Lok Sabha Elections 2024: उत्तर प्रदेश की अमेठी लोकसभा सीट (Amethi Lok Sabha seat) पर कई दशकों से नेहरू-गांधी परिवार का दबदबा रहा है मगर 25 साल में पहली बर इस परिवार का कोई व्यक्ति अमेठी से चुनावी मैदान में ताल नहीं ठोकेगा। पूर्व प्रधानमंत्री चरण सिंह के परिवार का कोई सदस्य भी इस बार बागपत से चुनाव नहीं लड़ेगा।
झारखंड के हजारीबाग से भी यशवंत सिन्हा या उनके बेटे जयंत सिन्हा इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे, जो 25 साल में पहला मौका होगा। इसी तरह उत्तर प्रदेश में तराई के शहर पीलीभीत में भी साढ़े तीन दशक में पहली बार मेनका गांधी या उनके बेटे वरुण गांधी ने जनता से वोट नहीं मांगा।
जयंत सिन्हा और वरुण गांधी मौजूदा लोक सभा में भारतीय जनता पार्टी (BJP) के निर्वतमान सांसद रहे हैं और उनके पास कोई चारा ही नहीं बचा था। मगर कांग्रेस के राहुल गांधी और राष्ट्रीय लोक दल (RLD) के जयंत चौधरी ने खुद ही अमेठी और बागपत से चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया है।
2019 में हुए पिछले चुनाव में अमेठी से राहुल भाजपा की स्मृति इरानी (Smriti Irani) से केवल 5 फीसदी वोट से हारे थे, जो लोक सभा चुनाव के लिहाज से बहुत मामूली अंतर है। जयंत को भी बागपत में भाजपा के सत्यपाल सिंह से केवल 2.25 फीसदी वोट से मात खानी पड़ी थी।
ये नेता तो अपने परिवारों की परंपरागत सीटें छोड़ गए मगर कुछ और नेताओं का रुख एकदम जुदा दिखा। 2009 में भोपाल सीट पर भाजपा की प्रज्ञा ठाकुर के हाथों 26 फीसदी वोट से बुरी तरह हारे कांग्रेस नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह फिर ताल ठोक रहे हैं।
इस बार वह राजगढ़ सीट से उतरे हैं, जहां से वह और उनके छोटे भाई लक्ष्मण सिंह सात बार लोक सभा पहुंच चुके हैं। यह बात अलग है कि पिछले दो चुनावों में यह सीट भाजपा के रोडमल नागर के हाथ आई। 2019 में नागर यहां 34 फीसदी वोट से जीते थे।
कन्नौज में पिछली बार समाजवादी पार्टी की डिंपल यादव (Dimple Yadav) को अप्रत्याशित हार का मुंह देखना पड़ा था। इस बार वहां से उनके पति और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ताल ठोक रहे हैं। 1999 से 2019 तक यह सीट उन्हीं के परिवार के पास रही थी। अखिलेश मैनपुरी के करहल से विधायक हैं और उन्हें लग रहा है कि पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ाने के लिए चुनावी दंगल में उतरना जरूरी है।
केंद्रीय नागर विमानन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी 2019 में मध्य प्रदेश में पारिवारिक गढ़ कहलाने वाली गुना सीट पर अप्रत्याशित हार का सामना करना पड़ा था। वह कांग्रेस के टिकट पर लड़े थे और केवल 10 फीसदी वोट से हार गए थे। पांच साल बाद वह एक बार फिर इस सीट पर दावा कर रहे हैं मगर इस बार वह कांग्रेस के बजाय भाजपा के प्रत्याशी हैं।