अर्थव्यवस्था

विदेश व्यापार पर काम जारी, 2030 तक 2 लाख करोड़ रुपये के कुल निर्यात की बनाई जा रही योजना

भी सरकार भूराजनैतिक तनावों और उनसे जुड़ी अनिश्चितताओं के कारण इस रणनीति पत्र को जारी करने के समय पर विचार कर रही है।

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श्रेया नंदी   
Last Updated- December 05, 2023 | 7:36 AM IST

सरकार नए सिरे से विदेश व्यापार रणनीति पर कार्य कर रही है। इसके तहत विकास और सहयोग के अवसर तलाशे गए हैं। यह रणनीति वर्ष 2030 तक 2 लाख करोड़ रुपये के कुल निर्यात – वस्तु एवं सेवा के महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य को हासिल करने के लिए बनाई जा रही है। इस मामले से जुड़े लोगों के मुताबिक यह लक्ष्य वैश्विक व्यापार में भारत की हिस्सेदारी 2.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 10 प्रतिशत करने के लिए बनाया गया है।

इस मामले से जुड़े एक व्यक्ति ने बिज़नेस स्टैंडर्ड को बताया कि वाणिज्य मंत्रालय रणनीति पत्र को अंतिम रूप देने के करीब है। व्यापार में भारत की हिस्सेदारी क्या होनी चाहिए, इसके अनुरूप यह पत्र तैयार किया गया है। इससे भारत की व्यवस्था का चहुमुखी विकास होगा।

वाणिज्य मंत्रालय बीते कुछ महीनों से विभिन्न साझेदारों से गहन चर्चा कर रहा है। इन साझेदारों में संबंधित सरकारी विभागों के अलावा निर्यात संवर्द्धन परिषदें, भारतीय बैंक एसोसिएशन (आईबीए), भारतीय निर्यात ऋण गारंटी निगम (ईसीजीसी), एक्जिम बैंक, व्यापारिक निकाय जैसे सीआईआई, फिक्की, नॉस्कॉम, एसईपीसी आदि हैं। अभी सरकार भूराजनैतिक तनावों और उनसे जुड़ी अनिश्चितताओं के कारण इस रणनीति पत्र को जारी करने के समय पर विचार कर रही है।

अधिकारी ने बताया, ‘हमें प्रमुख साझेदारों से इस मामले को समझने में मदद मिली है। लेकिन हम इसे जारी करने पर विचार कर रहे हैं। अभी वैश्विक अनिश्चितता का दौर है। इसमें पश्चिम एशिया में जारी संकट भी शामिल है।’

इस रणनीति पत्र में कई विषयों के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी दी जाएगी। यह व्यापार के लिए लॉजिटिक्स, देश के वस्तु निर्यात व सेवा बॉस्केट को बहुमुखी बनाकर बेहतर किया जा रहा है। इसके अलावा निर्यात के नए बाजारों को भी खोजा गया है।

अधिकारी ने बताया कि ‘नीति आयोग भी अलग से भारत विजन 2047 पर कार्य कर रहा है। यह अल्पावधि व दीर्घावधि नीति बना रहा है और यह रणनीति पत्र की जरूरत भी है।

उद्योग की सिफारिशें

इसी क्रम में भारत के निर्यात संगठनों के परिसंघ (फियो) ने बीते महीने सेवा क्षेत्र के लिए सिफारिशें की थीं और सरकार से लघु उद्योगों को मजबूत करने का अनुरोध किया था। फियो के मुताबिक अत्यधिक निविदा बोली, बयाना जमा राशि और उच्च सालाना टर्नओवर की शर्तें छोटी भारतीय परामर्श कंपनियों की भागीदारी में बाधा डालती हैं।

निर्यातकों के शीर्ष निकाय के मुताबिक कड़े वित्तीय मानदंड के कारण भारत के सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्योगों को सरकारी निविदाओं में हिस्सा लेने में खासी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है और इससे वे प्रतिस्पर्धा से बाहर हो जाती हैं।

First Published : December 5, 2023 | 7:36 AM IST