प्रतीकात्मक तस्वीर | फाइल फोटो
बैंक अपनी शाखाएं तो बढ़ा रहे हैं मगर ऑटोमेटेड टेलर मशीन (एटीएम) की बढ़ोतरी ठप पड़ गई है। डिजिटल भुगतान की ओर ग्राहकों के तेजी से बढ़ते रुझान को इसका प्रमुख कारण बताया जा रहा है। मगर जानकारों का कहना है कि सीमित डिजिटल सेवाओं वाले ग्रामीण इलाकों में जमा जुटाने और ग्राहकों की शिकायतें दूर करने के लिए बैंक शाखा होना जरूरी है।
भारतीय रिजर्व बैंक के आंकड़ों के मुताबिक वित्त वर्ष 2021 में सार्वजनिक, निजी और अंतरराष्ट्रीय बैंकों के कुल 2,11,332 एटीएम थे, जिनका आंकड़ा वित्त वर्ष 2025 में मामूली बढ़कर 2,11,654 हो गया। इस दौरान बैंकों की शाखाएं वित्त वर्ष 2021 के 1,30,176 से बढ़कर वित्त वर्ष 2025 में 1,42,359 हो गईं।
इक्रा में वाइस प्रेसिडेंट सचिन सचदेव ने कहा, ‘डिजिटल भुगतान के प्रति बढ़ते रुझान और मोबाइल अथवा इंटरनेट बैंकिंग में ग्राहकों की तरजीह के कारण एटीएम की मांग कम हो गई है।’ उन्होंने कहा कि एटीएम की जरूरत बैंक शाखाओं की जरूरत से अलग हो गई है। चूंकि दूरदराज इलाकों तक शाखाएं ही पहुंचाती हैं, इसलिए उनमें विस्तार की संभावना हमेशा बनी रहती है।
उद्योग के जानकारों का कहना है कि एटीएम चलाना बैंकों के लिए बहुत महंगा पड़ता है क्योंकि रखरखाव, नकदी प्रबंधन और कैसेट स्वैपिंग जैसे खर्च बढ़ रहे हैं। बुनियादी बदलाव भी आ रहा है क्योंकि यूनिफाइड पेमेंट इंटरफेस (यूपीआई) का इस्तेमाल बढ़ने से एटीएम पर लेनदेन कम हो गया है।
फिंडी के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्य अधिकारी दीपक वर्मा ने कहा, ‘भारत का एटीएम की तस्वीर ग्राहकों के बदलते व्यवहार और संस्थागत प्राथमिकताओं के हिसाब से ही बदल रही है। बैंक भी अब कम लागत और अधिक सहूलियत की मांग पूरी करने के लिए डिजिटल चैनल पर ध्यान दे रहे हैं। शहरी इलाकों में खास तौर पर ऐसा किया जा रहा है।’
बैंकों के लिहाज से देखें तो सरकारी बैंकों के पास निजी बैंकों से ज्यादा एटीएम हैं गांव-कस्बों में सरकारी बैंकों के एटीएम काफी ज्यादा हैं। निजी क्षेत्र के बैंक अब महानगरों से बाहर एटीएम बढ़ाने पर जोर दे रहे हैं। एटीएम की कम मांग वाले महानगरों और बड़े शहरों में वे डिजिटल पैठ बढ़ा रहे हैं।
वर्मा ने बताया, ‘नकद की मांग ज्यादा नहीं घटी है, खासकर 60 फीसदी आबादी वाले मझोले शहरों, कस्बों और गांवों में। बैंक अपनी रणनीतियों को फिर से तैयार कर रहे हैं और विशेष बुनियादी ढांचा प्रदाताओं के साथ साझेदारी करना चुन रहे हैं।’
रिजर्व बैंक के अनुसार गांवों और कस्बों में एटीएम की मांग बनी हुई है क्योंकि वहां डिजिटल भुगतान की पैठ ज्यादा नहीं है। वित्त वर्ष 2024-25 में एटीएम से 30.6 लाख करोड़ रुपये नकद निकाला गया, जबकि वित्त वर्ष 2019-20 में 28.89 लाख करोड़ रुपये नकद निकासी की गई थी।
बीसीजी के इंडिया लीडर यशराज बताते हैं कि अब बैंकों के लिए एटीएम और शाखा अलग-अलग चीजे हैं। पहले एटीएम को शाखाओं का ही विस्तार माना जाता था।