अगले वित्त वर्ष से प्रत्यक्ष कर के लिए अथॉरिटी फॉर एडवांस रूलिंग (एएआर) की जगह बोर्ड फॉर एडवांस रूलिंग ले लेगा। बोर्ड में दो सदस्य होंगे, जो मुख्य आयुक्त से नीचे के अधिकारी नहीं होंगे। बजट में यह प्रस्ताव लाया गया है, जिसका मकसद मामलों को तेजी से निपटाना है।
प्रस्तावों में बोर्ड और आवेदक के बीच आमने सामने आने को भी सीमित करने की बात की गई है, जिसमें कार्यवाही के दौरान तकनीक का इस्तेमाल होगा। इसमें कामकाज संबंधी विशेषज्ञता और गतिशील न्यायप्रणाली के साथ एक व्यवस्था पेश कर संसाधनों के अधिकतम इस्तेमाल की बात की गई है। लेकिन मसला यह है कि क्या बोर्ड कंपनियों के लिए प्रत्यक्ष कर संबंधी एडवांस रूलिंग बनाएगा या सिर्फ नई बोतल में पुरानी शराब पेश की जाएगी।
सरकार के मुताबिक बोर्ड अब प्रासंगिक हो गया है। विशेषज्ञों का भी मानना है कि कम से कम लंबित मामलों में कमी आएगी, हालांकि आदेशों की गुणवत्ता के बारे में समय के साथ ही कुछ कहा जा सकता है। केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) के चेयरमैन पीसी मोदी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, ‘बोर्ड में विभागीय अधिकारी होंगे, इसलिए कम से कम मानव संसाधन को लेकर हम आश्वस्त रहेंगे।’ उन्होंने कहा कि विभिन्न वजहों से एएआर में जरूरी मानव संसाधन उपलब्ध नहीं हो पाता था, जिसकी वजह से बड़े पैमाने पर आवेदन लंबित हैं। मोटे तौर पर करीब 700 एएआर आवेदन लंबित हैं।
मोदी ने कहा कि बोर्ड तेजी से मामलों को निपटाया जाना सुनिश्चित करेगा, वर्ना जिस उद्देश्य से इसका गठन किया गया है, पूरा नहीं हो पाएगा।
सीबीडीटी के पूर्व सदस्य अखिलेश रंजन ने कहा कि एएआर पीठों में जहां रिक्तियों की समस्या है, इसकी जगह बोर्ड आ जाने से संभवत: समस्या का समाधान नहीं निकलेगा। उन्होंने कहा, ‘समस्या यह थी कि सेवानिवृत्त न्यायधीश आकर कार्यभार नहीं संभाल रहे थे। बहरहाल सेवा शर्तों में बदलाव से यह ज्यादा आकर्षक हो सकता है।’ उन्होंने कहा कि एक रास्ता यह हो सकता था कि आयकर अपीली न्यायाधिकरण (आईटीएटी) के सेवानिवृत्त सदस्यों या अन्य के लिए भी इसमें जगह दी जाती, जो जरूरी नहीं कि न्यायधीश ही हों। रंजन ने कहा कि बोर्ड में अगर स्वतंत्र सदस्य नहीं होंगे तो करदाताओं के बीच भरोसा बनना मुश्किल होगा।
रंजन ने कहा, ‘मुख्य आयुक्त वरिष्ठ अधिकारी व कानून के जानकार होंगे, लेकिन आखिरकार वे राजस्व अधिकारी हैं। ऐसे में करदाता यह अनुभव नहीं कर पाएगा कि उन्हें वस्तुनिष्ठ राय मिल पाएगी।’
एकेएम ग्लोबल में टैक्स पार्टनर अमित माहेश्वरी ने कहा कि बोर्ड को अर्ध न्यायिक दर्जा होगा, जैसा एएआर को था, लेकिन कर निश्चितता को लेकर करदाताओं की चिंता का बमुश्किल समाधान ही हो पाएगा। उन्होंने कहा, ‘बोर्ड के सदस्य मुख्य आयुक्त के स्तर के नीचे के अधिकारी नहीं होंगे। इसका मतलब यह है कि एडवांस रूलिंग आयकर अधिकारियों द्वारा तय किए जाएंगे। हमने पहले देखा है कि करदाताओं के लिए इसके अनुकूल परिणाम नहीं आए हैं।’
एएआर पर रिपोर्ट लिखने वाले डेलॉयट इंडिया में पार्टनर आशुतोष दीक्षित ने कहा कि इस प्रस्ताव का आकलन विभिन्न मानकों पर करने की जरूरत है। दीक्षित ने कहा, ‘अगर यह लंबित मामलों को कम करने के लिए है तो निश्चित रूप से इससे मदद मिलेगी। इस समय सरकार चेयरमैन और वाइस चेयरमैन की नियुक्ति करने में सक्षम नहीं है। एएआर काम नहीं कर रहा है। इस मानक पर प्रस्ताव से मदद मिलेगी। विभिन्न पीठ काम करना शुरू कर देंगे।’
आदेशों की गुणवत्ता को लेकर उन्होंने कहा कि इसके लिए बोर्ड के कामकाज को देखने के लिए इंतजार करना होगा।
उन्होंने कहा, ‘अंतर यह है कि अगर आप सेवानिवृत्त न्यायधीश जैसे आयकर के पदानुक्रम के बाहर से किसी को लाते हैं तो निश्चित रूप से इसका संकेत सही दिशा में होता है। परंपरागत सोच यह है कि अगर विभागीय अधिकारी रहते हैं तो वे विभाग के विचार को ही प्रमुखता देते हैं।’
इसके पहले अथॉरिटी आयकर विभाग से अलग थी। इसके सभी सदस्य या तो सेवानिवृत्त न्यायधीश थे, या वे राजस्व विभाग के सेवानिवृत्त थे या अपनी सेवाओं से इस्तीफा दे चुके लोग होते थे।
दीक्षित ने कहा कि अब बोर्ड विभाग का आंतरिक कामकाज बन गया है। उन्होंने कहा, ‘अब ऐसा लगता है कि सदस्य पदासीन अधिकारी होंगे। यह देखना होगा कि क्या अपनी सेवा से इस्तीफा देने के बाद लोग बोर्ड के सदस्य बनेंगे।’
पिछले साल उच्चतम न्यायालय ने केंद्र से सिफारिश की थी कि प्रत्यक्ष कर में एडवांस रूलिंग सिस्टम को ज्यादा प्रभावी और समग्र बनाया जाना चाहिए।