी ढांचा क्षेत्र के लिए ऋण बड़ी समस्या बनकर उभर आया है। यह बात दीगर है कि इस क्षेत्र को इस समय भी बड़ी मात्रा में ऋण दिया गया है।
बैंकों ने रिजर्व बैंक का ध्यान बुनियादी ढांचा क्षेत्र की गैर निष्पादित संपत्तियों के बारे में अस्थायी नियमों की ओर भी खींचा है। इनमें से कई परियोजनाओं में सिर्फ इसलिए विलंब हुआ है क्योंकि ये बैंक या प्रमोटर कंपनियों के नियंत्रण में नहीं हैं। इन पर रिजर्व बैंक से ज्यादा ध्यान देने की मांग की गई है।