पिछले कुछ साल में बैंक ऑफ इंडिया ने कई ऐसे कदम उठाए जिससे बैंक की उत्पादकता सुधरी है। इस दौरान बैंक का मुनाफा मार्जिन भी ऊंचा बना रहा।
इस अवधि में बैंक का एसेट पोर्टफोलियो जहां संतुलित बना रहा, वहीं इसकी विकास दर भी ठीक रही। कमजोर आर्थिक माहौल के बीच बैंक ने संपत्ति की गुणवत्ता बनाए रखने पर अपना ध्यान बढ़ाने का फैसला लिया। इसका प्रमाण बैंक का सुधरा प्रदर्शन है।
कारपोरेट के साथ लघु और मंझोले उद्योग सेक्टर में सुधार होने से बैंक को अपनी आमदनी सुधारने में मदद मिली। वित्त वर्ष 2009 की तीसरी तिमाही में 57.5 फीसदी का सालाना विकास दर दर्ज किया गया।
शुद्ध मुनाफा भी 70 फीसदी की सालाना विकास दर के साथ 872 करोड़ रुपये हो गया। घरेलू और विदेशी दोनों ही फलक पर बैंक का कारपोरेट, लघु और मंझोले उद्योग, खुदरा और कृषि क्षेत्र के लिए पोर्टफोलियो काफी संतुलित है।
बैंक ऑफ इंडिया के संतुलित पोर्टफोलियो की वजह से इसके अग्रिम (एडवांस) बैंकिग उद्योग की तुलना में तेजी से बढ़े हैं। पिछले 5 साल के दौरान इसकी विकास दर औसतन 25 फीसदी रही, जबकि वित्त वर्ष 2008-09 की पहली छमाही के दौरान इसमें 35 फीसदी का जोरदार विकास देखा गया।
इतना ही नहीं, तीसरी तिमाही में बैंक की अग्रिम विकास दर बैंकिंग उद्योग की औसत विकास दर से ज्यादा रही। तीसरी तिमाही में इसमें 31.3 फीसदी की वृद्धि देखी गई, जो उद्योग से काफी ज्यादा है। इसमें तेजी की वजह कारपोरेट को दिए जाने वाले कर्ज में हुई वृद्धि रही।
दरअसल, विदेशी बाजार में तरलता की किल्लत के साथ ही आईपीओ और प्राइवेट इक्विटी फंड का बाजार भी लगभग सूखा हुआ है। ऐसे में कारपोरेट घरानों की घरेलू बैंकिंग उद्योग पर निर्भरता बढ़ी है। इस वजह से बैंक ऑफ इंडिया का लोन बुक तेजी से बढ़ा है।
इसका प्रमाण तीसरी तिमाही के दौरान कारपोरेट सेक्टर को दिए जानी वाले नगदी में हुई 73 फीसदी की जोरदार बढ़ोतरी रही। मालूम हो कि बैंक ऑफ इंडिया लगभग 40 फीसदी कर्ज कारपोरेट घरानों को ही देता है। इसके अलावा बैंक ने गुणवत्ता और संपत्ति सुरक्षित करने पर ज्यादा ध्यान दिया है।
इस समय बैंक ऑफ इंडिया को छोटे और लघु उद्योगों में अच्छी संभावनाएं दिख रही है, क्योंकि इन्हें निजी बैंक कर्ज देने से बच रहे हैं। जानकारों के अनुसार, यह लोभ बैंक के लिए थोड़ा खतरनाक हो सकता है।
गौरतलब है कि बैंक ने अक्टूबर से दिसंबर की तिमाही के दौरान अपने एसएमई पोर्टफोलियो में 25 फीसदी का विस्तार किया। यह सेगमेंट ऊंचा मुनाफा दे रहा है और इसमें पूंजी लगाना खतरनाक भी हो सकता है, लिहाजा बैंक कर्ज को लेकर सतर्कता बरत रही है।
फिलहाल बाजार की दयनीय हालत के बीच अच्छी बात है कि बैंक ऑफ इंडिया के लोन बुक में लघु और मंझोले उद्योगों की हिस्सेदारी सिर्फ 16 से 18 फीसदी है।
पिछले पांच साल में जमा पूंजी की औसत विकास दर 21 फीसदी रही, जबकि 2009 वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में सबसे ज्यादा 26 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।
ऐसा इसलिए कि मौजूदा परिस्थितियों में लोग अपना धन इधर-उधर लगाने की बजाय सरकारी बैंकों में लगाने को तवज्जो दे रहे हैं। सावधि जमा की दरें ऊंची रहने से तीसरी तिमाही में चालू और बचत खाते की जमा राशि में कमी हुई।
तीसरी तिमाही के दौरान कुल जमा में 30 फीसदी की कमी हुई, वहीं दूसरी तिमाही में इसमें 32.2 फीसदी की कमी हुई थी।
शाखा संख्या (करीब 2,900) के लिहाज से सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में तीसरे स्थान पर आने वाले इस बैंक की 55 फीसदी शाखाएं ग्रामीण और अर्द्धशहरी इलाकों में है। इन इलाकों में हो रही तरक्की को देखते हुए इस बात का अनुमान लगाया जा रहा है कि बैंक भी अच्छा विकास करेगा।
ग्रामीण इलाकों में इस बैंक की बेहतर पहुंच इसके निजी प्रतिस्पर्द्धियों से आगे पहुंचाती है। बैंक ने अब तक 75 फीसदी से अधिक शाखाओं को कोर बैंकिंग सेवा से जोड़ दिया है। दूसरे सार्वजनिक बैंकों की तुलना में इस बैंक की दक्षता भी काफी अच्छी है।