पिछले गुरुवार को जब पत्रकार, वित्त मंत्री पी. चिदंबरम से देश में बढ़ती हुई महंगाई के बारे में सवाल पूछ रहे थे तो चिदंबरम ने हल्के-फुल्के अंदाज में कहा कि ‘शुक्र है, आज शुक्रवार नहीं है’।
वैसे वित्त मंत्री को महंगाई दर पर उस दिन जवाब देना बनता भी नहीं था क्योंकि भारत में महंगाई दर का आंकलन साप्ताहिक आधार पर होता है, और हर शुक्रवार को इसके आंकड़े जारी होते हैं।
वैसे इससे जुड़े कुछ सवाल बहुत दिलचस्प मालूम पड़ते हैं जैसे भारत में महंगाई दर की गणना कैसे की जाती है? आखिर क्यों शुक्रवार को ही इसकी घोषणा की जाती है? और दूसरे देशों में महंगाई को मापने का क्या पैमाना है? आइए इसको समझते हैं।
भारत में महंगाई दर का आंकलन थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) के आधार पर किया जाता है। दूसरी ओर अधिकतर विकसित देशों में महंगाई दर को उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (सीपीआई) के आधार पर मापते हैं। थोक मूल्य सूचकांक सबसे पहले 1092 में प्रकाशित हुआ था, और यह नीति निर्माताओं के लिए कुछ बड़े आर्थिक सूचकों में से एक था।
लेकिन 1970 तक आते-आते कई विकसित देशों मे थोक मूल्य सूचकांक की जगह पर उपभोक्ता मूल्य सूचकांक का उपयोग होने लगा है। दरअसल थोक मूल्य सूचकांक में थोक बाजार में वस्तुओं की औसत कीमत स्तर में आए बदलाव का आंकलन किया जाता है। भारत में थोक मूल्य सूचकांक में 435 वस्तुएं शामिल हैं। यह सबसे कम अवधि में तय होने वाला कीमत सूचकांक है, जो हर हफ्ते तय होता है।
भारत सरकार ने महंगाई दर को मापने के लिए थोक मूल्य सूचकांक को ही अपना रखा है। वहीं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक, उपभोक्ताओं द्वारा खरीदी गई कुछ विशेष वस्तुओं की खरीद की कीमतों के औसत पर तय होता है। यह महंगाई मापने का वह तरीका है, जिसमें कुछ विशेष उपभोक्ता वस्तुओं और सेवाओं के बास्केट के जरिये आकलन किया जाता है।
कुछ अर्थशास्त्री तर्क दे रहे हैं कि भारत को अब थोक मूल्य सूचकांक को गुड बाय कह देना चाहिए, और उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को अपना लेना चाहिए। गौरतलब है कि केवल भारत ही ऐसा बड़ा देश है, जहां अभी भी महंगाई की गणना थोक मूल्य सूचकांक के आधार पर होती है। अब कई देश उपभोक्ता मूल्य सूचकांक को ही अपना चुके हैं। यह काफी हद तक बढ़ी हुई कीमतों के बारे में अधिक स्पष्ट बताता है।
अमेरिका, ब्रिटेन, जापान, फ्रांस, कनाडा, सिंगापुर और चीन जैसे बड़े देशों में महंगाई दर मापने का अधिकृत सूचकांक, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक ही है। इन देशों में सरकारें किसी वस्तु के उपभोग के आधार पर हर 4-5 साल में उस वस्तु की समीक्षा करती हैं।
थोक मूल्य सूचकांक के जरिये महंगाई दर का सही आंकलन नहीं हो पाता है, आखिरकार यह थोक मूल्य पर ही तो आधारित है। इसमें जिन 435 वस्तुओं को शामिल किया गया है, उनमें से काफी ऐसी हैं, जो उपयोगिता की दृष्टि से बहुत ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं हैं। उदाहरण के तौर पर मोटे अनाजों को ही लेते हैं, इस्तेमाल करने के लिहाज से यह महत्वहीन है फिर भी यह महंगाई को निर्धारित करने में शामिल है।
एक ओर जहां थोक मूल्य सूचकांक साप्ताहिक आधार पर आता है वहीं उपभोक्ता मूल्य सूचकांक महीने दर महीने आता है। इसीलिए महंगाई के आंकड़े हर शुक्रवार को जारी होते हैं।